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आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा

 
आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा
RNE, NATIONAL BUREAU . महंगाई अब तो डायन की तरह हर घर को डसती जा रही है। खाने की थाली रोज महंगी हो रही है और उसमें से आम आदमी को हर दिन कुछ न कुछ कम करने का निर्णय करना पड़ रहा है। थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा है। आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा रसोई का बजट बिगाड़ने में पहले अनाज और दूध ने योगदान दिया। फिर आलू और प्याज जो हर घर की जरूरत है, इसमें शामिल हो गये। अब फिर से दालों की महंगाई शुरू हो गई है। अब तो दाल में छोंक लगाना भी महंगा हो गया है। आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा जीरे की मजबूत मांग और कम आपूर्ति के कारण थोक मंडियों में जीरे की कीमतें फिर से 31000 रुपये प्रति क्विंटल के करीब पहुंच गई है। पिछले एक महीनें में ही जीरा 34 प्रतिशत महंगा हो गया है। आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा जीरे की सबसे बड़ी मंडी उंझा है और उंझा में जीरे के दाम बढ़कर 30952 रुपये प्रति क्विंटल हो गये है। जबकि पिछले महीनें 16 अप्रैल को इसकी कीमत 23033 रुपये प्रति क्विंटल थी। आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा आम आदमी की थाली से रोज कुछ न कुछ घट रहा