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All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार

 
All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार
डॉ.मंगत बादल प्रजातंत्र में सत्ता पक्ष द्वारा किए गए प्रत्येक कार्य को सन्देह की दृष्टि से देखना और उसकी आलोचना करना विपक्ष का परम कर्तव्य होता है। विभिन्न मुद्दों को लेकर विपक्ष चिल्लाता रहता है। हत्याओं, आतंक, महंगाई, बेरोजगारी आदि के आंकडे़ प्रस्तुत कर-कर के जनता के सामने सच्चाई प्रस्तुत करने (या बरगलाने) की कोशिश करता है लेकिन सत्ता पक्ष कहता है, घबराने की कोईबात नहीं-स्थिति नियंत्रण में है ! हमारे देश की युवा शक्ति अनिश्चितता के कगार पर खड़ी है। All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार डॉक्टर बेकार हैं, इंजीनियर,अध्यापक, टैक्निशियन बेकार घूम रहे हैं। उनसे देश को जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा बल्कि उनमें उभरते असंतोष और आक्रोश से देश को हानि ही होती है। इधर वोट बटोरने के लिए हमारे नेतागण रोज नई-नई घोषणाएँ करते हैं। योजनाएँ भी प्रस्तुत करते हैं किन्तु फल कुछ भी नहीं निकलता। असंतोष निरन्तर बढ़ता जा रहा है, फिर भी हमारे नेतागण फरमाते हैं-स्थिति नियंत्रण में है ! चुनाव लड़ते बार प्रत्येक प्रत्याशी भविष्य में सुधार की घोषणाएँ करता है, व्यवस्था को बदल डालने की कसमें उठाता है, किन्तु चुनाव जीतते ही सर्वप्रथम  वह अपने चुनाव खर्च को पूरा करता है फिर चलता है दौर-भाई-भतीजों के कल्याण का, फलस्वरूप भ्रष्टाचार बढ़ता है। महंगाई बढ़ती है। All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार जनता चिल्लाती है-भ्रष्टाचार दूर करो ! महंगाई दूर करो ! किन्तु इधर  इधर जमाखोरो और कालाबाजारी करने वालों के हौंसले बढ़ते जाते हैं। वे दिन-दूनी रात-चौगुनी तरक्की करते जाते हैं देखते ही देखते कई ऐसे वट-वृक्ष पनप जाते हैं जो नई पौधों को पनपने ही नहीं देते और सरकार कहती है-स्थिति नियंत्रण में है ! हमारे यहाँ सभी समस्याओं का हल घेराव, बन्द अथवा हड़तालों के माध्यम से ढूंढ़ा जाता है। महंगाई का सूचकांक बढ़ता है तो सरकारी कर्मचारियों की महंगाई भत्ते की किश्त भी देय हो जाती है किन्तु सरकार तब तक घोषणा नहीं करती जब तक कर्मचारी आन्दोलन पर उतारू नहीं हो जाते। All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार कर्मचारियों के कुछ अधिकार भी सरकार दबा रखती है। उनकी घोषणा तभी होती है जब कोई राज्यव्यापी हड़ताल होती है। बन्द अथवा घेराव का आयोजन हो जाता है। कुछ उन्नत देशों में कर्मचारी जब हड़ताल करते हैं तो केवल काली पट्टी लगाते हैं। उनकी हड़ताल का असर देश के उत्पादन अथवा साधारण जन-जीवन पर नहीं पड़ता किन्तु हमारे यहाँ तो हड़ताल होने पर व्यापक रूप से तोड़-फोड़ की जाती है, गोलियां चलती हैं, लोग मरते हैं। नेताओं के  पुतले जलाए जाते हैं देखकर ऐसा लगता है कि यह आन्दोलन किसी स्वतन्त्र देश की जनता का नहीं बल्कि किसी परतंत्र देश की जनता का स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हो रहा है। All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार आजादी के बाद हुई हड़तालों, बन्द और घेराव के दौरान जितने लोगों की हत्याएँ पुलिस ने की हैं उनके आंकडे़ मिलाकर देख लीजिए कि क्रूरता के मामले में स्वतंत्र भारत की पुलिस भी गुलाम भारत की अंग्रेजी पुलिस से कम नही है। पुलिस जिस प्रकार से आम आदमी से व्यवहार करती है उसे देखकर हमें प्रसन्नता होनी चाहिए कि स्वतंत्र भारत की पुलिस अपनी परम्पराओं का पालन पूर्ण रूप से कर रही है। स्वतन्त्र भारत की पुलिस के  लिए आम आदमी और अपराधी में विशेष अन्तर नहीं है; इसीलिए सरकार बिना सोचे-समझे धड़ल्ले से कह देती है-स्थिति नियंत्रण में है ! All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार प्रदर्शन करना, शान्तिपूर्ण तरीकों से अपनी माँगों को सरकार के सामने प्रस्तुत करना स्वस्थ जनतंत्र की निशानी है। सरकार की गलत नीतियों का जनता विरोध नहीं करेगी तो कौन करेगा ? किन्तु हमारे यहाँ स्वस्थ विरोध को भी बगावत की निशानी समझा जाता है। दरअसल बात यह है कि अभी हम गुलाम मानसिकता से उभरे नहीं हैं। हालांकि सत्याग्रह तथा अहिंसात्मक तरीकों से हमें आजादी प्राप्त हो गई किन्तु अब हमारा उन मूल्यों में विश्वास नहीं है। रैली, प्रदर्शन, घेराव आदि सत्य के प्रति आग्रह नहीं बल्कि आज शक्ति-प्रदर्शन के तरीके हो गए हैं। इसीलिए हमारे विरोध करने के तरीकों में भी उग्रता आ जाती है। किसी भी हड़ताल में दो-चार आदमियों का मर जाना, सामान्य बात है। इस ओर न तो जनता ही अधिक  ध्यान देती है तथा न ही सरकार। आदमी की कीमत हमारी दृष्टि में किसी पद से अधिक मूल्यवान नहीं रह गई है, इसीलिए हमारे नेतागण पद से चिपके रहने के लिए सीधी -सच्ची बात का भी विरोध नहीं करते अतः स्थिति नियंत्रण में है ! समाचार-पत्र जो जनतंत्र के सच्चे आधार स्तम्भ होते हैं, उन में भी व्यवस्था ने घुसपैठ कर ली है। वहाँ भी सच्चाई को इस ढंग से प्रस्तुत किया जाता है कि पाठक वास्तविकता को कम समझे। विज्ञापन के टुकडे़ फेंककर व्यवस्था जनतंत्र की वाणी को खरीदने की कोशिश करती है। भीतर ही भीतर स्थिति विस्फोटक हो जाती है तो जगह-जगह पर कर्फ्यू,धारा एक सौ चवालीस आदि लगा दिए जाते हैं। पुलिस गश्त बढ़ा दी जाती है। बाजारों में सेना  फ्लैग-मार्च करती है। जनसाधारण भय और आतंक से भीतर ही भीतर सुलगता रहता है। हम टी.वीऔर रेडियो पर सुनते हैं-स्थिति नियंत्रण में है ! किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है। मैं जनतंत्र का दम घुटते हुए देख रहा हूँ किन्तु यह अप्रिय घटना नहीं है इसलिए कहा जा सकता है-स्थिति नियंत्रण में है !
शास्त्री कॉलोनी,रायसिंहनगर-335051 मो.  94149 89707 All is Well : थोड़े अपराध, कुछ बलात्कार, बेरोजगारी के लिए निकम्मे युवा जिम्मेदार