पदम स्मारक के रूप में निर्मित डिजिटल लाइब्रेरी अब राजस्थान में एक पर्यटन स्थल बन चुकी
 Mar 7, 2024, 18:12 IST
                                                    
                                                
                                            RNE, NOKHA . नोखा के सीलवा गाँव में बने पदम स्मारक का भ्रमण कर बच्चों ने जाना डिजिटल लाइब्रेरी का महत्व। केड़ली के राजकीय प्राथमिक विद्यालय मोतीसरा जलकुंड और देवानाडा विद्यालय के विद्यार्थियों ने बुधवार को पदम स्मारक का सामुहिक भ्रमण किया । पदम स्मारक में कार्यरत लाइब्रेरियन भवानी शंकर स्वामी ने बच्चों को सम्पूर्ण परिसर में भ्रमण करवाते हुए संत जी के जीवन के महत्वपूर्ण पहलू और उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों के बारे में बताया । 
पदम स्मारक के रूप में निर्मित यह डिजिटल लाइब्रेरी अब राजस्थान में एक पर्यटन स्थल बन चुकी है । लाइब्रेरी कक्ष अपने आप में अद्भुत और अद्वितीय है ,जो विशाल होनें के साथ-साथ वातानुकूलित है । राष्ट्रीय स्तर के कारीगरों द्वारा इसकी संरचना की गई है जिसमें बड़े-बड़े पत्थरों को कलात्मक खुदाई करके लगाया गया है ,चालीस-पचास फिट तक लम्बे लगे इन पत्थरों में कहीं जोड़ नहीं लगाया गया । लाइब्रेरी परिसर से छत तक गोलाई में चढते हुए दूब लगाई गई है जो इसके सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है । 
अन्दर पूरे भाग में पूरे दिन सूर्य का सीधा प्रकाश पड़ता है । परिसर में लाईट इस प्रकार लगाई गई है जो रात्रि में चन्द्रमा की तरह दिखाई देती है। लाइब्रेरी परिसर में कई कलाकृतियाँ अपनी ओर आकृष्ट करती है वहीं लौहे की छड़ों का द्वारा बनाया गया संत जी का चित्र हर किसी को आश्चर्यचकित कर रहा है। स्व. गौसेवी संत श्री पदमाराम जी की मूर्ति परिसर के बीच में स्थापित की गई है। लाइब्रेरी में भौतिक सुविधाओं की बात करें तो यहाँ वायरलेस कम्प्यूटर, बड़ी एलईडी और साहित्य, इतिहास,संगीत,कला से सम्बंधित पुस्तकें तथा पौराणिक शास्त्र यहाँ विद्यमान है । 
बाहर से आने वालों के लिए यहाँ एक सुविधाजनक रेस्टोरेंट बनाया गया है । पिता की स्मृति में पुत्रों द्वारा निर्मित यह स्मारक श्रेष्ठ धरोहर के रूप में राजस्थान ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए गौरव का विषय है । संत जी के तीनों पुत्र  कानाराम ,शंकर  और धर्मचन्द कुलरिया का मानना है कि हमारे लिए माता-पिता से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं हैं इसलिए उनके द्वारा बताए गए सिद्धांतों का मनन करना हमारा कर्तव्य है । 
संत श्री पदमाराम जी ने अपने जीवनकाल में अनेक पुण्य कार्य किये थे उनमें एक महान कार्य बालिकाओं की शिक्षा को बढावा देना भी था तथा गाँव के प्रत्येक बालक को शिक्षा मिल सके इस हेतु प्रतिबद्ध रहकर कार्य करना,आज इसी सपने को साकार करने के लिए उनके तीनों पुत्र कानाराम-शंकर-धर्मचन्द जी सतत प्रयत्नशील हैं , इसलिए इन्होंने अपने गाँव में ही राष्ट्रीय स्तर की लाइब्रेरी का भव्य निर्माण करवाया है वहीं एक विशाल बालिका विद्यालय की नींव भी लगा रखी है जो कुछ समय में बनकर तैयार होगा । 
 
 
                                            
पदम स्मारक के रूप में निर्मित यह डिजिटल लाइब्रेरी अब राजस्थान में एक पर्यटन स्थल बन चुकी है । लाइब्रेरी कक्ष अपने आप में अद्भुत और अद्वितीय है ,जो विशाल होनें के साथ-साथ वातानुकूलित है । राष्ट्रीय स्तर के कारीगरों द्वारा इसकी संरचना की गई है जिसमें बड़े-बड़े पत्थरों को कलात्मक खुदाई करके लगाया गया है ,चालीस-पचास फिट तक लम्बे लगे इन पत्थरों में कहीं जोड़ नहीं लगाया गया । लाइब्रेरी परिसर से छत तक गोलाई में चढते हुए दूब लगाई गई है जो इसके सौंदर्य में चार चाँद लगा रही है । 
अन्दर पूरे भाग में पूरे दिन सूर्य का सीधा प्रकाश पड़ता है । परिसर में लाईट इस प्रकार लगाई गई है जो रात्रि में चन्द्रमा की तरह दिखाई देती है। लाइब्रेरी परिसर में कई कलाकृतियाँ अपनी ओर आकृष्ट करती है वहीं लौहे की छड़ों का द्वारा बनाया गया संत जी का चित्र हर किसी को आश्चर्यचकित कर रहा है। स्व. गौसेवी संत श्री पदमाराम जी की मूर्ति परिसर के बीच में स्थापित की गई है। लाइब्रेरी में भौतिक सुविधाओं की बात करें तो यहाँ वायरलेस कम्प्यूटर, बड़ी एलईडी और साहित्य, इतिहास,संगीत,कला से सम्बंधित पुस्तकें तथा पौराणिक शास्त्र यहाँ विद्यमान है । 
बाहर से आने वालों के लिए यहाँ एक सुविधाजनक रेस्टोरेंट बनाया गया है । पिता की स्मृति में पुत्रों द्वारा निर्मित यह स्मारक श्रेष्ठ धरोहर के रूप में राजस्थान ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत के लिए गौरव का विषय है । संत जी के तीनों पुत्र  कानाराम ,शंकर  और धर्मचन्द कुलरिया का मानना है कि हमारे लिए माता-पिता से बढ़कर इस दुनिया में कोई नहीं हैं इसलिए उनके द्वारा बताए गए सिद्धांतों का मनन करना हमारा कर्तव्य है । 
संत श्री पदमाराम जी ने अपने जीवनकाल में अनेक पुण्य कार्य किये थे उनमें एक महान कार्य बालिकाओं की शिक्षा को बढावा देना भी था तथा गाँव के प्रत्येक बालक को शिक्षा मिल सके इस हेतु प्रतिबद्ध रहकर कार्य करना,आज इसी सपने को साकार करने के लिए उनके तीनों पुत्र कानाराम-शंकर-धर्मचन्द जी सतत प्रयत्नशील हैं , इसलिए इन्होंने अपने गाँव में ही राष्ट्रीय स्तर की लाइब्रेरी का भव्य निर्माण करवाया है वहीं एक विशाल बालिका विद्यालय की नींव भी लगा रखी है जो कुछ समय में बनकर तैयार होगा । 
 
 

                                                