रंगकर्म केवल कलाकारों से नहीं सहयोगियों से ही आकार लेता है, उनका योगदान बड़ा
Feb 11, 2024, 12:08 IST
अभिषेक आचार्य आरएनई, बीकानेर। मंगल सक्सेना के नाट्य प्रशिक्षण शिविर को लेकर विष्णुकांत जी, जगदीश जी, विद्यासागर जी, प्रदीप भटनागर जी, एस डी चौहान साब, चांद रजनीकर, बुलाकी शर्मा, मनोहर कलांश आदि जी जान से लगे हुए थे। स्थान के लिए उन्होंने कल्पना संस्थान की जगह का तय किया। अब बस उनको अमरचंद जी पुरोहित से बात करनी थी। हरीश भादानी जी, सरल विशारद जी का भी इन रंगकर्मियों को साथ था। वे भी मन, वचन से उनके साथ थे। जिससे रंगकर्मियों का हौसला ज्यादा बढ़ गया था। क्योंकि पहली बार साहित्यकारों का जीवंत साथ रंगकर्म को मिला था।
बात चल रही थी रंग सहयोगियों की। हरीश जी व सरल जी तो साहित्य के ही थे जो नाटक का अंग है। अन्य सहयोगी होने रंगमंच के लिए ज्यादा जरूरी है। उनका योगदान ही रंगमंच को भावभूमि देता है। ये वो सहयोगी होते हैं जो कभी भी सामने नहीं आते, पीछे रहकर कलाकारों को प्लेटफॉर्म देते हैं। उनकी रंग निष्ठा अद्वितीय होती है। उस दौर में भी तीन लोग ऐसे थे, जिनका सहयोग इन रंगकर्मियों को मिला और वो अनमोल था। जिसमें दो तो सीधे सीधे मंच से जुड़े हुए ही नहीं थे। एक का कलाकर्म से जीवंत जुड़ाव जरूर था।
इनमें पहला जिक्र होना चाहिए कामेश्वर सहल का। केईएम रोड पर उनकी मिलन रेस्टोरेंट थी और वहां रंगकर्मियों को वे पूरा सम्मान देते थे। उनकी भी सक्रिय भागीदारी रंगकर्मियों के इस ध्येय में थी। इसके अलावा मोहन जी राजपुरोहित व ज्ञान जी राजपुरोहित इनके रेस्टोरेंट में ही बैठते थे। उनके साथ मंगलजी भी वहां आते थे। दूसरे बड़े सहयोगी थे मोहन शर्मा जी। वे मंगलजी के अनन्य भक्त थे और उनके हर आदेश की पालना करते थे। ज्ञान जी के साथ भी मंगल जी का लंबा सत्संग होता था। इन तीनों लोगों का जो रंगकर्मियों को सहयोग मिला वो खास था। बाद में मंचन के समय भी ये लोग हॉल की व्यवस्था संभालते थे। जो कलाकार न हो और फिर भी उनमें इतनी गहरी रंग निष्ठा हो, ऐसा कम ही देखने को मिलता है। वर्तमान दौर में तो बिल्कुल देखने को नहीं मिलता। वर्जन :
प्रदीप भटनागर रंगकर्मियों को नाटक तैयार करने के साथ साथ रंग सहयोगी भी तैयार करने चाहिए। उनके बूते ही बड़े और सफल मंचन सम्भव होते हैं। मोहन जी, ज्ञान जी व कामेश जी का जो रंगकर्म को सहयोग मिला, उसे बीकानेर रंगमंच को कभी भूलना नहीं चाहिए। बीकानेर रंगमंच की वर्तमान की भव्य इमारत इन सहयोगियों के बूते ही खड़ी है। रंग निष्ठा का एक पुनीत यज्ञ होता है रंगमंच। ये किसी भी रंगकर्मी को भूलना नहीं चाहिए। 

