ओम आचार्य की अंतिम यात्रा में सैकड़ों उमड़े, भाजपा का झंडा ओढ विदा हुआ पार्टी का सेनानी
May 31, 2024, 19:22 IST
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मनोज आचार्य

‘मुंबई अधिवेशन में भाजपा का गठन हुआ। उस अधिवेशन में बीकानेर से ओमजी के साथ मेरे सहित कुछ गिने-चुने साथी। थे। नई पार्टी बनी थी। तय कर लिया, हर घर भाजपा का झंडा पहुंचाना है। वो झंडा घर-घर पहुंचा दिया और आज खुद उसी झंडे में लिपटकर दुनिया से विदा हो गए, हमें अनाथ कर गए हैं..‘ कहते-कहते एक बार फिर सुबक पड़े हनुमान चांडक।

‘मेरे जीवन के हर हिस्से में उनके ही किस्से हैं। क्या-क्या बताऊं! कहते-कहते भाजपा नेता बनवारी शर्मा का गला रूंध गया। संपत पारीक को लगता है जैसे परिवार का मुखिया चला गया। अस्वस्थ होने के कारण घर पर स्वास्थ्य लाभ ले रहे लगभग 70 के श्रीभगवान अग्रवाल को अब तक विश्वास नहीं रहा कि उन्हें हमेशा बच्चा मानकर संभालने वाले घर के ‘बड़े’ नहीं रहे।


दरअसल ओम आचार्य को जब अपनी किशोरावस्था में संगठन की सीख मिली तो इसके साथ एक मंत्र दिया गया ‘चूल्हे तक संपर्क’। यह मंत्र उनकी कार्यशैली का हिस्सा बन गया और जो उनसे जुड़ा उससे जीवनभर का रिश्ता बन गया। अपने साथियों के पारिवारिक ताने-बाने से लेकर घर के अर्थ-प्रबंधन तक का वे ख्याल रखते। केवल चिंता नहीं करते वरन ठोस समाधान करते, सुझाते। इनमें वे महेन्द्र आचार्य ‘चोंचिया महाराज’ भी शामिल है जिनके लिये वे ‘काका’ के साथ जीवनप्रबंधन सिखाने वाले ‘गुरूजी’ हो गये।

बीती रात उनके निधन की खबर सुनने के बाद से ही सैकड़ों लोग उनके निवास पर पहुंच गए। पूरी रात, हर जुबान पर उनकी ही बात थी वहीं शवयात्रा में शामिल हर शख्स के पास ओमजी के साथ जुड़ी कोई न कोई याद जरूर थी। इनमें विधानसभा चुनाव में प्रतिद्वंद्वी रहे पूर्व मंत्री बी.डी.कल्ला हो या हाल ही चुनाव में कल्ला को हरा भाजपा विधायक बनने वाले जेठानंद व्यास। भवानीशंकर आचार्य यानी अच्चा महाराज तो राजनीति की पगडंडी पर साथ कदम रखने वाले थे ऐसे में यादों का खजाना लिये ही थे, युवा मंडल अध्यक्ष कमलकिशोर आचार्य के लिए भी यह दिन अपने मार्गदर्शक को खो देने जैसा था। तीसरी बार के पार्षद किशोर आचार्य हो उप महापौर राजेन्द्र पंवार सबको कोई न कोई ऐसा वाकया याद है जो ओमजी से जुड़ा है जिसे वे कभी भूल नहीं पाएंगे।

पत्रकार-साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ लंबी मुलाकातों-संवादों को याद करते हुए कहते हैं, वे कभी विचार को दबाव देकर नहीं मनवाते। तर्क और तथ्य इस अंदाज में रखते कि अधिकतर उनका जवाब नहीं होता। हर विचार का सम्मान केवल सतही नहीं करते वरन उसके लिए बाकायदा पूरा अध्ययन करते थे।

संघ की शाखा से कर्मचारी नेता और वहां से राजनेता का सफर करने वाले डा.सत्यप्रकाश आचार्य की इस यात्रा में लंबा वक्त ओमजी के साथ गुजरा है तो यादों का भी भंडार है। शांतिलाल सुराणा अपने उस मित्र को खोकर व्यथित हैं जो उनके पिता स्व.कृपाचंदजी सुराणा ‘काकासा’ से भी उतने ही मित्रवत थे और रामजन्मभूमि आंदोलन में कारसेवा करने साथ गए, उन्नाव जेल में रहे।



नंदकिशोर सोलंकी, गोपाल गहलोत उन्हें आन्दोलनों के आगीवाण, प्रखरवक्ता और रणनीतिकार के रूप में याद करते हैं। पत्रकार-साहित्यकार हरीश बी.शर्मा कहते हैं, अफसोस है हम उनके साथ अधिक वक्त नहीं बिता पाये। जितना मिले, उतनी ही मिलने की ललक बढ़ती गई। वास्तुविद आर.के.सुतार कहते हैं, ‘सेंस ऑफ ह्यूमर’ के मामले में उनके आगे कोई नहीं टिकता। सिर्फ राजनीति ही नहीं अध्यात्म, विज्ञान, अर्थशास्त्र, दर्शन सहित किसी भी विषय पर वे पूरे अध्ययन और अधिकार के साथ बोलते। दिनेश महात्मा को आज भी लगता है कि वह कैसे धड़ल्ले के साथ अपनी बात रख देते थे और ओमजी उसे भी गंभीरता से सुनते। कमल आचार्य को लगता है कि अब ऐसे नेता की कमी खलेगी जिसके बूते हमारे जैसे युवा हर विसंगति से भिड़ जाते थे। अनिलजी ‘साब’, अनिल आचार्य ‘पिंकू’, अमरीश व्यास, उमेश बोहरा, रमेश सुराणा, टीपू सुलतान, प्रमोद सुराणा, गुटसा, संजय आचार्य सहित हर एक के पास ओमजी के रूप में एक प्रेरणा मौजूद थी।



