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पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं

 
पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं
आरएनई, बीकानेर।  छोटी बारातें, संस्कार पूरे, अपव्यय नहीं, स्नेह - मनुहार भी अपार... पूरा शहर इस समय एक विवाह के एक घर में तब्दील हुआ दिख रहा है। लगता ही नहीं कि घर अलग अलग है, परिवार अलग अलग है। समाज अलग अलग है, जाति अलग अलग है। सब एक ही परिवार के सदस्य लग रहे हैं। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं ऐसा लगता है परिवार बीकानेर है और यहां रहने वाले सब उस परिवार के सदस्य। बीकानेरीयत हर तरफ टपकती दिखती है। इसकी मूल वजह पुष्करणा सावा होना है। जिसे पुष्करणा ओलंपिक कहते हैं। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं कहने को तो ये पुष्करणा समाज का है मगर सारे समाज इसमें समाहित है। क्योंकि 18 फरवरी को किसी भी समाज में होने वाली शादी सावे का ही हिस्सा मानी जाती है। उस दूसरे समाज को पुष्करणा समाज जरा सा भी अहसास नहीं होने देता कि वो उनसे अलग है। इस तरह का नजारा देश की दूसरे किसी भी राज्य के जिले में दिखाई नहीं देगा। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं समाजों और जातियों का ऐसा एका बीकानेर के अलावा कहीं दूसरी जगह हो ही नहीं सकता। क्योंकि सरकार भी 18 फरवरी को होने वाली शादियों को सामूहिक विवाह और वो भी एक छत के नीचे की मानता है। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहींप्रशासन, पुलिस, चिकित्सा विभाग, नगर निगम, बिजली कम्पनी, जलदाय विभाग सहित सभी सरकारी महकमे केवल एक समाज के लिए नहीं अपितु सभी समाजों के लिए सुविधाए समान रूप से उपलब्ध कराते हैं। सेवा को तत्पर रहते हैं। सामूहिकता की ऐसी भावना ही बीकानेर को छोटी काशी का खिताब निर्विवाद दिलाती है। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहींन आने पर शिकायत नहीं... सावे की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें मनुहार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती। हर शादी का कार्ड हर परिचित तक पहुंचता है। एक घर में एक दर्जन से दो दर्जन तक कुंकुम पत्रिका पहुंचती है। भले ही न जा पायें। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहींक्योंकि कहीं न कहीं परिवार में उनके भी शादी होती है। मनुहार करने वाले को ना का पता होता है मगर वो मनुहार करने में कोताही नहीं बरतता। खास बात ये है कि सावे की शादी में कोई मनुहार के बाद भी न आये तो शिकायत नहीं, गिला नहीं। पता रहता है किसी अन्य शादी में व्यस्तता रही होगी। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहींएक दिन में कई शादी करेंगे अटेंड... शहर में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो 18 फरवरी को एक से अधिक शादियां अटेंड न करता हो। कई बार तो जिसके घर में शादी होती है उसे भी समय निकालकर दूसरी शादी अटेंड करनी पड़ती है। दोपहर 4 बजे से रात 2 बजे तक बारातों में कईयों को हाजरी लगाते देखा जा सकता है। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहींसंस्कारों से समझौता नहीं... सावे में सब तरफ जल्दबाजी रहती है। जल्दी में सारे काम किये जाते हैं। क्योंकि विवाह में पुरुषों व महिलाओं की उपस्थिति कम ही रहती है। यहां तक कि बारात में भी अधिक लोग नहीं होते। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं30 से 100 तक के बारातियों की भी बारात को अच्छा माना जाता है। खास बात ये है कि भले ही बारात छोटी हो मगर संस्कार सभी पूरे किए जाते हैं। तभी तो सावे के विवाह में कभी अड़चन नहीं आती। मजबूत विवाह संबंध रहते हैं। अपव्यय नहीं होता पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहींसावे की शादियों की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें न तो दिखावा होता है और न अनाप शनाप खर्च होता है। धन का जरा सा भी अपव्यय नहीं होता। कम बाराती, कम लोग तो जाहिर है खर्च भी अपने आप कम हो जाता है। बिना सावे की शादियों में धन का अपव्यय होता है। दिखावे में खर्च होता है। समाज सेवी संजय आचार्य, गणेश आचार्य, सुरेश कुमार पुरिया आदि बताते हैं कि आर्थिक युग मे अपव्यय का रुकना इस सावे के स्थायित्त्व का सबसे बड़ा कारण है। जब पूरा परकोटा एक परिवार है तो दिखावा किसके सामने करने की जरूरत है। खर्च भी स्वतः कम हो जाता है। पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं पुष्करणा सावा : मनुहार में कमी नहीं, नहीं आये तो गिला नहीं