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भागवत के बाद रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े किये

 
** अति आत्मविश्वास ले डूबा ** दलबदलुओं को महत्त्व देने पर भी एतराज ** एनसीपी को मिलाने पर आपत्ति आरएनई, नेशनल ब्यूरो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत जी के बाद अब संघ के विचारक रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति को लेकर सवाल उठाये हैं। लोकसभा चुनाव को लेकर भागवत जी के सीख देने के एक दिन बाद ही संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक लेख में लिखा गया है कि भाजपा को अति आत्मविश्वास ले डूबा। इन परिणामों से साफ संकेत है कि भाजपा को अपनी राह में सुधार की जरूरत है। चुनाव के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं व कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक के रूप में आये हैं। भागवत के बाद रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े किये संघ के विचारक रतन शारदा के आलेख में कहा गया है कि भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं ने चुनाव में मदद के लिए संघ से संपर्क नहीं किया, जिससे प्रदर्शन निराशाजनक रहा।उन्होंने भाजपा के अबकी बार 400 पार नारे का जिक्र करते हुए लिखा कि भाजपा कार्यकर्ताओं व नेताओं को अहसास नहीं था कि ये आव्हान उनके लिए लक्ष्य व विपक्ष के लिए चुनोती है। उन्होंने कहा है कि लक्ष्य ग्राउंड पर कड़ी मेहनत से हासिल होते हैं। सोशल मीडिया पर पोस्टर व सेल्फी शेयर करने से नहीं। भागवत के बाद रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े किये चमक का आनंद ले रहे थे आलेख में उन्होंने लिखा है कि भाजपा कार्यकर्ता मोदी के आभामंडल से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे। वे अपने बुलबुले में खुश थे और जमीनी आवाज नहीं सुन रहे थे। उन्हें लग रहा था कि जीत तो हमारी ही होगी। भागवत के बाद रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े किये दलबदलुओं को महत्त्व गलत आलेख में विचारक ने कहा है कि यह धारणा कि मोदी जी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं, सीमित महत्त्व का साबित हुआ। यह विचार तब आत्मघाती साबित हुआ जब उम्मीदवारों को बदल दिया गया। उन्हें स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोंपा गया। दलबदलुओं को अधिक महत्त्व दिया गया। अच्छे प्रदर्शन करने वालों की बलि देना नुकसानदायक साबित हुआ। भागवत के बाद रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े किये एनसीपी को मिलाने पर आपत्ति लेख में कहा गया है कि महाराष्ट्र अनावश्यक राजनीति व हेरफेर का उदाहरण है। एनसीपी गुट भाजपा ने साथ लिया जबकि भाजपा व विभाजित शिवसेना के पास बहुमत था। भागवत के बाद रतन शारदा ने भी भाजपा की चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े किये