दो दिन मंथन का सार : राजस्थानी भाषा एवं साहित्य की परिपक्वता अद्भुत
 Mar 29, 2024, 20:55 IST
                                                    
                                                
                                            - राजस्थानी साहित्य इतिहास को प्रामाणिक दस्तावेज प्रदान करता है: प्रोफेसर (डाॅ.) माधव हाडा
- साहित्य हमारी स्मृति चेतना को सदैव जीवित रखता है: प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण
- राजस्थानी साहित्य में इतिहास एवं भविष्य दोनों मौजूद है : प्रोफेसर (डाॅ.) के.एल. श्रीवास्तव
 उन्होंने कहा कि भारतीय परिपेक्ष्य में साहित्य व इतिहास को अलग करके देखना सही नहीं है। साहित्य तो इतिहास को परिमार्जित करता है। मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य इतिहास को प्रामाणिक दस्तावेज प्रदान करता है। इतिहासकारों की सभी अवधारणाओं को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि हमें राजस्थानी साहित्य व इतिहास को अलग अलग करके अध्ययन नहीं करना चाहिए।
 उन्होंने कहा कि भारतीय परिपेक्ष्य में साहित्य व इतिहास को अलग करके देखना सही नहीं है। साहित्य तो इतिहास को परिमार्जित करता है। मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य इतिहास को प्रामाणिक दस्तावेज प्रदान करता है। इतिहासकारों की सभी अवधारणाओं को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि हमें राजस्थानी साहित्य व इतिहास को अलग अलग करके अध्ययन नहीं करना चाहिए।  राजस्थानी परिसंवाद के संयोजक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि उदघाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ख्यातनाम कवि आलोचक प्रोफेसर (डॉ) अर्जुनदेव चारण ने इतिहास एवं साहित्य के अंर्तसंबंधों पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टि से उदाहरण प्रस्तुत कर विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि प्र्रत्येक समाज में साहित्य एवं इतिहास की अपनी स्मृति चेतना होती है।
 राजस्थानी परिसंवाद के संयोजक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने बताया कि उदघाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में ख्यातनाम कवि आलोचक प्रोफेसर (डॉ) अर्जुनदेव चारण ने इतिहास एवं साहित्य के अंर्तसंबंधों पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टि से उदाहरण प्रस्तुत कर विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि प्र्रत्येक समाज में साहित्य एवं इतिहास की अपनी स्मृति चेतना होती है।  मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य हमारी स्मृति चेतना को जीवित रखता है।  अंग्रेजों ने सबसे पहले भारतीय ज्ञान परंपरा के इस बड़े गुण स्मृति पर ही प्रहार कर भारतीय ज्ञान परम्परा को नकारा जबकि भारतीय ज्ञान परम्परा में इतिहास एवं साहित्य का अन्र्तसंबंध अपने आप अनूठा है जो व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करता है। इस अवसर पर राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद संयोजक एवं राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने अतिथियों का स्वागत कर स्वागत उदबोधन दिया। उद्घाटन सत्र का संयोजन डाॅ. धनंजया अमरावत ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया । तकनीकि सत्र -  परिसंवाद के विभिन्न तकनीकि सत्रों में ख्यातनाम रचनाकार डाॅ. मंगत बादल एवं प्रतिष्ठित कवि - नाट्य निर्देशक मधु आचार्य की अध्यक्षता में में डाॅ. दिनेश चारण, डाॅ.धनंजया अमरावत, डाॅ. मीनाक्षी बोराणा, डाॅ.प्रकाशदान चारण आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किये ।
 मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य हमारी स्मृति चेतना को जीवित रखता है।  अंग्रेजों ने सबसे पहले भारतीय ज्ञान परंपरा के इस बड़े गुण स्मृति पर ही प्रहार कर भारतीय ज्ञान परम्परा को नकारा जबकि भारतीय ज्ञान परम्परा में इतिहास एवं साहित्य का अन्र्तसंबंध अपने आप अनूठा है जो व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करता है। इस अवसर पर राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद संयोजक एवं राजस्थानी विभागाध्यक्ष डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने अतिथियों का स्वागत कर स्वागत उदबोधन दिया। उद्घाटन सत्र का संयोजन डाॅ. धनंजया अमरावत ने किया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया । तकनीकि सत्र -  परिसंवाद के विभिन्न तकनीकि सत्रों में ख्यातनाम रचनाकार डाॅ. मंगत बादल एवं प्रतिष्ठित कवि - नाट्य निर्देशक मधु आचार्य की अध्यक्षता में में डाॅ. दिनेश चारण, डाॅ.धनंजया अमरावत, डाॅ. मीनाक्षी बोराणा, डाॅ.प्रकाशदान चारण आलोचनात्मक शोध पत्र प्रस्तुत किये ।  समापन समारोह  - दो दिवसीय राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद के समापन समारोह में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डाॅ.) के.एल. श्रीवास्तव ने कहा कि विश्व में जन्म देने वाली माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा का कोई तोड नही है। राजस्थानी भाषा एवं साहित्य की परिपक्वता अद्भूत है। असल में देखा जाये तो राजस्थानी साहित्य में इतिहास ही नहीं बल्कि हमारा भविष्य भी विधमान है। मुख्य अतिथि राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. भंवरसिंह सामौर ने कहा कि विश्व के जिन इतिहासकारों ने मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य की अवहेलना करके राजस्थान का इतिहास लिखा है वो प्रामाणिक नही है क्यूकि राजस्थानी दोहों, सोरठों एवं छंदों में प्रामाणिक इतिहास मौजूद है। समारोह अध्यक्ष प्रोफेसर (डाॅ.) सोहनदान चारण ने कहा कि राजस्थान के इतिहास लेखन में राजस्थानी लोक साहित्य को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस समाज का साहित्य जीवित है उस समाज की संस्कृति कभी नष्ट नही हो सकती। समापन समारोह में डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित साहित्य अकादेमी एवं सभी अतिथियों को आभार ज्ञापित किया। संचालन डाॅ. मीनाक्षी बोराणा किया।
 समापन समारोह  - दो दिवसीय राष्ट्रीय राजस्थानी परिसंवाद के समापन समारोह में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डाॅ.) के.एल. श्रीवास्तव ने कहा कि विश्व में जन्म देने वाली माँ, मातृभूमि एवं मातृभाषा का कोई तोड नही है। राजस्थानी भाषा एवं साहित्य की परिपक्वता अद्भूत है। असल में देखा जाये तो राजस्थानी साहित्य में इतिहास ही नहीं बल्कि हमारा भविष्य भी विधमान है। मुख्य अतिथि राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित विद्वान डॉ. भंवरसिंह सामौर ने कहा कि विश्व के जिन इतिहासकारों ने मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य की अवहेलना करके राजस्थान का इतिहास लिखा है वो प्रामाणिक नही है क्यूकि राजस्थानी दोहों, सोरठों एवं छंदों में प्रामाणिक इतिहास मौजूद है। समारोह अध्यक्ष प्रोफेसर (डाॅ.) सोहनदान चारण ने कहा कि राजस्थान के इतिहास लेखन में राजस्थानी लोक साहित्य को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस समाज का साहित्य जीवित है उस समाज की संस्कृति कभी नष्ट नही हो सकती। समापन समारोह में डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित साहित्य अकादेमी एवं सभी अतिथियों को आभार ज्ञापित किया। संचालन डाॅ. मीनाक्षी बोराणा किया।  
 

 
                                                