भारतीय ज्ञान ज्ञान परंपरा ही हो सकती है विकसित भारत का आधार: प्रोफेसर मधुर मोहन रंगा
RNE, BIKANER.
आज राजकीय डूंगर महाविद्यालय के राजस्थानी विभाग द्वारा आयोजित विस्तार व्याख्यान माला के अवसर पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए प्रोफेसर मधुरमोहन रंगा ने अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की शिक्षा व्यवस्था का ढांचा लौकिक प्रतिमानों व भौतिक प्रतिमानों के आधार पर न होकर आध्यात्मिक आधार पर होना चाहिए।
हमें तकनीक को शिक्षा में समावेश करना चाहिए। हमें दीर्घकालिक विकास की ओर बढ़ाना है और जितना जरूरी हो संसाधनों को उतना ही काम में लेना चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में हमें हमारी ज्ञान परंपरा के सत्व को ग्रहण करना है जो राष्ट्र के विकास के लिए जरूरी है।
शोध, गुणवत्ता, नैतिकता की त्रयी के आधार पर विद्यार्थियों को शिक्षित भारत के लिए गढ़ना है तथा अध्यापकों को अपने अनुभवों का लाभ विद्यार्थियों को देना होगा ताकि हम एक विकसित राष्ट्र की ओर कदम बढ़ा सकें।
इस अवसर पर अध्यक्षता करते हुए कॉलेज की प्रोफेसर स्मिता जैन ने कहा की भारत को आगे बढ़ाने के लिए सबको अपना-अपना योगदान देना होगा। इसके लिए विद्यार्थियों को भी आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करवाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
अपने स्वागत उद्बोधन में राजस्थानी विभाग के प्रभारी डॉ ब्रजरतन जोशी ने कहा कि संवाद हमारी ज्ञान परंपरा का मुख्य साधन है।हमें अपने अग्रजों के अनुभव और किए गए शोध कार्यों का लाभ लेते हुए विद्यार्थियों के माध्यम से उन्हें व्यापक समाज के साथ साझा करना होगा।यह हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है।
कार्यक्रम में डॉ प्रकाश आचार्य , डॉक्टर राजेंद्र सुथार, डॉक्टर शशिकांत आचार्य, डॉक्टर नरेंद्र सिंह डॉक्टर योगेंद्र ,डॉक्टर घनश्याम बिट्टू डॉ निर्मल रांकावत, अजीत मोदी, डॉक्टर लीना सरण, डॉक्टर अरुण चक्रवर्ती, डॉक्टर फकरुनीशा,डॉक्टर अशमा मसूद ,डॉक्टर रविकांत,शोधार्थी सिया चौधरी,सुमन शेखावत तथा विभाग के अनेक विद्यार्थियों ने बढ चढकर भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर नमामिशंकर आचार्य ने किया।