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मधु आचार्य ने जीवन के प्रयोजन को समझा और निभाया, सबको समझना चाहिए : डा.चारण

  • विद्वानों की संगत में ‘मधु मंथन’: संस्मरणों ने जितना गुदगुदाया, उससे कहीं ज्यादा ‘आशवादी’ का जीवन समझाया
  • डा.अर्जुनदेव चारण, डा.माधव हाडा, डा.गजेसिंह राजपुरोहित, डा.बृजरतन जोशी, डा.उमाकांत गुप्त, डा.हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख’ आदि विद्वानों ने ‘आशावादी’ के कृतित्व का विश्लेषण किया

 

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बीकानेर में एक ऐसा अनूठा आयोजन हुआ जिसमें चर्चा तो एक शख्सियत के ‘कृतित्व और व्यक्तित्व’ पर केन्द्रित चर्चा हुई लेकिन इस बहाने जीवन के उद्देश्यों से लेकर जीने के अंदाज तक हर पहलू पर बात हुई। दो सत्रों में लगभग चार घंटे चली चर्चा इतनी रोचक थी, श्रोता-दर्शक देर रात तक बंधे रहे है। इस दौरान गंभीर मंथन ने जहां दिल की गहराई तक छुआ वहीं गुदगुदाते संस्मरणों से हॉल में खिलखिलाहट भी गूंजी।


मौका था साहित्यकार, पत्रकार, रंगकर्मी मधु आचार्य ‘आशावादी’ के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर केन्द्रित आयोजन ‘मधु आचार्य: जीवन और प्रयोजन’ संगोष्ठी का। आशावादी के 65वें जन्मदिवस पर हुए इस विशेष आयोजन में कृतित्व पर केन्द्रित चर्चा में भाग लेने देश के ख्यातनाम विद्वान-लेखक बीकानेर पहुंचे।

इनमें खासतौर पर जोधपुर से आये राजस्थानी विद्वान डा.अर्जुनदेव चारण, उदयपुर से आये मध्ययुगीन भारतीय इतिहास और साहित्य के प्रामाणिक हस्ताक्षर समीक्षक-लेखक डा. माधव हाडा और जोधपुर से जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डा.गजेसिंह राजपुरोहित शामिल रहे। हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक, लेखक-समीक्षक डा.बृजरतन जोशी और डा.उमाकांत गुप्त ने चर्चा में खास पहलुओं को उभारा।

इस अवसर पर आचार्य का अभिनंदन भी किया गया। अपने अभिनंदन के प्रत्युत्तर में आचार्य ने कहा कि जीवन के इस पड़ाव पर भी लगता है कि अभी तक तो बहुत कुछ करना शेष है। जीवन से निरंतरता का सबक सीखा और संकल्प रखा कि कोई भी दिन व्यर्थ नहीं जाए। इसके लिए खुद को हर दिन चुनौती देता रहा। कितना अच्छा कर पाया या क्या बेहतर रच पाया यह तो आने वाला समय ही बताएगा। वैसे भी कोई रचनाकार अपने समय के लिए लिखता भी नहीं है, वह तो भविष्य के लिए लिखता है। मैं लिखने के लिए प्रतिबद्ध हूं ताकि समाज को वह दे सकूं, जो मैंने समझा या जाना है।

ये है मनुष्य होने की सार्थकता : डॉ.चारण

रंग-चिंतक व आलोचक डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा कि मधु ने ईश्वर से मिले जीवन के प्रयोजन को न सिर्फ समझा बल्कि उसके अनुसार अपनी भूमिका का भी सफलता पूर्वक निर्वहन किया है। मनुष्य होने की यही सार्थकता है। हम अपने आंतरिक गुणों का विकास करते हुए ही अपने आसपास के परिवेश को समृद्ध कर सकते हैं। मधु आचार्य ने अपने परिवेश से न सिर्फ सीखा बल्कि कृतज्ञतापूर्वक दिया भी। डॉक्टर चारण ने पौराणिक संदर्भों के साथ जन्म की घटनाओं और उससे जुड़े प्रयोजन का गंभीर विवेचन सरल भाषा में किया।

बड़ा साहित्यकार साबित करने की बजाय संवेदना झंझोडते हैं मधु : डॉ.हाडा

प्रख्यात साहित्यकार माधव हाडा ने कहा कि आचार्य के साहित्य में मानवीय संवेदना के ऐसे तार हैं, जो पाठक के मन में झंकृत होते हैं। अपने आपको बड़ा साहित्यकार दिखाने की प्रवृत्ति उनमें नहीं है। उनके साहित्य से निकलते हुए ही यह पता चलता है कि वैचारिक रूप से समृद्ध मधु आचार्य कितने बड़े साहित्यकार हैं।

 

अभिधा में कविता कहने का गुण : डॉ.जोशी

कवि-कथाकार डॉ.ब्रजरतन जोशी ने कहा कि आचार्य की कविताओं में बनावटीपन नहीं है। वे सीधी बात करते हैं और इसी तरह वे अपने पाठकों के मन में भी उतरते हैं। उनकी कविता अभिधा के गुणों से युक्त हैं। वे कम शब्दों में अपनी बात कहने वाले एक अनूठे कवि हैं।

राजस्थानी की अलख जगाने वाले आगीवाण है आचार्य : डॉ.गजेसिंह

जोधपुर की जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी के राजस्थानी विभागाध्यक्ष डॉक्टर गजेसिंह ने कहा, मधु आचार्य राजस्थानी भाषा जागरूकता की अलख जलाये रखने वाले आगीवाणों में हैं। इन्होंने साहित्य अकादमी के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल संयोजक के पाँच वर्षीय कार्यकाल में 120 युवा रचनाकारों को साहित्य और अकादमी से जोड़ा। यह अकादमी में राजस्थानी आयोजनों के लिहाज से स्वर्णिम काल कहा जा सकता है।

गहरे उतरते हैं मधुजी के संवाद : डॉ.उमाकांत

मधु आचार्य के उपन्यासों पर वरिष्ठ आलोचक डॉ.उमाकांत गुप्त ने कहा कि इनके उपन्यासों में कही हुई कथा के समानांतर एक अनकही कथा भी चलती है, जो पाठकों को अपने से जोड़ते हैं। आचार्य अपने पाठकों को किरदार बनाने की कला में प्रवीण उपन्यासकार हैं।

समाज से पात्रों को सीधे उठाते हैं मधु आचार्य : रूंख

कहानी पर साहित्यकार डॉ.हरिमोहन सारस्वत ‘रुंख ने कहा कि आचार्य की कहानियों का कहन गहन अन्वेषण की मांग करता है। वे समाज से पात्रों को सीधे उठाते हैं। व्यष्टि से समष्टि में ले जाने की कला में पारंगत आचार्य का रचना-संसार इस रूप में महत्वपूर्ण है कि उनके कहे के बाद पाठक मन में एक उथल-पुथल मचना अवश्यंभावी होता है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं लोकमत के मुख्य संपादक अशोक माथुर ने कहा कि आचार्य स्वयं के साथ-साथ अपनी साथियों की बेहतरी के लिए भी सोचते हैं। एक संपादक के रूप में दी गई सेवाओं को याद करते हुए उन्होंने कहा बीकानेर में एक अखबार की जड़ें जमाने में आचार्य के योगदान को भूला नहीं जा सकता।

वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप भटनागर ने मधु आचार्य के रंगकर्म पर दृष्टि डाली। कहा मंच पर अभिनय करने, निर्देशन करने के साथ ही आचार्य ने नाटक भी लिखे। इन सबके साथ ही रंगकर्म को पत्रकारिता के माध्यम से संबल दिया। रंगमंच आंदोलन में भी अगुआ रहे।

इस सत्र का संचालन करते हुए कवि-कथाकार संजय पुरोहित ने कहा कि आचार्य भले ही साहित्य के क्षेत्र में काफी बाद सक्रिय हुए, लेकिन लेखन से इनका नाता प्रारंभ से ही रहा। बतौर रंगकर्मी इन्होंने अर्से तक देश के बड़े-बड़े समाचार-पत्रों में नाटकों की समीक्षाएं लिखीं।