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सुरेश हिंदुस्तानी ने “आनंद” के लिखे हर पात्र को मंच पर प्रभावी बना दिया

  • जोधपुरी मंच पर “काया में काया”
  • विनीता-मदन लढा का बड़ा काम,
  • श्रीलाल नथमलजोशी, नानूराम संस्कर्ता पर मोनोग्राफ

RNE Sepcial.

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी ने अपने मुख्यालय जोधपुर में राज्य स्तरीय ओम शिवपुरी नाट्य समारोह आयोजित किया। इस समारोह में इस बार नवयुवक कला मंडल, बीकानेर ने भी भाग लिया। संस्था ने नाट्यकर्मी स्व आनंद वी आचार्य के लिखे चर्चित नाटक ‘ काया में काया’ का मंचन वरिष्ठ निर्देशक सुरेश हिंदुस्तानी के निर्देशन में किया। ये नाटक महात्मा गांधी की आत्मकथा और उनके सहयोगी नेताओं से आपसी द्वंद से बुना हुआ है। आनंद ने स्वयं इसके कई मंचन किये थे। नाट्य लेखकों व रंगकर्मियों ने इस नाटक की खूब चर्चा की थी। क्योंकि बिल्कुल नये कॉन्सेप्ट से गांधी को परखा गया था।


आज के दौर में नेहरू, पटेल, जिन्ना, मौलाना, कस्तूरबा आदि यदि गांधी से मिलते, तो क्या बात करते। इस चीज को आनंद ने केंद्र में रखकर ये नाटक लिखा। गांधी के जीवन का गहन अध्ययन व उस समय के स्वतंत्रता आंदोलन की व्याख्या का एक विचार से लेखक ने विश्लेषण किया था। आंदोलन के चरणों व विभाजन की कई सच्चाइयों को नाटककार ने तथ्यों के साथ सामने रखा था। डॉ नंदकिशोर आचार्य ने इसका मंचन देखकर आनंद से स्क्रिप्ट पर लंबी बात की और कई शोध की तारीफ की थी। बाद में यह नाटक प्रकाशित भी हुआ।

इस बार आनंद वी आचार्य के ‘ काया में काया ‘ को निर्देशक सुरेश हिंदुस्तानी ने अपने तरीके से व्याख्यायित किया और कुछ नया किया। उन्होंने कृति के साथ एक निर्देशक के नाते पूरा न्याय किया और कथ्य को प्रभावी तरीके से अभिव्यक्ति दी। जिसका प्रमाण प्रेक्षागृह में उपस्थित दर्शकों की तालियां थी। अखबारों की रिपोर्टिंग थी। आनंद का लिखा हर पात्र जिंदा हुआ। सुरेश जी खुद एक गंभीर निर्देशक है और कई अच्छे नाटक मंचित कर चुके हैं। काया में काया उन्होंने अपनी टीम के साथ सफल रूप में मंचित कर न केवल गांधी को अपितु लेखक स्व आनंद वी आचार्य को फिर से जिंदा कर दिया। अच्छे मंचन के लिए कलाकारों की टीम व निर्देशक सुरेश हिंदुस्तानी को बधाई।


राजस्थानी के 2 साहित्यकार ‘ साहित्य पुरोधा ‘ श्रृंखला में

बीता सप्ताह राजस्थानी साहित्यकारों, राजस्थानियों व साहित्य प्रेमियों के लिए बहुत सुखद रहा। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ‘ साहित्य पुरोधा ‘ एक प्रकाशन श्रृंखला है। उसमें 24 भाषाओं के भागीरथी साहित्यकारों का मोनोग्राफ प्रकाशित होता है। जिसमें उस दिवंगत साहित्यकार के व्यक्तित्त्व व कृतित्त्व की विगत होती है।

साहित्य अकादमी इस प्रकाशन श्रृंखला के जरिये हर भाषा के साहित्य पुरोधा से दूसरी भाषाओं के साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों, पाठकों तक पहुंचाने का पुनीत कार्य करती है। बीते दिनों हमारी मातृभाषा राजस्थानी के दो मूर्धन्य साहित्यकारों पर अकादमी ने मोनोग्राफ प्रकाशित किये। राजस्थानी में पहला उपन्यास ‘ आभै पटकी ‘ लिखने वाले बीकानेर के साहित्यकार श्रीलाल नथमल जोशी पर साहित्य अकादमी ने मोनोग्राफ प्रकाशित किया है।

इसे युवा कवयित्री, शोध विद्यार्थी विनीता शर्मा ने लिखा है। विनीता का ये बहुत श्रम साध्य कार्य है। इस दृष्टि से कि पहले कथित कई बड़े लेखकों को ये लिखने का काम दिया गया, मगर हुआ नहीं। शायद उनसे ये कठिन काम हुआ नहीं या इस काम को करने की उनकी नीयत नहीं थी। बहरहाल विनीता ने इस चुनोती को स्वीकारा और राजस्थानी साहित्य के लिए बड़ा काम किया। राजस्थानी के लिए आजीवन समर्पित रहने वाले रचनाकार श्रीलाल नथमल जोशी को भारतीय साहित्य पुरोधा की श्रेणी तक पहुंचाया। राजस्थानी साहित्य जगत विनीता शर्मा का आभारी है।


इसी कड़ी में साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने दूसरा मोनोग्राफ नानूराम संस्कर्ता पर प्रकाशित कर उन्हें भारतीय साहित्य पुरोधा की श्रंखला तक पहुंचाया। ये श्रम साध्य कार्य किया ऊर्जावान कवि, कहानीकार भाई मदन गोपाल लढ़ा ने। वे नानूराम के सानिध्य में रहे हैं। कालू जैसे छोटे से कस्बे के इस मूर्धन्य रचनाकार ने राजस्थानी साहित्य के लिए पूरे जीवन खुद को समर्पित किया। लढ़ा उनके शिष्य रहे हैं। इस कारण उनके व्यक्तित्त्व व कृत्तित्व से पूरे परिचित थे।

उससे भी बड़ी बात ये थी कि उनके मन मे इस महान रचनाकार व गुरु के काम को पूरे साहित्य जगत तक पहुंचाने की बळत थी।

इस कारण उन्होंने अपने प्रयासों से ये काम पूरे मन से किया। मन में ललक थी कि नानूराम संस्कर्ता जी भारतीय साहित्य पुरोधा की श्रृंखला तक पहुंचे। शिष्य तो दूसरे भी अपने को बताते फिरते हैं , पर वे स्वयं, मित्र मंडली, परिजनों तक ही सिमटे रहते हैं। लढ़ा ने बड़ा काम किया। बधाई नानूराम जी के परिजनों को भी है, जो हर साल कालू में उनकी याद में आयोजन करते हैं। राजस्थानी साहित्यकार को पुरस्कार देते हैं। पूरा परिवार उनकी विरासत को सहेजे हुए हैं। उनके पुत्र शिवराज जी संस्कर्ता इस मोनोग्राफ के प्रकाशन से हर्षित थे। बधाई भाई मदन गोपाल लढ़ा को जिसने पूरे शोध के साथ ये मोनोग्राफ लिख राजस्थानी भाषा, साहित्य की सेवा की। दो राजस्थानी रचनाकारों का भारतीय साहित्य पुरोधा की प्रकाशन श्रृंखला तक पहुंचना हर राजस्थानी के लिए गर्व की बात है।