डा.अर्जुनदेव बोले, अव्यक्त को अनुभवजनित व्यक्त बनाना है अनुवाद, हरण-स्वीकरण का रखें ख्याल
- साहित्य अकादमी-आरईएस का खास संवाद
- कैलाश कबीर ने कहानी से बात कर इतने सरल अंदाज में अनुवाद की बारीकियां बताई कि कठिनाइयां समझ आ गई
- रामस्वरूप किसान बोले, खराब अनुवाद मूल लेखक की हत्या
- शंकरसिंह राजपुरोहित, पूर्ण शर्मा ‘पूरण’, बृजरतन जोशी, संजय पुरोहित, नगेन्द्र किराड़ू
RNE Bikaner
‘रशियन में लिखी एक पुस्तक का अंग्रेजी में अनुवाद होता है। उसको हिन्दी में लाने के लिए अंग्रेजी अनुवाद का अनुवाद होता है। ऐसे मंे राजस्थानी में इसे लाना हो तो रशियन के अंग्रेजी अनुवाद के हिन्दी अनुवाद का अनुवाद होता है। इस अनुवाद के अनुवाद के अनुवाद तक पहुंचते-पहुंचते लेखन की मूल आत्मा कहीं मर जाती है। उसके साथ न्याय नहीं हो पाता।’
साहित्य के क्षेत्र में हो रहे अनुवाद की कुछ इसी अंदाज में जमीनी हकीकत बताई प्रख्यात लेखक-अनुवादक कैलाश कबीर ने। कैलाश कबीर साहित्य अकादमी, दिल्ली की ओर से अनुवाद पर हुए विशेष परिसंवाद में भाग लेेने बीकानेर आये। कम समय और सरल शब्दों में बात रखते हुए उन्होंने अनुवाद में आड़े आ रही कठिनाइयों और लेखकों की ओर से अनुवाद के नाम पर किये जा रहे काम की सच्चाई बता दी। उदाहरण दिया अंग्रेजी में ‘Work in Progress’ सूचना पट्ट के हिन्दी में ‘कार्य प्रगति पर है’ तक के अनुवाद तक अर्थ चलता है लेकिन राजस्थनी में इसी तर्ज पर अनुवाद कर दिया जाए तो अर्थ बदल जाते हैं।
कबीर ने राजस्थानी अनुवाद करने के लिए दूसरी भाषाओं के वैकल्पिक शब्दों का उपयोग करने से परहेज की नसीहत दी। कहा, हमें हमारे मूल शब्दों को ही उपयोग मंे लेना चाहिये। कबीर ने कहा, हिन्दी आम लोगों के बोल-चाल की भाषा नहीं है। यह संपर्क भाषा है। किसी भी क्षेत्र का किसान, कुम्हार, सुथार, नाई, कर्मकार आदि अपने क्षेत्र के औजार, कामकाज को अपनी स्थानीय भाषा में ही व्यक्त करता है। ऐसे मंे आम लोगांे की भाषा वहां की मातृभाषा या स्थानीय भाषा होती है। कबीर ने ए.के.रामानुजन की एक छोटी-सी लोककथा से बात शुरू कर अनुवाद की महत्ता से रूबरू करवाया।
गुणाढ्य की बड्डकथा का जिक्र कर अर्जुनदेव बोले, सृष्टि में सब अनुवाद:
साहित्य अकादमी के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक और राजस्थानी ख्यातनाम लेखक डा.अर्जुनदेव चारण ने अनुवाद की बारीकियों का जिक्र किया। कहा, अव्यक्त को अपने अनुभव में डुबा कर व्यक्त करना अनुवाद है। डा.चारण ने सृष्टि की हर रचना को अनुवाद बताया। गुणाढ्य की पैशाचिक भाषा में कही गई बड्डकथा से बात शुरू करते हुए उन्होंने इसके मूल का कहीं पता नहीं होने का जिक्र किया।
‘माघ पंडित अर डोकरी री बात’ के जरिये विजयदान देथा ‘बिज्जी’ के कृतित्व का जिक्र किया। कहा, बिज्जी ने राजस्थानी लोक को अपने समय के ‘राजा-बणिया’ जैसे जिक्र से समृद्ध करने का काम किया। डा.चारण ने अनुवाद में मूल की आत्मा को संचित रखते हुए ‘स्वीकरण और हरण’ की साहित्यिक प्रवृत्तियों का तंज के अंदाज में जिक्र किया।
किसान, पूरण, शंकरसिंह ने विचार रखे:
विभिन्न सत्रों मंे चले कार्यक्रम में राजस्थानी के कई ख्यातनाम साहित्यकारों ने विचार रखे। रामस्वरूप किसान ने कहा, खराब अनुवाद मूल लेखन की हत्या कर देता है। शंकरंिसह राजपुरोहित ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लेखन रूचि का खुलासा करते हुए राजस्थानी-गुजराती में ज्यादा अनुवाद होने का जिक्र किया। उन्होंने राजस्थानी के अनुवादकों की ओर से किये गये काम को भी गिनाया। पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ ने भी राजस्थानी में अनुवादकर्म की बारीकियां बताई।
एक सत्र में साहित्य अकादमी के राजस्थानी परामर्श मंडल सदस्य संजय पुरोहित और लेखिया कृष्णा जाखड़ ने राजस्थानी पद्य साहित्य में अनुवाद की स्थितियां बताईं समापन सत्र मंे डा.बृजरतन जोशी और मधु आचार्य आशावादी ने इस आयोजन की महत्ता और इससे राजस्थानी साहित्य, लेखक व आम पाठक को मिलने वाले लाभ का जिक्र किया। विविध सत्रों का संचालन संजय पुरोहित, नगेन्द्र किराड़ू आदि ने किया। आरईएस की प्राचार्य सेणुका हर्ष ने स्वागत किया।
ये रहे मौजूद :
आयोजन में हरीश बी.शर्मा, अनुराग हर्ष, प्रशांत बिस्सा, गौरीशंकर प्रजापत, नमामीशंकर आचार्य, डॉ.प्रमोद चमोली, आर.के.सुतार, उमेश बोहरा, राजेंद्र जोशी, कमल रंगा, गिरिराज व्यास, सोनाली सुतार, आनंद हर्ष, आशीष पुरोहित, योगेंद्र पुरोहित, राजाराम स्वर्णकार, अजय जोशी, सविता जोशी, अमिताभ हर्ष सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।