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कांग्रेस व आरजेडी की दूरियां कम हुई, दोनों झुके, सर्वे ने सहयोगियों को तेजस्वी के लिए राजी किया

अभिषेक आचार्य

RNE Special.

इस साल बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं और उसके लिए अभी से बिसात बिछनी शुरू हो गई है। एक तरफ एनडीए गठबंधन है, जिसमें सीएम नीतीश कुमार अभी नेता है। उनके साथ भाजपा, चिराग पासवान, जीतनराम मांझी आदि है। वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन है। जिसमें आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल सहित विपक्षी दल हैं। इन दो बड़े गठबंधनों के अलावा प्रशांत किशोर भी इस बार चुनावी समर में अपनी पार्टी के साथ उतर रहे हैं। कई अन्य छोटे दल भी हर बार की तरह चुनाव के गणित को बिगाड़ने के लिए उतरने को तैयार है।सबसे पहले बात एनडीए गठबंधन की। इस गठबन्धन में अभी तक सब कुछ ठीक नहीं है। भाजपा नेताओं के अलग अलग बयान जेडीयू की सांसें ऊपर – नीचे कर रहे हैं। महाराष्ट्र की तरह यदि भाजपा ने यह फार्मूला अपना लिया कि जिस दल की सीटें ज्यादा होगी, उसका सीएम बनेगा, तो नीतीश के सामने परेशानी खड़ी होगी। जेडीयू हर हाल में सीएम नीतीश को ही चाहता है। जबकि भाजपा चुनाव नीतीश के नेतृत्त्व में लड़ने की बात तो कहती है, मगर सीएम बनाने की बात पर अलग अलग बयान देकर स्थिति को उलझाये हुए है। उसी वजह से पहली बार सीएम नीतीश कुमार के पुत्र को भी राजनीतिक बयान देकर अपने पिता की पैरवी करनी पड़ी है। अब चुनाव की घोषणा तक क्या स्थिति बनती है, उस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। नीतीश कब पाला बदल ले, इस पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इस बात से भाजपा भी वाकिफ है और नीतीश पर नजरें रखे हुए है।दूसरा बड़ा गठबंधन है विपक्षी दलों का महागठबंधन। इसमें भी सब कुछ ठीक नहीं था। आरजेडी और कांग्रेस में खींचतान चल रही थी। कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने तक की रणनीति भी तैयार कर ली थी। इससे आरजेडी को झुकने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस के कारण आप की जो स्थिति हुई और केजरीवाल को सरकार गंवानी पड़ी। बिहार में आरजेडी ऐसा नहीं चाहती थी, तो झुकना ही बेहतर रहा।

दूसरे एक सर्वे ने कांग्रेस को भी नरम किया। क्योंकि इस सर्वे में बिहार में सीएम की पहली पसंद लोगों ने तेजस्वी यादव को बताया है। इस वजह से दोनों तरफ मजबूरी साफ दिखी। अब विपक्षी दलों ने तेजस्वी के नेतृत्त्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय कर लिया है। वाम दल पहले से ही उनके पक्ष में थे ही। महागठबंधन अब फिर एक होकर मजबूत हो गया है।अब सत्तारूढ़ एनडीए को महागठबंधन से कड़ी चुनोती मिलेगी। यह तो साफ हो गया है। मगर इस बार सबसे ज्यादा उलझन में नीतीश व जेडीयू दिख रहे हैं। नीतीश के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। एनडीए छोड़ने की स्थिति में वे है नहीं और चुनाव बाद उनको सीएम बनाया जायेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं।

कुल मिलाकर बिहार की राजनीति एक बार फिर उलझावों के भंवर में है, अंतिम समय तक ही राजनीतिक तस्वीर साफ होगी।