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शहर के सभी मुख्य बाजारों की सड़कें अतिक्रमण से सिकुड़ी, सड़क पर रहता है आधा बाजार, ग्राहक भी सड़क पर

  • सरेआम दिखता अतिक्रमण मगर कहने वाला कोई नहीं
  • इन बाजारों में यातायात पुलिस भी नहीं, सब भगवान भरोसे

रितेश जोशी
ritesh joshi

RNE Special.

शहर के लगभग सभी बाजार हर साल कुछ न कुछ सिकुड़ रहे है जबकि बाजार की भीड़ हर साल बहुत ज्यादा बढ़ रही है। देखते देखते शहर में वाहन बढ़ गए, जनसंख्या बढ़ गई। उसके अनुपात में जितनी सड़कें बढ़नी चाहिए, वो तो बढ़ी नहीं, उल्टे उतनी ही घट गई।

जनसंख्या नियंत्रण जनता के हाथ में है, वाहन का भी नियंत्रण वही कर सकती है मगर छोटी होती सड़कों को तो प्रशासन रोक सकता है, यह तो उसके हाथ मे है। उसने जरा सा भी दायित्त्व नही निभाया, उस वजह से ही सड़कें तो पुराने कमजोर कपड़े की तरह सिकुड़ती गई, इतना ही नहीं अब भी सिकुड़ती जा रही है। हे सरकार, इस सिकुड़न को रोकना तो आपके हाथ में है। सोचिये, करिये और अपनी जनता को बचाईये। हे नेताओं, आप भी सरकार का साथ दीजिए तभी वो सिकुड़न रोकेगी और शहर के बाजारों को फिर से चौड़ा कर देगी। अब भी नहीं संभले तो नुकसान आपका होगा। आपकी जनता का होगा। आपका विरोध होगा। सरकार के अफसरों का क्या है, वे तो तबादले पर कहीं और चले जायेंगे। आपको, जनता को और बीकानेर को तो यही रहना है। आप तो विचार करो, खतरे के मुहानों पर खड़े हो, पहचानो।

इन प्रमुख बाजारों पर नजर तो डालें:

शहर के प्रमुख बाजारों के पुराने स्टील फोटो और अभी का फोटो देखें तो लोगों को यकीन ही नहीं होता। इतने खुले थे बाजार, इतनी खुली उसकी सड़कें, हर कोई स्तब्ध रह जाता है।


महात्मा गांधी मार्ग उर्फ केईएम रोड, तोलियासर भैरूंजी मार्केट, कोटगेट, जोशीवाड़ा, प्रकाश चित्र रोड़, स्टेशन रोड, पीएबीएम रोड, अंबेडकर सर्किल, रानी बाजार, गोगा गेट, बड़ा बाजार, मोहता चौक, इंडस्ट्रियल एरिया, नत्थूसर गेट, जस्सूसर गेट, फोर्ट स्कूल रोड, ठंठेरा बाजार, तेलीवाड़ा रोड आदि के बाजार तो देखते देखते ही सिकुड़ के आधे से भी कम रह गये। नेता देखते रहे, अधिकारी देखते रहे और कुछ नहीं कर सके।

अस्थायी अतिक्रमण का खेल:

सबसे दुखद पहलू ये है कि स्थायी अतिक्रमण ने नहीं, अपितु अस्थायी अतिक्रमण ने ही इन बाजारों की सड़कों को सिकुड़ाया है। स्थायी अतिक्रमण तो बहुत ही कम है, अस्थायी अतिक्रमण रोज सुबह सड़क को छोटा कर देते है और रात को फिर उसे कुछ चौड़ा कर देते है। कुछ बाजारों में तो रात के 10 बजे बाद बच्चे क्रिकेट खेलते दिखते है। इसका अर्थ ये हुआ कि यदि ये अस्थायी अतिक्रमण व्यापारी रात को हटाकर सड़क को विस्तार दे सकते है तो फिर नगर निगम, विकास प्राधिकरण व जिला प्रशासन दिन में इनको हटाकर सड़क को चौड़ा आसानी से कर सकता है।

यही तो बड़ा सवाल है…??

अब आम नागरिक व बुद्धिजीवी के ये सवाल उठता है कि जो काम सरकारी विभाग व जिला प्रशासन कर सकते है तो फिर करते क्यों नहीं ? समझदार लोग कहते है कि कुछ भ्रष्ट अफसर भले ही रोड़ा हो मगर अधिकतर बड़े अधिकारी तो इस समस्या का हल चाहते है। उनके हाथ, कलम रुकते है तो राजनीतिक दबाव के कारण। व्यापारियों के दबाव में नेता रहते है, ये स्वाभाविक भी है, क्योंकि इनकी अपनी सत्ता है। पर ये अस्थायी अतिक्रमण हट सकते है और सड़के चौड़ी हो सकती है, ये बात हर कोई जानता है।

इस तरह दिखता है बाजार:

व्यापारी की दुकान। थोड़ा पाटा या सीढियां सड़क पर। उससे आगे प्रचार के बोर्ड। कुछ दुकानों के आगे सामान। सड़क का काफी हिस्सा गायब। अब ग्राहक। उसका वाहन। थोड़ी सड़क और सिकुड़ती है। यही अधिकतर दुकानों की हालत और सड़क सिकुड़ती है। आधा बाजार आधी सड़क पर।

यातायात पुलिस भी नदारद:

इन बड़े बाजारों में अक्सर सिकुड़ी सड़को के कारण जाम लगता है, लोगों का समय बर्बाद होता है। परेशानी जो होती है वो अलग से। इनको नियंत्रित करने वाला यातायात पुलिस का कर्मचारी भी वहां नहीं होता। सबसे कम नफरी यातायात जैसे महत्ती महकमे में, पुलिस अधिकारी भी क्या करे।

ये हो सकते है विकल्प:

जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक पहल करे और बाजारों के व्यापार मंडल, बीकानेर व्यापार मंडल, जिला उद्योग संघ, जन प्रतिनिधियों संग बैठक करे। उनको विश्वास में ले और फिर सख्ती से सुकड़ते बाजार की सड़कों को दिन में भी विस्तार दे। ये संभव है। संभागीय आयुक्त नीरज के पवन ने ऐसा करके भी दिखाया था।