
इन प्रवेश द्वारों से एक समय सुरक्षित था पुराना शहर, ये द्वार बीकानेर की धरोहर, मगर अब इनकी हो रही उपेक्षा
- निगम करता नहीं सफाई, न्यास करता नहीं मरम्मत, प्रशासन लेता नहीं सुध
- धरोहर को खोना, अस्मिता को मिटाने जैसा अपराध
रितेश जोशी
RNE Special.
बीकानेर नगर को बसे हुए 537 साल हो गये। इस आलीजा शहर की पूरे भारत में अनेक कारणों से पहचान है। सबसे बड़ी पहचान यहां की धरोहर, यहां की संस्कृति और यहां के सद्भाव की है। व्यक्ति की पहचान के लिए पहला पैमाना यही होता है कि उसने अपनी धरोहर की रक्षा कितनी की है, अपनी संस्कृति को विस्मृत तो नहीं किया, अपने मानवीय स्वभाव को पाश्चात्य आंधी में खोया तो नहीं।
बीकानेर में भी रियासतकाल था। यहां भी राजा थे। जिनकी अपनी शासन व्यवस्था थी। उन्होंने अपने तरीके से जनता की सुरक्षा के प्रबंध किए हुए थे। जनता भी उनसे संतुष्ट थी। बीकानेर अपनी खास संस्कृति के कारण ही धर्मनगरी के रूप में पहचाना जाता था और वह पहचान आज भी बनी हुई है।
इसकी बड़ी वजह ये है कि इस शहर और शहर के लोगों ने अपनी धरोहरों व संस्कृति को न केवल बचाये रखा, अपितु उसको संरक्षित भी किया। राज्य के अनेक शहरों ने अपनी धरोहरों को आधुनिकता की भेंट चढ़ा दिया, जिससे उनकी मूल पहचान ही नष्ट हो गई। बीकानेर ने हर आधुनिकता को अपना विकास के फलक को चौड़ा किया, मगर साथ ही अपनी धरोहरों को भी संरक्षित रख पल्लवित किया। इसी कारण आज भी बीकानेर अपनी मूल पहचान को बनाये हुए है।
शहर के प्रवेश द्वार बड़ी धरोहर:
बीकानेर जब मुक्कमिल शहर के रूप में बसा तो उसके कई द्वार बने। ये द्वार थे कोटगेट, नत्थूसर गेट, जस्सूसर गेट, गोगा गेट, शीतला गेट। इन द्वारों को उस समय रात के समय बंद किया जाता था ताकि लोग और शहर सुरक्षित रहे।
फिर देश आजाद हुआ। चुनी हुई सरकार बनी तो ये द्वार बीकानेर की बड़ी धरोहर बने। जिनसे हर शहर वासी भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और आज भी जुड़ा हुआ है।
इन द्वारों का खास महत्त्व है। हर दिवंगत की शवयात्रा इन द्वारों से होकर गुजरती थी। क्योंकि उस समय सभी श्मशान द्वारों के यानी शहर से बाहर थे। इस कारण इनको लोग मोक्ष द्वार तक की संज्ञा देते थे।
फिर हुआ शहर का विस्तार:
आबादी बढ़ी तो बीकानेर का भी विस्तार हुआ, बाहर भी लोग बसे। मगर इन द्वारों से जनता का जुड़ाव कम नहीं हुआ। क्योंकि ये बीकानेर की पहचान थे, गर्वित करने वाली धरोहर थे। इनको विकसित करने का काम भी यहां के जनप्रतिनिधियों ने किया। ये सिर्फ इसलिए किया, क्यूंकि लोगों का अपनी धरोहर से गहरा रिश्ता था।
जस्सूसर, नत्थूसर, गोगा गेट के एक गेट की जगह लोगों की सुविधा के लिए 3 द्वार बनाये, मूल स्वरूप की रक्षा करते हुए। ताकि जनसंख्या के अनुरूप लोगों को यातायात में परेशानी न हो। ये मूल स्वरूप को बचाना भी धरोहर से मोह को ही दर्शाता है।
वर्तमान स्थिति द्वारों की:
वर्तमान में इन द्वारों की स्थिति देखकर हर शहरवासी का मन व्यथित हो जाता है। धरोहरों की उपेक्षा उसके लिए असहनीय है। उसे रोना आता है इनकी दशा देखकर।
इन द्वारों में गंदगी अटी रहती है। टूटे हुए हैं, प्लास्टर उखड़ा हुआ है। रंगाई पुताई भी नहीं होती। इनके पास कभी कोई ट्रैफिक का सिपाही भी नहीं रहता। आवारा पशु बैठे रहते हैं जो आने जाने वालों को परेशान करते हैं।
निगम से ‘रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस’ के सवाल
- क्या निगम रोज सुबह और शाम इन प्रवेश द्वारों की सफाई कर धरोहर को साफ सुथरा नहीं रख सकता ?
- क्या रोज इन द्वारों के दोनों तरफ जमा होने वाली गंदगी को उठवा नहीं सकता ?
- क्या निगम इन द्वारों को बाधित करने वाले आवारा पशुओं व पशुओं से रक्षा का प्रबंध नहीं कर सकता ?
‘ रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस ‘ के ये भी सवाल:
- क्या प्रशासन नियमित रूप से टूट फुट होने पर मरम्मत नहीं करा सकता ?
- क्या समय समय पर इनकी रंगाई पुताई नहीं कराई जा सकती ?
- क्या इन प्रवेश द्वारों पर जो कि बीकानेर की धरोहर है, एक एक ट्रैफिक का सिपाही नहीं लगाया जा सकता ?
- क्या इन प्रवेश द्वारों के हेरिटेज लुक की रक्षा कर उसे विकसित करने का प्रयास नहीं किया जा सकता ?
रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस का अलर्ट:
अब भी समय है। प्रशासन व बीकानेर के माननीय जागें तो धरोहर की रक्षा सम्भव है। इसका विकास भी सम्भव है। यदि ये काम नहीं किया गया तो शहर की प्राचीर की तरह इस धरोहर को भी धूल में मिलते समय नहीं लगेगा।
ये कहता है विपक्ष:
‘ शहर के ये प्रवेश द्वार हमारी पहचान व बड़ी धरोहर है। इनकी रक्षा कर इनको विकसित करने का काम प्रशासन को करना चाहिए। मगर प्रशासन इन धरोहर के संरक्षण को लेकर पूरी तरह से लापरवाही बरत रहा है, जिसे अब बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। प्रशासन ने यदि यही बेरुखी धरोहर को लेकर रखी तो कांग्रेस जन आंदोलन खड़ा करेगी। हम अपने बीकाणे की धरोहर को रक्षित करेंगे। ‘
राहुल जादुसांगत, शहर कांग्रेस महामंत्री