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काल का हुआ ईशारा, लोग हो गए गोरधन, जय जय गोरधन….

  • जनवादी कवि हरीश भादानी की आज जयंती है, अब भी गूंज रहे बीकानेर में उनके गीत
  • सड़क से बड़े मंचों तक बेधड़क सुनाते थे वे गीत

अभिषेक पुरोहित

RNE Bikaner.

( रुद्रा न्यूज एक्सप्रेस RNE ने अपने पाठकों से ये वादा किया है कि वो अपने साहित्य, संस्कृति के उन ऋषियो से परिचित कराता रहेगा, जिन्होंने इस शहर को बनाया। समृद्ध किया। आज जनकवि हरीश भादानी की जयंती है, उनको श्रद्धा सुमन। – संपादक )

‘ बल्ब की रोशनी शेड में बंद है, सिर्फ परछाई उतरती है बड़े फुटपाथ पर, जिंदगी की जिल्द के ऐसे सफे तो पढ़ लिए, तुम्हें अगला सफा पढ़ने बुलाया है, मैंने नहीं, कल ने बुलाया है …..।’

इस मशहूर गीत के बोल आज भी बीकानेर की सड़कों, गलियों, छबीली घाटी में तो गूंजते ही है मगर साथ ही देश के अनेक महानगरों की फिजाओं में ये शब्द तैर रहे है। भले ही इन बड़ी सार्थक पंक्तियों के कवि हरीश भादानी आज हमारे बीच नहीं, मगर उनकी कालजयी कविताएं, अमर गीत आज भी उनको हमारे बीच ही होने का अहसास करा रहे है। आज उनकी जयंती है तो हर किसी को ये जन कवि, जनवादी गीतकार याद आ रहा है।

इस गीतकार के लिए कविता या गीत दिल बहलाने का साधन नहीं थे। एक हथियार थे। मजदूर, किसान, आम आदमी की पीड़ा को स्वर देने के साधन थे। उसके संघर्ष को बताने व प्रेरित करने का जरिया थे। साहित्य हरीश भादानी के लिए कभी भी ग्लैमर नहीं रहा, समाज के प्रति एक प्रतिबद्धता रही।

तभी तो देश का यह कवि सड़क,जुलूस, बाजार, आंदोलन आदि में भी कविता पढ़ता दिख जाता था। जो कभी देश के बड़े कवि मंचो पर हरिवंश राय बच्चन के साथ कविता पढ़ता दिखता था।

आज भी जब बीकानेर में कोई चुनाव होता है तो उनके ये गीत बरबस ही लोगों की जुबान पर आ जाते है:-

ये राज बोलता, ये सुराज बोलता,

ये पेटी का पूत लोकराज बोलता

रोटी नाम सत है, खाये सो मुगत है

जब भी किसान या मजदूर कोई जुलूस निकालते है तो यूं लगता है कि आगे आगे हरीश भादानी ये गीत गाते हुए चल रहे है:-

बोल मजूरे हल्ला बोल, बोल दिनीये हल्ला बोल।

हिंदी कविता को हरीश जी ने नए तेवर दिए और देश के साहित्यिक जगत में अपनी अलग पहचान बनाई। उनके काव्य के मुरीद बड़े आलोचक व कवि थे। बच्चन जी ने तो उनकी कविताओं को सुनते हुए हर पंक्ति पर दाद दी थी।

उनको हिंदी का नव गीतकार कहा जाता था। डॉ नंदकिशोर आचार्य को इस बात का मलाल है कि उनके नव गीतकार के रूप में उनका आज तक भी सही मूल्यांकन नहीं हुआ है। उन्होंने गीत की शैली और कथ्य में जबरदस्त बदलाव किया। उसे रेखांकित किया जाना चाहिये।

सच में, हरीश भादानी जैसे मन, वचन, कर्म, जीवन से कवि कम ही होते है। उनके जैसा कोई नहीं। बीकानेर को नाज है अपने इस लाडले कवि पर। वे नाटककार भी थे। उनके नाटक भी खूब चर्चित हुए। हरीश जी सशरीर आज भले ही साथ न हो, मगर उनके शब्द आज भी उनको जिंदा रखे हुए है।