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तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले की ‘रिस्क ‘ कैसे उठायेगी सरकार, शिक्षक है उद्वेलित, नाराज भी

राज्य कर्मचारियों में सबसे बड़ी संख्या शिक्षा विभाग के कर्मचारियों की है। उनमें भी शिक्षक सबसे ज्यादा है। शिक्षकों में भी बड़ी संख्या तृतीय श्रेणी शिक्षकों की है। प्रदेश में लगभग 3.50 लाख शिक्षक डेढ़ दशक से तबादले की प्रतीक्षा में है। उनके तबादले को लेकर पिछली सरकार में भी असमंजस रहा और अब नई सरकार का भी कोई स्पष्ट रुख सामने नहीं आया है। अभी तो आचार संहिता है जो 4 जून को लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद समाप्त होगी। तृतीय श्रेणी शिक्षक भी उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि उनके तबादले तो हो ही नहीं रहे। पिछली सरकार भी बात ही करती रही, आश्वासन देती रही मगर तबादले नहीं किये। अब इस सरकार से इन शिक्षकों ने उम्मीद लगाई है जिस पर रुख 4 जून के बाद ही पता चलेगा।

तृतीय श्रेणी शिक्षक भरा हुआ है। हर शिक्षक संगठन इनके तबादलों की बात कर रहा है मगर सरकारें है कि सुन ही नहीं रही। नियुक्ति के समय इस श्रेणी के शिक्षक को जहां पदस्थापित किया गया वो वहां चला गया, उसे उम्मीद थी कि प्रक्रिया के तहत उसका तबादला हो जायेगा। मगर सरकार तबादले तो करती किंतु इस श्रेणी के शिक्षक को छोड़ देती। राज्यादेश से भी इनके तबादले नहीं किये गये। विधायकों की डिजायर भी इनके कोई काम नहीं आई।

सरकार के डरने की अपनी वजह थी। ये शिक्षक संख्यात्मक रूप से ज्यादा है तो बड़ा फेरबदल होता। इस सूरत भी सही – गलत सब होता और ठीकरा सरकार पर फूटता। सरकार ने विवाद से बचने के लिए एक ही रास्ता चुना कि इनके तबादले ही मत करो। ये तो लोकतंत्रीय निर्णय नहीं माना जा सकता।

शिक्षाविद व राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश महामंत्री महेंद्र पांडे मानते हैं कि शिक्षक वर्ग में सबसे कम वेतन पाने वाला यही शिक्षक होता है, उसे तो अपने गृह जिले या उसके पास पदस्थापित करना चाहिए। जिससे उस पर आर्थिक बोझ कम पड़े और वो अभिवावकों की सेवा भी कर सके। बच्चों की देखभाल भी कर सके। उन्होंने कई पत्र पिछली सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को लिखे, मगर उनमें दिए सुझावों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। पांडे का कहना है कि 3 सरकारें बदल गई मगर लगभग 3.50 लाख तृतीय श्रेणी शिक्षकों को तबादले का लाभ नहीं मिल सका है, इस पर सरकार को सोचना चाहिए।

नई सरकार के शिक्षा मंत्री ने ये जरूर कहा है कि वाजिब हक रखने वाले शिक्षक का तबादला किया जायेगा। मगर उसमें भी ये स्पष्ट नहीं है कि ये बात तृतीय श्रेणी शिक्षक पर लागू होगी या नहीं। दरअसल इन शिक्षकों के तबादले न होने की बड़ी वजह है शिक्षक तबादला नीति का न होना। अगर नीति बनी हो तो पक्षपात की स्थिति भी नहीं बचती और शिक्षकों को उसके अनुसार तबादले का लाभ मिल जाता।

पिछले तीन दशक से जिस भी सरकार में जो भी शिक्षा मंत्री बना, उसने यही कहा कि तबादला नीति हम बनायेंगे। फिर शिक्षकों को परेशानी नहीं होगी। मगर आज तक भी शिक्षा विभाग के पास तबादला नीति नहीं है। जब गुलाब चंद जी कटारिया शिक्षा मंत्री थे तब जरूर तबादला नीति के गम्भीर प्रयास हुए मगर प्रारूप फाइनल नहीं हो सका। अब समय आ गया जब आंध्रा, कर्नाटक, उड़ीसा, बंगाल आदि राज्यों की तर्ज पर राजस्थान में भी शिक्षक तबादला नीति हो। ताकि शिक्षक को नियमानुसार तबादले का लाभ मिले और तबादले के नाम पर शिक्षक को प्रताड़ित न किया जा सके। शिक्षक भीतर ही भीतर उद्वेलित है, उसकी सरकार को पहचान करनी चाहिए। नहीं तो शिक्षकों का ये गुस्सा कभी भी फूट सकता है।

— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘