वोट पड़ गये, निर्णय ईवीएम में बंद हो गया, अब कलाबाजियों का दौर, अपने ही नेताओं की कार सेवा शुरू
RNE, STATE BUREAU
राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर मतदान हो गया। वार- प्रतिवार भी हो गये। घात – प्रतिघात का दौर भी खूब चल लिया। नेताओं के बेतुके बयानों की कमी नहीं रही। जाति का जोर भी लगा। धर्म की आंधी में चुनाव को चढ़ाने के प्रयास भी हुवै। रिश्तेदारियों को भी वोट की ताकड़ी पर तौला गया। कुछ रिश्ते सुधरे तो कुछ बिगड़े भी। दलों के बीच ऐसा लगा जैसे पानीपत की लड़ाई लड़ी जा रही है, वोट की नहीं। शोर भी थम गया अब। दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने अपनी पार्टियों के आदेश पर दूसरी जगहों पर ये ही चक्कर चलाने में निकल लिये ताकि वहां के अपने उम्मीदवारों को लाभ दिला सकें।
वोट पड़ने के बाद दावों की पोटली भी सबने खोल दी। राजनीतिक विश्लेषक अपने तर्क से व्याख्या कर रहे हैं तो सट्टा बाजार भावों के भंवर से जीत हार की गणित को शेयर बाजार की तरह बारबार ऊंचा नीचा कर रहा है। जबकि सबको पता है कि हरेक का भाग्य तो ईवीएम में बंद हो गया। भाग्य में क्या लिखा है, इसका पता भी 4 जून को लग ही जायेगा। मगर तब तक का समय भी तो बिताना है, उसके लिए राजनीति करने वालों के पास राजनीतिक कलाबाजियां दिखाने का ही एकमात्र विकल्प बचा हुआ है। अब उसी का दौर शुरू हो गया है।
भाजपा और कांग्रेस, दोनों को पता है कि उनके ही कई नेताओं ने पार्टी उम्मीदवार का साथ नहीं दिया। विरोध किया या फिर निष्क्रिय होकर बैठ गये। कुल मिलाकर उन्होंने पार्टी व उसके उम्मीदवार को नुकसान पहुंचाया है। इस बार भाजपा व कांग्रेस दोनों ही अनुशासनहीनता को लेकर थोड़ी सख्त है। भाजपा का तो राज्य में शासन है और सत्ता में भागीदारी के अब निर्णय होने हैं। भाजपा कम हुवै मतदान को इश्यू बना चुकी है और हर लोकसभा प्रभारी से रिपोर्ट भी मांग चुकी है।
बताते हैं, कई उम्मीदवारों ने भी अपनी पार्टी के नेताओं की शिकायत प्रदेश संगठन से की है। उसके लिए कुछ प्रमाण भी दिए गए हैं। बड़े नेताओं तक की शिकायतें हुई है। इस कलाबाजी में संगठन व कुछ उम्मीदवारों ने अपनी नापसंद के नेताओं की शिकायत भी टिका दी है ताकि उनको राज में कोई लाभ न मिले। जिन नेताओं को सजा दिलवा संगठन से हटवाना है, उनको भी कलाबाजी खिलाने के इंतजाम किए गये है। हर विधानसभा क्षेत्र में इस तरह की राजनीतिक कलाबाजियां की गई है और उसका प्रभाव भी चुनाव परिणाम आने के बाद दिखाई देगा। कार सेवा की है तो कुछ असर तो होगा ही। संगठन के स्तर पर भाजपा ज्यादा गम्भीर है तो यहां कार सेवा भी बड़े पैमाने पर हुई है, हो भी रही है।
कईयों का मनोनयन टलेगा, कईयों के पद जायेंगे तो कई सरकार से मरहूम रहेंगे। ठीक इसी तरह कईयों को मनोनयन मिलेगा, कईयों को पार्टी में पद मिलेगा तो कई सरकार में भी आयेंगे। सब पर राजनीतिक कलाबाजी व कार सेवा का असर रहेगा, इतना तो तय है।
कमोबेश कांग्रेस की भी यही स्थिति है। उम्मीदवारों ने अपनी नापसंद के नेताओं, कार्यकर्ताओ व पदाधिकारियों की शिकायत के पुलिंदे पीसीसी तक पहुंचाने आरम्भ कर दिए हैं। कुछ वीडियो भी पहुंचाए गये हैं। कांग्रेस में सांगठनिक फेरबदल होना है और उसकी पृष्ठभूमि भी नेता इससे बना रहे हैं। अपनी नापसंद के नेताओं को बाहर करने की पूरी कोशिश है, उसी के लिए कार सेवा हो रही है। कुल मिलाकर जो कार सेवा सही करेगा, वो चुनाव जीते या न जीते, कलाबाजी में जरूर जीत जायेगा। 4 जून के बाद पता चल जायेगा कि दोनों दलों में कौन कौन इस काम मे भी सफल रहा है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘