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सफील को कौन खा गया ? धरोहर की सुध क्यों नहीं ली ?, शहर पूरा घिरा था मनमोहक सफील से, रक्षा कवच था वो

  • पहले उसमें से रास्ते निकले, फिर सफील ही गायब हो गई
  • भूमाफियों ने सफील तक को कब्जे कर लिया
  • धरोहर गधे के सिर के सींग की तरह गायब हो गई, प्रशासन देखता भर रहा

रितेश जोशी
ritesh joshi

RNE Special.

जब राजशाही थी तब हर शासक को सबसे ज्यादा चिंता अपनी जनता की रहती थी। उस समय लड़ाई के आज की तरह साधन तो थे नहीं। जनता को महफूज रख राजा की सेना लड़ाई लड़ती थी। प्रकाश की व्यवस्था भी पूरी नहीं थी।

अंधेरे में दुश्मन आकर जनता को नुकसान न पहुंचा जाये, इससे सावधानी के लिए ही शहर के चारों तरफ दरवाजे बनाये हुए थे, जो रात को बंद कर दिए जाते थे। दरवाजों पर पहरा रहता था ताकि जनता आराम की नींद सो सके। ये दरवाजे बीकानेर की धरोहर थे। जो आज अपनी बेनूरी पर आंसू बहा रहे है। मगर उसे आज के शासक नगर निगम, विकास प्राधिकरण देख भी नहीं रहे।

इन दरवाजों की तरह ही सफील भी बनी थी, जिससे पूरा शहर कवर रहता था। इस सफील कि ऊंचाई अधिक थी और उस पर राज के सैनिकों का 24 घन्टे पहरा चलता था। ताकि अगर दुश्मन आये तो दूर से दिख जाये। एक तरह से यह सफील शहर का बड़ा रक्षा कवच था। इसकी सुंदरता और मजबूती देखने लायक थी। शहर की शान थी यह सफील।

नई पीढ़ी को तो दिखी नहीं सफील:

सफील जो इस शहर का रक्षा कवच थी वो नई पीढ़ी को दिखाई ही नहीं दी। जिन बच्चों की उम्र 25 साल तक की है, उन्होंने तो इसे देखा ही नहीं। क्योंकि भूमाफिया इस सफील को खा गये। इसे पूरी तरह गायब कर दिया। अब तो इक्का दुक्का जगह इसके अवशेष ही बचे हुए है।

साफ है माननीयों ने सुध नहीं ली:

इससे ये तो स्पष्ट है कि इस धरोहर की माननीयों ने सुध नहीं ली। स्थानीय निकायों व जिला प्रशासन ने आंखे मुंदी या फिर भूमाफियों को सहयोग दिया, जिस कारण ये धरोहर एक कहानी बन गई। केवल पुराने चित्रों में ही अब ये दिखाई देती है। जन प्रतिनिधियों ने भी इसको बचाने के कोई प्रयास नहीं किये। वो भी कम जिम्मेवार नहीं।

यूं गायब हुई धरोहर सफील:

धीरे धीरे सफील गायब हुई है। जब राज या प्रशासन कुछ नहीं बोला तो भूमाफियाओं का हौसला बढ़ता गया और वे लगभग सफील खा गये। जन सुविधा के नाम पर पहले इसे तोड़ कई जगह रास्ते निकाले गए। यदि उस समय रास्ते निकालते, मगर सफील जैसी धरोहर के हैरिटेज को बचाकर, तो ये कायम रहती। रास्ते निकलने से इस पर प्रहार हुआ।


फिर धीरे धीरे इस पर भूमाफियाओं की नजर पड़ी। उन्होंने खाली जमीन को साथ कर सफील तोड़ी और लोगों को बेचना शुरू कर दिया। मकान बनने लग गये। शासन व प्रशासन मौन रहा तो धीरे धीरे भूमाफिया पूरी सफील ही खा गये।

जनप्रतिनियो से गुहार:

बीकानेर सांसद अर्जुनराम जी मेघवाल, विधायक जेठानन्द जी व्यास, विधायक सिद्धि कुमारी जी, वरिष्ठ नेता बी डी कल्ला जी से ये शहर अपनी धरोहर, अपने रक्षा कवच की फिर मांग कर रहा है। ये संभव न हो तो बुलडोजर की मांग कर रहा है। सफील के कब्जों को देखकर हर शहरवासी का दिल रोता है। उसे राहत तो ये जन प्रतिनिधि ही दिला सकते है। बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धि कुमारी जी का तो बड़ा दायित्त्व बनता है। ये सफील जन हित में उनके पूर्वजों ने बनाई थी, जिसे भूमाफिया खा गए। राजशाही नहीं रही मगर जनता ने अपना विधायक लगातार 4 बार सिद्धि कुमारी जी को चुना है। उनको कुछ प्रयास करना चाहिए।

क्या सुझाव है बुद्धिजीवियों का ?

साहित्यकार, चित्रकार नगेन्द्र नारायण किराड़ू का कहना है कि सफील शहर के सौंदर्य को निखारने वाली थी और धरोहर थी। हेरिटेज मान उसे विकसित किया जाना चाहिए। जहां जहां यह बची हुई है वहां वहां उसे संरक्षित करना चाहिए। फिर कुछ कब्जे हटाकर उसे देख वहां हेरिटेज लुक में इसे फिर से बनवाना चाहिए। कब्जों को तो तोड़ना चाहिए। इनको तो अब भी धरोहर नष्ट करने की सजा कोई देगा तो हर शहरवासी उसके साथ खड़ा होगा।

नगेन्द्र नारायण किराड़ू, साहित्यकार, चित्रकार