
शहर की सभी डेयरी को शिफ्ट क्यों नहीं करते, खतरे से क्यों अंजान ?
- शहर के भीतरी हिस्से में अनगिनत डेयरी स्थित है
- इनके लिए खुले में अलग से जगह आवंटित क्यों नहीं होती
- गौवंश की सुरक्षा, प्रदूषण से उनका बचाव भी हमारा दायित्त्व है
- छोटी गलियों में गौवंश निकलता है तो गंदगी का शिकार होता है
- दुर्घटनाएं भी बढ़ती है, गौवंश व लोग चोटिल होते है
- निगम को अब वादा पूरा करना चाहिये
रितेश जोशी
RNE Network.
पहले शहर छोटा था। आबादी भी पुराने शहर या यूं कहें कि परकोटे के भीतर कम थी। हर गली मोहल्ले में भीड़ न के बराबर थी। छोटे मकान थे, बड़े वाहन नहीं थे, इस कारण एक घर को अधिक जगह नहीं चाहिए थी। जरूरतें कम थी।
हर मोहल्ले के किनारे खुली जगह पर एक छोटी डेयरी होती थी, जिससे उस मोहल्ले के लोग व आसपास की गलियों के लोग अपने घर के लिए दूध लाया करते थे। उस डेयरी से किसी को कोई अड़चन ही नहीं थी। न गौवंश के लिए कोई रिस्क थी।
हालात समय के साथ बदले:
समय आगे बढ़ा तो आबादी बढ़ी। लोगों की जरूरतें बढ़ी। अब घर बड़े होने लगे। लोगों को वाहन की भी आदत पड़ गई। आर्थिक क्षमता के अनुसार वाहन भी आ गये। खुली जमीन भी कम होने लगी क्योंकि लोगों ने मकान बनाने शुरू कर दिए। अब गौवंश के लिए भी रिस्क बढ़ गई।
डेयरी आबादी में आ गई:
जो डेयरी एक समय में अलग थलग व आबादी से परे थी अब वो डेयरी आबादी के बीच में आ गई। गौवंश को भी गली, मोहल्ले में बैठने की जगह नहीं बची। वाहनों से उसे चोट लगनी शुरू हो गई। प्रत्युत्तर में अब गौवंश या सांड से लोग भी चोटिल होने लग गए। गली मोहल्ले में लोगों को निकलने के लिए जगह कम मिलने लगी। आपस के झगड़े बढ़ गये। डेयरी अब अखरने वाली बन गई। आबादी बढ़ती गई। जगह कम होती गई और सैकड़ों डेयरी अब रिहायशी मकानों के बीच आ गई। स्थिति चिंताजनक हो गई।
अब शहर में अनगिनत डेयरी:
वर्तमान में स्थिति बहुत ही ज्यादा चिंताजनक है। सैकड़ो डेयरियां शहरी परकोटे के भीतर है और गौवंश व सांड के कारण यातायात भी बाधित होता है। दुर्घटनाएं भी होती है। गौमाता को भी नुकसान पहुंचता है।
डेयरी संचालक भी इससे चिंतित व दुखी है। पर डेयरी व अपने गौवंश को लेकर जाए कहाँ। बाहर जमीन नहीं मिलती, मिलती है तो बहुत महंगी। जिसे खरीदना उनके बूते के बाहर की बात है। गौमाता को वे छोड़ भी नहीं सकते।
सरकार का दायित्त्व है व्यवस्था:
जब शहर विस्तार लेता है तो उसे व्यवस्थित करना सरकार का दायित्त्व होता है। नगर निगम व नगर विकास प्राधिकरण संस्थान का यही तो काम है कि आवश्यकताओं के समूहों की प्रतिस्थापना का काम वो करे।
ऐसा नहीं है कि इस पर विचार नहीं हुआ हो। जन प्रतिनिधियों की जब निगम में सरकार होती है तो शहर की डेयरी को दूर स्थापित कराने की बात भी प्रिन्सिपली होती है। इनके लिए एक अलग कॉलोनी बनाने का सुझाव आता है, उस पर सहमति बनती है। ये सहमति एक बार नहीं, अनेक बार बन चुकी है।
हर बार केवल वादा, निभाया नहीं:
नगर निगम हो या कोई जन प्रतिनिधि, एक बार नहीं अनेक बार डेयरी वालों के लिए दूर एक अलग कॉलोनी बनाने की बात कह चुका है। उस कॉलोनी में रियायती दर पर डेयरी संचालकों को जमीन आवंटित करने की तक की बातें हो चुकी है। अब वादों की इंतहा हो गई। गौवंश की सुरक्षा, आम नागरिकों की राहत के लिए नगर निगम को ये कॉलोनी बनानी चाहिए। निगम को अपना वादा पूरा करना चाहिए। जन प्रतिनिधियों को इसमें पहल करनी चाहिए।
ये कहना है नेताओं का:
देहात कांग्रेस अध्यक्ष बिसनाराम सियाग का कहना है कि डेयरी बड़ी जरूरत है। भारतीय समाज गौमाता की पूजा करता है और उसके प्रति लोगों अगाध श्रद्धा है। उसकी सुरक्षा में निगम को कोताही नहीं बरतनी चाहिए। अविलंब डेयरी वालों के लिए शहर के बाहर एक कॉलोनी चिन्हित कर उनको रियायती दर पर जमीन आवंटित करनी चाहिए। पार्टी अपने स्तर पर सरकार तक यह मांग पहुंचाएगी।
बिसनाराम सियाग, देहात कांग्रेस अध्यक्ष
नगर निगम के पार्षद रहे कांग्रेसी नेता पारस मारू ने कहा कि मैने पिछले कार्यकाल में अनेक बार निगम प्रशासन को गौमाता के हित में शहर से दूर एक कॉलोनी डेयरी वालों के लिए बनाने का सुझाव दिया। हर बार निगम प्रशासन व महापौर ने उस पर सहमति दी। मगर अब तक इस पुनीत कार्य को नहीं किया गया। अब यदि निगम ने ये नहीं किया तो हम पहले पशुपालन मंत्री व प्रभारी मंत्री के सामने इस जायज मांग को रखेंगे। यदि फिर भी इसे नहीं स्वीकार किया गया तो गौमाता के लिए हम सड़क पर उतरेंगे और आंदोलन करेंगे।
पारस मारू, निवर्तमान पार्षद, नगर निगम