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यूपीएस, महंगाई, रोजगार क्यों नहीं बनते चुनावी मुद्दे, उप चुनाव भी महत्ती है

RNE Special

राज्य की 7 सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव का माहौल पूरी तरह गर्माया हुआ है। भाजपा, कांग्रेस, भारतीय आदिवासी पार्टी व रालोपा ने अपनी पूरी शक्ति लगा रखी है। भाजपा ने जहां हर सीट पर दो दो मंत्री, सांसद, विधायक व पार्टी के बड़े नेताओं को उतार रखा है तो कांग्रेस भी पीछे नहीं। उसने भी इन 7 सीटों पर बड़े नेताओं, सांसदों व विधायकों के साथ राज्य भर के नेताओं को उतारा हुआ है। आदिवासी पार्टी चौरासी व सलूम्बर सीटों पर लड़ रही है तो उसने वहां अपने सभी नेताओं को सक्रिय किया हुआ है। रालोपा के लिए नागौर की खींवसर सीट प्रतिष्ठा का सवाल है। क्योंकि उसके पास यही एक सीट थी। रालोपा विधानसभा में अपना एक सदस्य तो चाहती ही है, इस कारण हनुमान बेनीवाल ने यहां अपना सर्वस्व झोंक रखा है। राज्य भर के अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को उतारा हुआ है।

इस बार वे इंडिया गठबंधन से नहीं लड़ रहे, इस कारण उनको भाजपा व कांग्रेस, दोनों से मुकाबला करना पड़ रहा है। भाजपा यानी सरकार, ज्योति मिर्धा, रिछपाल मिर्धा आदि ने उनको परास्त करने के लिए अपने आप को झोंक रखा है। हनुमान बेनीवाल ने लोकसभा चुनाव में ज्योति मिर्धा को ही हराया था। इस कारण वे ज्यादा सक्रिय है। हनुमान बेनीवाल ने यहां अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को खड़ा किया है, इस कारण उनके लिए ये सीट वजूद बचाने के साथ व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का सवाल भी बनी हुई है।

अलग अलग सीट के मुद्धों की बात करें तो लगता है यहां बड़े मुद्दे है ही नहीं। दौसा सीट पर चुनाव रोचक इस कारण है कि यहां दिग्गज मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई मैदान में है तो कांग्रेस से सचिन पायलट व मुरारीलाल मीणा की पसंद बैरवा उतरे हुए हैं। नेताओं की आपसी टकराहट व मीणा – गुर्जर मतदाताओं की चाहत ही यहां मुद्दा बनी हुई है। देवली उणियारा सीट पर भी कमोबेश यही मुद्दे बने हुए हैं। यहां भी नेताओं का वजूद व जातिगत समीकरण ही चुनाव को आगे ले जा रहा है।

सलूम्बर व रामगढ़ सीटों को तो पार्टियां पूरी तरह से सहानुभूति के आधार पर ही लड़ रही है। भाजपा ने सलूम्बर में दिवंगत विधायक की पत्नी को उतारा हुआ है तो रामगढ़ में कांग्रेस ने दिवंगत विधायक के छोटे बेटे को खड़ा किया हुआ है। दोनों दल इन सीटों पर अन्य मुद्दे खड़े करने के बजाय सहानुभूति को ही आधार बना रही है। झुंझनु सीट भी सहानुभूति व जातीय समीकरणों के मुद्धों पर लड़ी जा रही है। ओला परिवार से कांग्रेस उम्मीदवार है तो स्व शीशराम ओला तक को याद किया जा रहा है। जातीय समीकरण पक्ष में करने का प्रयास तो भाजपा व कांग्रेस, दोनों कर रहे हैं। चौरासी की सीट आदिवासी पार्टी आदिवासी अस्मिता को आधार बना लड़ रही है। यहां भी पूरी तरह से स्थानीय मुद्दा हावी है।

दूसरी तरफ राज्य की जनता इस बात को लेकर अचंभित है कि जीवन से जुड़े अन्य मुद्दे इस उप चुनाव में क्यों नहीं उठ रहे। भाजपा सरकार को बने एक साल होने को है मगर अब भी उसने कर्मचारियों की ओल्ड पेंशन स्कीम पर कोई निर्णय नहीं किया। जबकि केंद्र सरकार यूपीएस ला चुकी। उस पर राज्य सरकार का मौन राजनीतिक ही है। उसे विपक्ष व कर्मचारी मुद्दा बना ही नही रहे। ठीक इसी तरह पिछली सरकार के समय बने नये संभाग व जिलों की समीक्षा तो सरकार ने कर ली। कुछ जिले समाप्त भी होंगे। मगर ये चुनावी मुद्दा नहीं बन रहा। फ्री की बिजली सहित अन्य योजनाओं पर भी निर्णय लंबित है। उसको भी चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जा रहा। देश महंगाई व बेरोजगारी की समस्या से झुझ रहा है, मगर वो भी मुद्दे नहीं।

कुल मिलाकर एक बार फिर उप चुनाव मुद्धों पर नहीं, सहानुभूति व जाति, वर्ग, धर्म पर लड़े जा रहे हैं। ये लोकतंत्र के लिए चिंता की बात तो है।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।