Skip to main content

कांग्रेस व भाजपा क्या राज्य से ही किसी को राज्यसभा भेजने का साहस करेगी, बड़ा सवाल

आरएनई,बीकानेर।

राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई। राजस्थान में भी तीन सीटों पर चुनाव होना है। विधानसभा चुनाव परिणाम से इस बार सारा गणित बदल गया है। मतों के हिसाब से दो भाजपा के व एक कांग्रेस का उम्मीदवार जीतना है। किसी बड़े उलटफेर की आशंका तो दिखती नहीं। क्योंकि कांग्रेस के पास 70 + 1 वोट है। उनमें टूट की कोई संभावना ही नहीं। यही स्थिति सत्तारूढ़ भाजपा की है, उसमें भी कोई बिखराव नहीं होगा।
भाजपा और कांग्रेस का ऐसा कोई एक्शन भी नहीं है कि वे कुछ उलटफेर करना चाहते हों। इस वजह से तय है कि दोनों दल जिसे भी उम्मीदवार बनायेंगे, उनका जीतना तय है। बड़ी बात जीत के श्रम की नहीं है, उम्मीदवारों की है। कौन उम्मीदवार बनेंगे, ये ही एक बड़ा सवाल है।
राजस्थान में परिपाटी रही है कि अधिकतर बाहरी उम्मीदवार ही राज्यसभा चुनाव में आते हैं। ये स्थिति दोनों दलों की है। भाजपा भी जब राज्य में बहुमत होता है तब अपने उन बाहरी उम्मीदवारों को उतारती है जो लोकसभा का चुनाव नहीं जीत सकते। या हारे हुए होते है या फिर कोई रिटायर्ड अधिकारी होते हैं। कांग्रेस की भी यही नीति है। वो भी अधिकतर इसी श्रेणी के उम्मीदवार उतारती है। इससे पहले के चुनाव में कांग्रेस ने जो तीन उम्मीदवार उतारे, तीनों बाहरी थे। रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक व प्रमोद तिवारी को राजस्थान से भेजा हुआ है। भाजपा के भूपेंद्र यादव या पूरी भी राज्य के नहीं।
इस बार दोनों पार्टियों के भीतर से आवाज भी कुछ समय पहले उठी थी कि जिस राज्य की राज्यसभा सीट का चुनाव हो, उम्मीदवार भी उसी राज्य से उतारा जाना चाहिए। मगर लगता नहीं कि दोनों पार्टियां इस बात, भाव को मानेगी। दोनों पार्टियों की तरफ से जो नाम चर्चा में है, उनमें लगभग बाहरी है। जबकि दोनों दलों के पास अनेक ऐसे नेता हैं जो या तो विधानसभा चुनाव हारे हैं या चुनाव लड़े नहीं है। लोकसभा लड़ नहीं सकते मगर पार्टी के लिए संसद में उपयोगी है। बड़ी बात ये है कि वे राजस्थान के नेता हैं। भाजपा में इस बार राजेन्द्र राठौड़, सतीश पूनिया चुनाव हारे हैं, योग्य भी है। कांग्रेस में भी हेमाराम चौधरी है, दीपेंद्र सिंह है। मगर इन पर पार्टियों की नजरें जायेगी, लगता नहीं। राजनीति की सुचिता तो ये कहती है कि उसी राज्य का उम्मीदवार हो, मगर ये तब सम्भव है जब राजनीतिक दल साहस करे। इस बार भी ऐसा होता दिख नहीं रहा।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘