रचना की सफलता पाठकों पर ही निर्भर : डाॅ. बादल
आरएनई,जोधपुर।
साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली एवं राजस्थानी विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में विश्वविद्यालय के बृहस्पति भवन में गुरुवार को ‘लेखक सूं मिळौ’ परिचर्चा आयोजित हुई। इसमें राजस्थानी साहित्यकार मंगत बादल के साथ संवाद हुआ।
लेखक ने सर्वप्रथम अपनी बात का आरंभ समाज की सबसे सशक्त परिवार कविता की पंक्तियों से करते हुए अपनी साहित्यिक यात्रा पर बात आरंभ की। लेखक ने बताया कि मैंने अपनी साहित्य यात्रा की शुरुआत प्राथमिक विद्यालयी शिक्षा से की जिसमें शहीद भगत सिंह, सुखदेव और गुरु गोविंद सिंह जैसे महापुरुषों को आधार बनाकर आरंभिक काव्य सृजन किया। आरंभिक दौर में कादम्बनी जैसी पत्रिका में भले ही निराशा मिली, लेकिन पंजाब केसरी जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में ‘दादा’ प्रथम कहानी प्रकाशित हुई। जो लेखक की साहित्य साधना की प्रथम सीढ़ी है।
कहानी के साथ ही मूलतः हरियाणा प्रदेश के निवासी होने के नाते वहां लोक में प्रचलित विभिन्न देशी राग – रागिनियों में पद विशेष रूप से लेखक के काव्य कौशल को बढ़ाने में सहायक रहे। राजकीय सेवा में व्याप्त भ्रष्टाचार से तंग आकर लेखक ने कोलेज शिक्षा में हिंदी विषय के प्राध्यापक पद पर सेवाएं देते हुए भी सतत साहित्य साधना जारी रखी। राजस्थानी,पंजाबी एवं हिन्दी तीनों भाषाओं पर सम्मान अधिकार रखने वाले लेखक डॉ. मंगत बादल ने अपने प्रसिद्ध काव्य संग्रह – मत बांधो आकाश, शब्दों की संसद, इस मौसम में,हम मनके इक हार के,कैकेयी,अच्छे दिनों की याद में, साक्षी रहे हो तुम’ में से कुछ चुनिंदा कविता – पाणी, विधायक की हार, सरपंच साहब का कुता,रेत री पुकार जैसी राजस्थानी भाषा की कविता का काव्य पाठ भी किया।
लेखक ने काव्य रचनाधर्मिता के साथ ही अपनी साहित्य यात्रा में ” कागा सब तन, सुख की सांस एवं मुरदाख़ोर जैसे लोक प्रसिद्ध प्रकाशित कहानी – संग्रहों से परिचित करवाया था। लेखक ने राजस्थानी भाषा में रचित अपने प्रसिद्ध काव्य – संग्रह दसमेस महाकाव्य, मीरां जैसा प्रबंध काव्य एवं इतरा हुआ सवाल जैसे नवगीत के माध्यम से राजस्थानी भाषा साहित्य को समृद्ध किया। साथ ही लेखक ने कुदरत रो न्याव जैसे काव्यमयी कहानियों से सभागार में उपस्थित साहित्य अध्येताओं को परिचित कराया। लेखक ने अपनी साहित्य यात्रा के अंतर्गत न केवल कविता, गीत एवं कहानी संग्रह पर ही लेखनी चलाई अपितु सावण सुरंगो आसर् यो,बात री बात, तारा छांई रात , सूनी हथाई जैसे ललित निबंध के माध्यम से भी राजस्थानी भाषा एवं साहित्य को गरिमा प्रदान की।
लेखक ने अपनी साहित्य यात्रा के जीवन में पड़ने वाले विभिन्न पड़ावों से परिचित करवाते हुए बताया कि एक सफल आलोचक को रचना एवं पाठकों के मध्य किस प्रकार संबंध स्थापित करते हुए रचनाधर्मिता को जारी रखना चाहिए। लेखक ने अपनी बात में एक सफल साहित्यकार को निष्पक्ष एवं स्वतंत्र रूप से युग की धारा के अनुरूप साहित्य साधना करते हुए सामंजस्य स्थापित करने पर भी प्रकाश डाला। यह भी स्पष्ट रूप से बताया कि एक सफल लेखक वहीं हो सकता है जो युग के अनुरूप साहित्य की विविध विधाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करने हुए पाठकों को सदैव रचना के साथ – साथ लिए चलता है। रचना की सफलता पाठकों पर ही निर्भर करती है। किसी भी रचना में वर्णित विषय एवं उनका प्रवाह ही रचना को जनसाधारण तक पहुंचाने में सहायक होता है। जो रचना जितनी सहज एवं जन साधारण की भाषा में होगी वह उतनी ही लोक प्रसिद्ध होगी और लोक के सामान्य पाठकों की कंठाहार बनेगी।
ये रहे मौजूद – इस अवसर पर प्रोफेसर ( डाॅ.) अर्जुनदेव चारण, प्रोफेसर के.एल. रैगर, प्रोफेसर के. एन. उपाध्याय, डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित, मधु आचार्य आशावादी, माधव हाडा, मीठेश निर्मोही, चांदकौर जोशी, बसंती पंवार, डाॅ. किरण बादल, डाॅ. धनंजया अमरावत, संतोष चौधरी, डाॅ.भींवसिंह राठौड, डाॅ.कप्तान बोरावड़, सवाईसिंह चारण, राम किशोर फिड़ोदा, कप्तान बोरावड़, कैलाशदान लालस, डॉ.रामस्वरूप बिश्नोई, विष्णु शंकर, जगदीश मेघवाल, नीतू राजपुरोहित, वर्षा सेजू, माधो सिंह, आरती भार्गव, मीनाक्षी रावल सहित अनेक प्रतिष्ठित रचनाकार, शिक्षक, शोध-छात्र एवं मातृभाषा प्रेमी मौजूद रहे ।