ये राज बोलता, सुराज बोलता.. जन-जन का प्यारा इसलिए हरीश भादाणी जनकवि
आग ऊपर से
आंच नीचे से
वो धुआंए कभी
झलमलाए कभी
एक आसन बिछाया है मन
रेत में नहाया है मन…
पंक्तियों से रेत को ऊंचाईयां देने वाले जन कवि हरीश भादानी का आज स्मृति दिवस है। ये कवि आज भले ही सशरीर हमारे बीच न हो मगर उसके गीत, जन जन से जुड़ी कविताएं आज भी लोगों की जुबान पर है। बीकानेर की धरती के इस लाडले कवि ने अपने शब्दों से पूरे देश में अलहदा पहचान बनाई।
जन जन के विषयों पर लिखे गए उनके गीत मजदूर, किसान, छात्र आज भी गुनगुनाते है। जिन गीतों की बेबाकी इस कवि की ऊंचाइयों को दिखाती है। हरीश भादानी जन के पैरोकार थे इसलिए बेबाकी से बोलते थे। सत्ता को सीधे चुनोती देते थे। इस वजह से ही प्रिय कवि थे। उन्होंने सत्ता से गलबहियां नहीं डाली। कुछ पाने के लिए रचना नहीं की। आम आदमी की पीड़ा, संत्रास, त्रासदी को ही हर समय स्वर देने का प्रयास किया। इस कारण ही उनकी कविता, गीत के स्वर प्रगतिशील थे।
ये राज बोलता
ये सुराज बोलता
ये पेटी का पूत
लोकराज बोलता…
लोकतंत्र में आई विसंगतियों पर हरीश भादानी का कड़ा प्रहार आज भी लोगों को याद है। वे लोकतंत्र व चुनाव पद्धति में आई विसंगतियों पर प्रहार करने से उस समय भी जरा सा नहीं चूके। तभी तो सबके वे लाडले कवि थे। जन आंदोलनों की सभाओं, प्रदर्शन में उनके गीत गाये जाते थे, वो भी सामूहिक रूप से। सड़क पर जब किसी कवि के गीत लोगों के कंठों से निकलते हैं, तभी तो उनको जन कवि का सम्मान मिलता है। वे खुद जन आंदोलनों में शामिल होकर गीत गुनगुनाते थे।
रोटी नाम सत है
खाये सो मुगत है
ऐरावत पर इंदर बैठे
बांट रहे टोपियां
झोलियां फैलाये लोग
भूल रहे सोटियां
रसोई में लाव लाव
भैरवी बजत है
रोटी नाम सत है..
उनका ये अमर जन गीत आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा हुआ है। आम आदमी की पीड़ा व सत्ता के प्रहार को स्वर देने वाला हरीश भादानी का ये गीत अमर है। लोगों को याद है, किसने लिखा, भले ही याद न हो।
उन्होंने वेदों को पढ़ा और उनकी मूल भावनाओं के आधार पर गीत रचे। वे हिंदी साहित्य के वो गीतकार थे जिनकी महक देश के हर हिस्से तक थी। एक बार डॉ नंदकिशोर आचार्य ने कहा भी था कि नव गीतकार के रूप में उनका हिंदी साहित्य में मूल्यांकन ही नहीं हुआ। जबकि वे हिंदी साहित्य के वो नव गीतकार थे जिन्होंने पूरी धारा को ही बदल दिया। आज उनकी स्मृति का दिन है। ऐसे लाडले कवि को सलाम..!!