Skip to main content

लोकसभा चुनाव में भी सचिन पायलट व वसुंधरा राजे बड़े फेक्टर, असर भी पड़ेगा

आरएनई,बीकानेर।

आरएनई,बीकानेर। भाजपा व कांग्रेस अब अपनी पूरी शक्ति लोकसभा चुनाव में लगा रहे हैं। पर्दे के पीछे दोनों दलों की रणनीति बनने लगी है। भाजपा ने 8 कलस्टर बना उनके नेता तय कर दिए तो कांग्रेस के पर्यवेक्षक दौरा कर रिपोर्ट तैयार कर चुके हैं। कांग्रेस में अब पैनल बनाने की कवायद हो रही है तो भाजपा के नेता प्रवास का कार्यक्रम तय करने में लगे हुए हैं। दोनों ही दलों का केंद्रीय नेतृत्त्व भी राजस्थान के नेताओं के बराबर संपर्क में है।

मगर दोनों ही दलों के भीतर सब कुछ ठीक है, ये कहना थोड़ा मुश्किल काम है। राजस्थान की राजनीति में भाजपा के लिए वसुंधरा राजे का बड़ा महत्त्व है तो कांग्रेस में सचिन पायलट की बड़ी जरूरत है। ये बात तो विधानसभा चुनाव के समय और परिणामो से ही साफ हो गई थी। दोनों दलों के लिए ये दोनों बड़े फेक्टर है, इससे असहमति हो ही नहीं सकती।

भाजपा ने चिंतन शिविर किया, प्रदेश कार्यसमिति की बैठक की और संभागवार चुनाव पर चर्चा की, मगर कहीं भी वसुंधरा नजर नहीं आई। देखा जाये तो सीएम भजनलाल के शपथ लेने के बाद से वे दिख ही नहीं रही। यहां तक कि मोदी व अमित शाह जयपुर में थे, तब भी नहीं दिखी। मोदी भाजपा कार्यालय आये, विधायकों की बैठक भी ली। पर वहां भी राजे नदारद थी। उनकी इस अनुपस्थिति के कई राजनीतिक अर्थ निकाले जा रहे हैं। कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। जो लाजमी भी है।

राजे को इस बार नेतृत्त्व नहीं मिला, न उनके निकटस्थ मंत्री बन पाये। कालीचरण सराफ, प्रताप सिंह सिंघवी, बाबूसिंह, सिद्धि कुमारी आदि कई वरिष्ठ विधायक होते हुए भी नयों को अवसर मिला। जाहिर है, ये बात राजे के साथियों को व स्वयं उन्हें पसंद तो आई नहीं होगी। अब उसका रिएक्शन क्या होता है, ये आने वाला समय बतायेगा। लेकिन लोकसभा चुनाव पर इसका असर तो पड़ेगा। क्योंकि राजे के समर्थक सभी जिलों में है। भाजपा राजे फेक्टर को कैसे हल करती है, उस पर बहुत कुछ निर्भर करता है।

कांग्रेस की स्थिति को भी ज्यादा ठीक नहीं कहा जा सकता। पार्टी में सचिन पायलट बड़ा फेक्टर है। ये बात विधानसभा चुनाव व उसके परिणाम से स्पष्ट हो चुकी है। गुर्जर बाहुल्य की 12 से 14 सीट जो पिछली बार कांग्रेस ने जीती थी, इस बार हारी है। सचिन की उपेक्षा से गुर्जर नाराज थे। पिछली बार सचिन का नेतृत्त्व था तो जीते, इस बार अशोक जी का था तो हारे। अब भी गहलोत व पायलट के मध्य सब कुछ ठीक नहीं है, ये तो बयानों से ही साफ है। फिर सचिन को नेता प्रतिपक्ष या पीसीसी अध्यक्ष बनाने के बजाय पार्टी का महासचिव बना छत्तीसगढ़ भेज दिया। यहां गहलोत से जुड़े रहे नेताओं को कमान मिलने की संभावना है। इस हालत का असर लोकसभा चुनाव पर पड़ना ही है। अब देखना है कि कांग्रेस पायलट फेक्टर को कैसे हल करती है। दोनों दलों के लिए इन दो नेताओं का बड़ा महत्त्व है, इससे कोई इंकार नहीं कर सकता।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘