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शिक्षा पाठ्यक्रम में बदलाव की तैयारी, कब सरकारें ध्यान देगी मातृभाषा में पढ़ाने पर

आरएनई,बीकानेर।

राजनीति में आजकल एक रिवाज बन गया है। सरकार आते ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में बदलाव का 2013 में राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने पाठ्यक्रम में बदलाव किया, वो पाठ्यक्रम जो पहले चल रहा था। 2018 में कांग्रेस की सरकार बन गई तो उस समय बने शिक्षा मंत्री ने फिर पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिया। अब 2023 में फिर भाजपा की सरकार बनी है तो नये बने शिक्षा मंत्री ने कह दिया कि पाठ्यक्रम में बदलाव किया जायेगा। कई प्रसंग जोड़े जायेंगे तो कई हटाये भी जायेंगे।हर नई सरकार और किसी विभाग की नीतियों में बदलाव करे या न करे, मगर पाठ्यक्रम में बदलाव जरूर करती है। स्कूली शिक्षा को ही प्रयोगशाला बनाया जाता है। मजे की बात ये है कि चाहे किसी भी दल की सरकार बने, वो पाठ्यक्रम को बदलती अवश्य है। ये बदलाव का निर्णय सरकार के स्तर पर ही किया जाता है। स्कूली शिक्षा में पढ़ रहे बच्चों से इसके लिए कुछ भी नहीं पूछा जाता है। उनको बिना पूछे बदलाव करके नया पाठ्यक्रम उन पर थोंप दिया जाता है। पाठ्यक्रम में बदलाव की मांग न छात्र करते हैं, न छात्र संगठन करते हैं, न शिक्षक करते हैं, न शिक्षण संस्थाएं करती है, न शिक्षाविद करते हैं, मगर फिर भी पाठ्यक्रम बदल दिया जाता है। अब बदलाव को स्वीकारना शिक्षकों व छात्रों की मजबूरी है, उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं। इसमें भी आश्चर्यजनक बात ये है कि पाठ्यक्रम केवल स्कूली शिक्षा का बदला जाता है, उच्च शिक्षा में बदलाव बहुत ही कम होता है। इसकी वजह आज तक समझ नहीं आई।स्कूली शिक्षा में ही हर सरकार बदलाव करती है। ठीक है, बदलाव करे। मगर उसका ध्यान बेसिक बात पर क्यों नहीं जाता जिसका उल्लेख देश की शिक्षा नीति में हुआ है। ये नीति तो पूरे देश में लागू है, शिक्षा मंत्री फिर बदलाव के समय इस पर ध्यान क्यों नहीं देते। शिक्षा नीति में साफ साफ लिखा है कि बच्चे को प्राथमिक यानी स्कूली शिक्षा उसकी मातृभाषा में दी जाये। ये बात देश के कई प्रदेशों ने मानी भी है। मगर राजस्थान में किसी भी दल की सरकार ने इस मूल बात को नहीं माना है, बस अपने हिसाब से पाठ्यक्रम में बदलाव किया है।राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी है मगर इस भाषा मे बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी ही नहीं जाती। सरकार पाठ्यक्रम बदले, मगर मातृभाषा की तो उपेक्षा न करे। अब यदि राजस्थान में राजस्थानी नहीं पढ़ाई जायेगी तो और कहां पढ़ाई जायेगी। बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र तो राजस्थानी पढ़ाने से रहे। जब पंजाब में पंजाबी, महाराष्ट्र में मराठी, बंगाल में बंगला, कर्नाटक में कन्नड़ पढ़ाई जा रही है और प्राथमिक यानी स्कूली शिक्षा का माध्यम है तो राजस्थान में राजस्थानी क्यों नहीं। इस तरफ भी तो शिक्षा मंत्री ध्यान दे। सदन में बैठने वाले 200 विधायक चुनाव में वोट मांगते समय जब इस भाषा का प्रयोग करते हैं तो फिर शिक्षा में क्यों नहीं। इस पर भी सरकार, मंत्री व विधायकों को सोचना चाहिए, जवाब देना चाहिए।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘