बीकानेर थियेटर फेस्टिवल ने बीकानेर को फिर से भारतीय रंगमंच में बनाया नाट्य राजधानी
RNE, BIKANER .
कहते हैं बड़े शहर व बड़े लोग इतिहास नहीं रचते। छोटे शहर के लोग ही बड़ा इतिहास आसानी से रच जाते हैं। जो रचते हैं वे ये कभी नहीं सोचते कि हम कुछ रचने जा रहे हैं। वे तो केवल ये सोचते हैं कि कलाकर्म हमारा धर्म है और हमें धर्म की पालना पूरी ईमानदारी से करनी है। कला समर्पण व प्रतिबद्धता के बाद जिस चीज की सबसे ज्यादा अपेक्षा करती है वो है ईमानदारी। क्योंकि कलाकर्म तो है ही ऋषिकर्म। यदि एक ऋषि में ईमानदारी नहीं तो फिर वो ऋषि ही नहीं। बीकानेर का रंगमंच ऐसे ही ऋषियों की गाथाओं से भरा पड़ा है। रंगमंच की दुनिया में यदि कहीं इतिहास लिखा या रचा जा सकता है तो केवल बीकानेर जैसे शहर में।
जब बीकानेर में एक साथ संकल्प नाट्य समिति, अनुराग कला केंद्र, रंगन, आयाम, क्षितिज आदि रंग संस्थाएं सक्रिय थी तब रंग समीक्षक डॉ नेमिचन्द्र जैन ने एक आलेख लिखा। उस आलेख में यहां की विपुल रंग गतिविधियों को देखते हुए बीकानेर को उत्तर भारत के रंगमंच की नाट्य राजधानी कहा था। उसके बाद रंगकर्म परवान पर था। मगर कुछ वर्षों के बाद नाट्य मंचन की रफ्तार सुस्त हो गई। उस सुस्ती के दौर में हर रंगकर्मी छटपटाहट महसूस कर रहा था। ये छटपटाहट युवा व गम्भीर रंगकर्मी सुधेश व्यास के मन मे थी। तब देश के एक नये राष्ट्रीय समारोह का बीज उनमें पड़ा।
अपने साथियों नवल व्यास, गोपाल सिंह, के के रंगा, सुनील जोशी आदि के साथ अपने इस सपने को साझा किया। तब एक साझा स्वप्न बना। जिसकी कल्पना बड़ी थी, मगर साधन सीमित थे। इन युवाओं का हौसला तो उससे भी कहीं बड़ा था। 7 साल पहले 2016 में पूरी ऊर्जा से इन रंगकर्मियों ने बीकानेर थियेटर फेस्टिवल की शुरुआत कर दी। लोग जुड़ते गये और कारवां बनता गया। कई सद्भावी सहयोग के लिए साथ आ गये। फेस्टिवल ने आकर ले लिया।
देश के सबसे बड़े नाट्य समारोह ‘ बीकानेर थियेटर फेस्टिवल ‘ का इस साल आठवां चरण है। अल्प अवधि में इस नाट्य समारोह ने अपनी ख्याति राष्ट्रीय नाट्य समारोह के रूप में बनाई है। देश का शायद ही कोई नाट्य दल हो जिसके मन में इस फेस्टिवल में मंचन की ईच्छा न हो। पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक के सभी नाट्य दल इस समारोह की तरफ टकटकी लगाये रहते हैं। मंचन की आस में। बीकानेर का हर रंगकर्मी अब इस बड़े रंग महायज्ञ से जुड़ा हुआ है। ये इस बात का परिचायक है कि बीकानेर के रंगकर्मियों ने ये साबित किया है कि सामुहिक कला की परिणीति है नाटक। अब ये फेस्टिवल बीकानेर की अस्मिता से जुड़ा हुआ है।
बीकानेर के इस आयोजन से अब जिला प्रशासन, व्यवसायी, उद्यमी, कर्मचारी, राजनेता, समाज सेवी, साहित्यकार, पत्रकार, आम आदमी, हर वर्ग जुड़ा हुआ है। देश में शायद ही ऐसा कोई शहर हो जिसमें इस तरह की एकता नाटक के लिए हो। फेस्टिवल में केवल नाट्य मंचन ही नहीं होता अपितु अलग अलग विषयों पर नाट्य चिंतन भी होता है। नाट्य प्रशिक्षण भी दिया जाता है। पुस्तक संस्कृति को जिंदा रखने के लिए पुस्तक प्रदर्शनी भी लगती है।
आठवां बीकानेर थियेटर फेस्टिवल खास है। इस बार राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल के चार नाटक मंचित हो रहे हैं। पूरे प्रदेश से रंगकर्मी इस समारोह को देखने के लिए आये हुए हैं। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि बीकानेर थियेटर फेस्टिवल ने बीकानेर को एक बार फिर भारतीय रंगमंच की नाट्य राजधानी बना दिया है।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘