Skip to main content

जिन्हें देखने-सुनने रातभर जागते : ‘अमरसिंह राठौड़’ रम्मत के ‘लखनवी नवाब’ पेंटर कालेश का निधन

RNE, BIKANER .

पेंटर कालेश का निधन हो गया। देश-दुनिया में मौजूद बीकानेरी रम्मतों के शौकीन लोगों ने जब यह खबर सुनी तो उनके मुंह से दुख-मिश्रित हैरानी के जो शब्द निकले वे कमोबेश ऐसे थे ‘लखनऊ के नवाब नहीं रहे!’

जी हां, यह पहचान बन चुकी थी पुरूषोत्तम आचार्य की। इनके असली नाम से गिने-चुने लोग ही जानते होंगे। प्रचलित नाम ‘पेंटर कालेश’ रहा, वह भी चित्रकारी प्रतिभा से मिला

परिजनों से मिली जानकारी के मुताबिक आचार्य बीते कुछ समय से ह्दय रोग से जूझ रहे थे। उनका अंतिम संस्कार गुरूवार को आचार्य जाति के पैतृक श्मशानगृह चौखूंटी पर किया गया। एक पुत्र, दो पुत्रियों सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए आचार्य ने रम्मत को देश-दुनिया में मान दिलाने के लिए संस्थागत रूप से भी बड़ी पहल की। वे मां चामुंडा, भैरवनाथ कला मंडल के संस्थापक अध्यक्ष बने।

इस संस्था के सचिव रम्मत कलाकार विप्लव व्यास बताते हैं, दिल की बीमारी के कारण अभी वे ‘अखाड़े’ में खुद बतौर कलाकार नहीं उतरते लेकिन सभी कलाकारों को मांजने-तराशने के काम में जुटे थे। कुछ दिन पहले ही होली पर हुई रम्मत में वे पूरी तरह सक्रिय रहे। रातभर मंच पर मौजूद रहकर निर्देश देते रहे।

‘वीर’ और ‘श्रृंगार’ के बीच अपनी अदा से हास्य पैदा किया :

दरअसल अमरसिंह राठौड़ की रम्मत मूलतः वीर रस केन्द्रित है। इसमें हाड़ी रानी के प्रसंग से श्रृंगार रस का सांगोपांग मिश्रण किया गया। ऐसे में बीसियों पात्रों के बावजूद अमरसिंह, बादशाह, हाडी रानी, रामसिंह जैसे पात्र ही केन्द्र बिन्दु होते हैं। इन सबके बीच में ‘लखनऊ के नवाब’ के एक छोटे-से पात्र को पेंटर कालेश ने अपनी अदाकारी से ऐसा जीवंत किया कि उन्हें देखने-सुनने के लिए लोग रात-रातभर जागने लगे। वीर और श्रृंगार के बीच ही उन्होंने रम्मत में हास्यरस को प्रभावी बना दिया। यही वजह है कि इस कलाकार के निधन की खबर बीकानेर में जिसने भी सुनी उनके मुंह से निकला ‘लखनऊ के नवाब नहीं रहे।’