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वादे-गारंटियों पर भरोसे ने ‘वायदों की चूसणी से छाले पड़े जीभ पर….’ जैसे हालत किए

RNE, BIKANER .

वायदों की चूसणी से छाले पड़े जीभ पर
रसाई में लाव-लाव भैरवी बजत है
रोटी नाम सत है
खाये सो मुगत है...

जनकवि स्व.हरीश भादानी की ये पंक्तियां आज फिर एक बार उस वक्त जमीन पर साकार होती दिखी जब ‘रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस’ की टीम ने बीकानेर के उन दो गांवों की ग्राउंड रिपोर्ट ली जहां सुबह से ही वोटिंग के बहिष्कार की घोषणा कर दी गई।

प्रशासन में हड़कंप मचा, अधिकारी मौके पर पहुंचे। नेताओं-प्रत्याशियों के समर्थकों को चिंता हुई तो वे भी इन गांवों में जा पहुंचे। मान-मनौवल, बातचीत हुई लेकिन जो मुद्दे सामने आये उन्होंने एक बार फिर हैरान कर दिया।

आओ, पहले डाइयां गांव चले :

बीकानेर शहर से लगभग 20 किमी दूरी वाले इस गांव के जिस बूथ पर वोटिंग का बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया वहां कुल 744 वोट है। बीकानेर के नाल एयरपोर्ट से सटता यह गांव नाल ग्राम पंचायत के अधीन आता है। इस गांव में केन्द्रीय मंत्री और बीकानेर से लोकसभा प्रत्याशी अर्जुराम मेघवाल की ससुराल भी है।

खाजूवाला विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है गांव जहां से गहलोत सरकार में गोविंदराम मेघवाल कैबिनेट मंत्री थे। वे गोविंदराम मेघवाल अभी कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी है। फिलहाल इस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के डाक्टर विश्वनाथ मेघवाल विधायक हैं। वे तीसरी बार खाजूवाला के विधायक बने हैं। मतलब यह कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से यह काफी मजबूत प्रतिनिधियों का इलाका है।

आखिर समस्या क्या है ?

यह जानने की कोशिश की तो झुंड बनाकर बैठे गांव के लोगों में कई खड़े हो गए। साथ ले जाकर एक सूखी खेळी (पशुओं के पानी पीने की कुंडी) के पास ले जाकर खड़ा कर दिया। विजयसिंह बोले, घरों में पानी नहीं आता।

पशु प्यास से मर रहे हैं। हर दिन 700 रूपए में एक टैंकर पानी खरीद रहे हैं। यह पानी नहर से आता है। जिन दिनों में नहर में पानी नहीं होता तब वे एक हजार रूपए प्रति टैंकर लेते हैं। ऐसे में जो लोग मजदूरी करते हैं उनकी ज्यादातर कमाई पानी खरीदने में खर्च हो रही है। बात यहीं तक नहीं रूकती! अपनी खून-पसीने की कमाई पानी खरीदने में खर्च गायों को जिंदा रखने में सफल तो हो जाते हैं लेकिन तब बहुत दुख होता है जब ये गायें करंट से मर जाती है।

‘करंट से गायें मर जाती हैं’ यह चौंकाने वाली सूचना थी। गांव वालों ने बताया कि लगभग 50 साल पुराने बिजली के खंबे लगे हैं। टूटे हुए जीर्ण-शीर्ण। इनके साथ तार लटके हैं। हमारी बीसियों गायें इन खंभों के करंट से मर चुकी है। हर बार पशु की मौत पर अधिकारियों से इन्हें ठीक करवाने की गुहार लगाते हैं। कोई नतीजा नहीं निकला। एक युवक बोला ‘बोट लेवण आळी टैम चोखी बात्यां करै, काम आळी टैम म्हां कांनी देखे ई कोयनी।’ खामियों पर बात चली तो लिस्ट लंबी होती चली गई।

अर्जुनराम के बेटे मौके पर पहुंचे, …पानी पहुंच गया 

बहिष्कार की घोषणा से मचे हड़कंप का असर यह था कि गांव में बिजली, पानी विभाग के अधिकारियों सहित प्रशासनिक अधिकारी भी पहुंच गए। लोगों से बातचीत कर मनाने की कोशिश करने लगे। नाराज गांव वाले इन सबको लेकर खाली खेळियों सहित समस्या वाले खंभों तक की परिक्रमा करवा लाये। वादों पर भरोसा नहीं करते हुए कहा, पहले भी ऐसे वादे किये थे। नतीजा कुछ नहीं निकला।

इन सबके बीच ही ‘नवीन द हिलर’ नाम से विख्यात अर्जुनराम मेघवाल के बेटे नवीन मौके पर पहुंच गए। गांववालों और अधिकारियों दोनों से बातें की। इस बीच पानी का एकाध टैंकर भी आ गया। खेळियों और गांव के उन गड्ढों में पानी भरा जाने लगा जहां से पशु प्यास बुझाते हैं। बिजली-पानी विभाग के अधिकारियों ने तीन दिन में समस्याओं के समाधान का वादा किया। आखिरकार लगभग चार घंटे बाद वोटिंग शुरू हो गई।

अब सुनिये दासनूं गांव की दास्तान :

‘दासनूं गांव के बूथ पर अभी तक एक भी वोट नहीं पड़ा है।’ यह खबर फैली तो ग्रामीण अधिकारियों के साथ ही नोखा के नायब तहसीलदार नरसी टाक, डीएसपी पुलिस हिमांशु शर्मा, प्रशिक्षु आईपीएस एसएचओ आदित्य काकड़ा आदि गाड़ियों के काफिले के साथ गांव में पहुंचे।

बातचीत की तो लोगों का दर्द छलक उठा। बोले, इतने साल हो गए कहते-कहते, हमारे गांव में पक्की सड़क तक नहीं बनवा पाये। दासनू से मैयासर, पींपासर सारी कच्ची सड़के हैं। यहां तक की ग्राम पंचायत रायसर मुख्यालय तक भी कच्ची सड़क से ही जाना पड़ता है। घरेलू बिजली छह से आठ घंटे आती है। लगभग 150 कृषि कनेक्शन है। पॉवर पूरी नहीं होता। मोटर जल जाती है। दो साल पहले बिजली घर मंजूर हुआ आज तक नहीं बना।

 

प्यास यहां भी सबसे बड़ा दर्द :

पानी यहां भी सबसे बड़ी परेशानी है। लोग बोले, पूरे गांव में एक ट्यूबवैल है। वह महीने में 10 से 15 दिन बंद रहता है। बार-बार शिकायत के बाद भी सुनवाई नहीं होती। गांव के लगभग 300 परिवारों की प्यास बुझाने के लिए पानी खरीदना पड़ता है। अधिकारियों ने बातें शुरू की। समाधान के वादे हुए। गांव वालों ने ‘लिखित गारंटी’ मांगी। आखिरकार पांच घंटा वोटिंग बहिष्कार के बाद इस गांव में मतदान शुरू हुआ।

आखिर कब तक आधारहीन ‘गारंटियों’ के भरोसे :

इन दो गांववालों ने महज अपने दर्द को आवाज दी। हालात कमोबेश सभी गांवों में यही है। हर गांव की दो प्रमुख समस्या है, उन्हें पीने को पूरा पानी नहीं मिल रहा। बिजली बहुत कम मिलती है। लगा, हम 75 से कभी आश्वासन, कभी वादा और कभी गारंटी के नाम पर ‘वायदों की चूसणी ही थमा रहे हैं…।’ बातें ‘जल जीवन मिशन’ की हो रही है लेकिन आज भी गांवों में लोगों के ‘जीवन का मिशन’ हर दिन की जरूरत का ‘जल’ जुटाना है।