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स्थापना दिवस : विद्याधर शास्त्री, कृष्ण शंकर तिवारी, गिरधारी लाल व्यास की विरासत सहेज रहे नंदकिशोर सोलंकी

बुनियाद हुसैन ‘ ज़हीन ‘

आरएनई,बीकानेर। 

‘कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो’

मरहूम दुष्यंत कुमार साहिब का ये शे’र पत्थर के बीच से भी पानी का सैलाब बहा देने को प्रेरित करता है। थार मरुस्थल में भी हरियाली लहलहाने का जज्बा देता है। बीकानेर की स्थापना ही जद्दोजहद की बुनियाद पर मुश्तमिल है। बताते हैं इस इलाक़े में सरस्वती नदी एक वक़्त में बहा करती थी। तभी तो यहां की साहित्यिक, सांस्कृतिक रिवायत इसे छोटी काशी का दर्जा दिलाती है। बीकानेर वो गौरवशाली शहर है जहां अन्य देवी, देवताओं के साथ बड़ा और भव्य मां सरस्वती का मंदिर भी है। ये मंदिर स्थापित है 117 साल पुराने श्री जुबिली नागरी भंडार में। बीकानेर का साहित्य व संस्कृति का इतिहास, परंपरा व समकाल कुछ है तो उसका आधार नागरी भंडार है।

मरुस्थल से घिरे बीकानेर में सच में उस समय जिस सोच के आधार पर इस संस्था को बनाया, वो सोच आकाश में छेद करने का ही काम था। नागरी भंडार में सरस्वती की स्थापना इस बात का द्योतक है कि यहां शब्द की साधना का उत्तम स्थान है। आमतौर पर संस्थाएं बनती हैं और बंद भी हो जाती हैं, जिसके कारण सभी को पता हैं। इस संस्था के 117 वर्ष चलने की बात भी इस बात की गवाही है कि वे दुर्गुण इस संस्था को छू भी नहीं पाये हैं। जिस संस्था को बनाने वालों में पंडित विद्याधर शास्त्री जैसी हस्ती हों, पंडित श्री कृष्ण शंकर जी तिवारी,पंडित श्री धन रूप जी गोस्वामी, पंडित जय दयाल जी शास्त्री, पंडित श्री युत राम चंद्र जी शर्मा, श्री गिरधारी लाल व्यास जैसे चिंतक हों जनाब नंदकिशोर सोलंकी साहिब जैसी कर्मठ और ईमानदार शख़्सियत हो।

उस संस्था के 117 नहीं, कई सैकड़ों साल भी पूरे होंगे। नींव पर इमारत खड़ी होती है। नागरी भंडार की नींव में सत्यता है, कर्म है, पवित्रता है, अच्छे इंसानों की भावना है। उसी वजह से ये आज बीकानेर ही नहीं पूरे देश की प्रज्ञा का बड़ा केंद्र बना हुआ है। नागरी भंडार में पुस्तकालय है, वाचनालय है। जिससे इन 117 सालों में लाखों लोगों ने लाभ उठाया है। नियमित पाठकों के अलावा विद्यार्थियों का इस सरस्वती मंदिर में आना, बड़ी बात है। यहां के ग्रंथ, साहित्य व पत्र पत्रिकाओं को पढ़कर कई विद्यार्थियों ने प्रतियोगी परीक्षाएं पास की हैं। वो जब भी भाव विभोर होकर अपनी सफलता की कहानी सुनाते हैं तो नागरी भंडार, यहां स्थापित मां सरस्वती का जिक्र बेशक करते हैं। पहले वाचनालय व पुस्तकालय शुरू हुआ। जिसके कारण शब्द साधकों के पाकीज़ा क़दम इस पाकीज़ा जगह पर पड़े। इस जगह ने उनको ऐसा सुकून दिया कि उन्होंने इसे अपने नियमित आकर बैठने का क्रम बना लिया। देश में अपनी खास पहचान रखने वाले हरीश भादानी, डॉ नंदकिशोर आचार्य, अजीज आज़ाद, मोहम्मद सदीक, डॉ मनोहर शर्मा से लेकर इस समय तक के देश के बड़े रचनाकारों का जीवंत जुड़ाव इस नागरी भंडार से रहा है।

शब्द की साधक व प्रज्ञा की देवी सरस्वती का निवास हो और यहां साहित्य व संस्कृति के आयोजन न हों, ये नामुमकिन बात है। नागरी भंडार ने अपने स्थापना दिवस पर बड़े बड़े साहित्यिक आयोजन किये। जिनमें डॉ नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, अज्ञेय आदि ने भी शिरकत की। शहर तरसता था नियमित साहित्यिक आयोजनों के लिए, इस कमी को नागरी भंडार के संचालकों ने समझा और पहले महारानी सुदर्शन कुमारी कला दीर्घा का निर्माण किया। ये स्थान शहर की साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र बना और आज भी केंद्र बना हुआ है। हिंदी, उर्दू, राजस्थानी की सैकड़ों पुस्तकों का लोकार्पण इस दीर्घा में हुआ है। प्रदेश व देश के नामचीन रचनाकारों का यहां संबोधन हुआ है। ये क्रम अब भी लगातार जारी है। संस्था के संचालकों को एक छोटे ओडीटीरियम की जरूरत महसूस हुई। बदलते वक़्त मे ऐसे स्थान आधुनिक सुविधाओं से युक्त बड़ी जरूरत बने हुए हैं। संस्था ने भी नरेंद्र सिंह ओडिटोरियम का निर्माण किया, एयरकूल्ड ऑडिटोरियम। आज ये आयोजकों की पहली पसंद बन चुका है। नागरी भंडार साहित्य का सम्मान करता है। हर साल देश, प्रदेश व स्थानीय रचनाकारों के सम्मान के उपक्रम आयोजनों के जरिये होते हैं। कुशल हाथों में संस्था रक्षित है तो अभी कई इतिहास रचेगी, ये पूरे प्रदेश के शब्द संसार को उम्मीद है। मैं दिल की अमीक गहराइयों के साथ अहले- बीकानेर को वसंत पंचमी की मुबारकबाद पेश करता हूँ और दुआ करता ये शहर बुरी नज़र से महफ़ूज़ रहे और हमेशा शाद-ओ-आबाद रहे!