Skip to main content

चुनाव परिणाम के बाद होगी गहलोत सरकार की योजनाओं की समीक्षा, कई पर तलवार चलेगी

  • RNE Political Desk.

विधानसभा चुनाव से एक साल पहले से पिछली कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने ताबड़तोड़ घोषणाएं की। कई फ्री की योजनाएं थी तो कई जातियों के लिए थी। जातीय समीकरण साधने के लिए ये घोषणाएं हुई। इसके अलावा शहरी और ग्रामीण मतदाताओं को लुभाने के लिए भी कई चीजें फ्री देने की घोषणा कर उनको आनन फानन में लागू भी किया गया।

गहलोत सरकार की लोक-लुभावन योजनाओं की समीक्षा : 

इन योजनाओं में शहरी उपभोक्ताओं व किसानों को फ्री बिजली, 25 लाख तक का इलाज फ्री, दवा व जांचे फ्री, फ्री मसाले, फ्री राशन आदि की योजनाएं शुरू की गई। कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम मंजूर की गई। संविदा कर्मचारियों को स्थायी करने का वादा किया गया। मगर कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई।

अब इन सब योजनाओं व घोषणाओं पर तलवार लटकी हुई है। ये योजनाएं चालू रहेगी या बंद होगी, इसको लेकर आम आदमी में असमंजस है। इस असमंजस की बड़ी वजह है इन मसलों पर राज्य की नई भाजपा सरकार की चुप्पी। सरकार की तरफ से कोई कुछ भी नहीं बोल रहा।

भजनलाल सरकार की गजेन्द्रसिंह कमेटी कर रही रिव्यू :

चूंकि सरकार बनते ही लोकसभा चुनाव आ गये, तब राज्य सरकार ये योजनाएं बंद करने का रिस्क नहीं ले सकती थी। उससे चुनाव में जनता उनके खिलाफ हो जाती। तब चुप रहना ही सरकार को सही लगा। हालांकि सीएम भजनलाल शर्मा ने मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर की अध्यक्षता में एक मंत्रिमण्डलीय उप समिति गठित कर दी और उसे पिछले एक साल में पिछली सरकार की शुरू हुई योजनाओं व घोषणाओं की समीक्षा का काम दिया गया। अच्छी बात यह है कि शुरुआती रुझान जनहित की प्रक्रियाओं-योजनाओं को जारी रखने की तरफ है। मसलन, नर्सिंग-पैरामेडिकल के 20 हजार पदों पर सीफू के जरिये नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखने का निर्णय हुआ है।

उस समिति की क्या रिपोर्ट बनी, ये अभी तक भी सामने नहीं आया है। सूत्र बताते हैं कि फ्री बिजली की योजना, स्वास्थ्य की 25 लाख तक फ्री योजना आदि पर सरकार अलग राह पकड़ सकती है। इन योजनाओं को भले ही बंद न करे, मगर बदलाव तो तय है।

कर्मचारी देख रहे एकटक :

कर्मचारियों की ओपीएस की योजना पर भी सरकार अस्पष्ट है। विधानसभा सत्र के दौरान सत्ता और विपक्ष के 8 विधायकों ने ओपीएस पर रुख पूछा मगर उनके सवालों का जवाब अभी तक भी नहीं दिया गया है। इस विषय पर नई सरकार का रुख जानने की सर्वाधिक उत्सुकता कर्मचारियों व पेंशनधारियों में है। जिनकी संख्या कम नहीं है।

पिछली गहलोत सरकार ने कमोबेश हर जाति या समाज के कल्याण बोर्ड बना दिए थे। उनमें से कई बोर्ड वजूद नहीं रखेंगे, ये तो तय सा लगता है। इस कारण ये माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद ही राज्य सरकार की नीतियां साफ होगी।


  • – मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘