MGSU के डॉ. छंगाणी ने कोविड में नदी-तालाबों तक का सहयोग बताया
- “जलवायु परिवर्तन में परंपरागत जैव विविधता संरक्षण” पर बात
RNE BIKANER .
जैव विविधता में टाइगर, शेर व हाथी जितना ही महत्व मधुमक्खियां व तितलियां जैसे छोटे जीव जंतुओं का भी है। थार मरुस्थल में जैव विविधता संरक्षण की परंपरागत व्यवस्थाएं हमारे बुजुर्गों द्वारा स्थापित की गई थी, वो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना की वर्तमान विज्ञान।
यह कहना है महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अनिल कुमार छंगाणी का। प्रो. छंगाणी बुधवार को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर हुए कार्यक्रम में बोल रहे थे।
राज्य जैव विविधता बोर्ड व एम बी एस गवर्नमेंट कॉलेज, बाड़मेर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने “जैव विविधता की महत्वता तथा कोविड जैसी महामारी में भी परंपरागत जैव विविधता संरक्षण की व्यवस्थाओं की सार्थकता” विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दिया।
इस अवसर पर प्रो. छंगाणी ने बताया कि परंपरागत जैव विविधता संरक्षण की व्यवस्थाओं में शामिल ओरण, गोचर, नाडी, तालाब, डोली, आगोर इत्यादि ने अपनी प्रासंगिकता कोविड के दौरान बखूबी साबित की। इन संसाधनों के बूते मानव, पशुधन व वन्य जीवों को भोजन, पानी व चारा उपलब्ध हुआ।
वर्तमान में इन परंपरागत व्यवस्थाओं पर कई तरह के विकास से दबाव आ रहे हैं । जिसके चलते आज इनका ह्रास हो रहा है। इन्हें बचाने के लिए इनके संरक्षण व प्रबंधन की महती आवश्यकता है। बिना जैव विविधता संरक्षण के मानव जीवन का अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा। इस अवसर पर एमबीएस गवर्नमेंट कॉलेज, बाड़मेर के प्राचार्य डॉ. मनोज पचौरी ने थार की जैव विविधता बचाने में युवा पीढ़ी का आवाहन किया।