मायड़ के नाम पर सिट्टा सेकने वालों को भगाओ, हेताळुओ को आगे लाओ
RNE, BIKANER .
मायड़ भाषा राजस्थानी के नाम पर केवल अपना सिट्टा सेकने वालों को अब भगाना होगा। नहीं तो हर बार राजस्थानी भाषा मान्यता का आंदोलन शिखर तक पहुंचेगा और सांप सीढ़ी की तरह 99 में पर सांप खा जायेगा। फिर एक से शुरू करना पड़ेगा। ये एक बार नहीं कई बार मान्यता आंदोलन के साथ हो चुका है। अब और पीठ में घाव खाने की न तो हिम्मत रही है और न धैर्य। हर बार अपना सिट्टा सेकने वाले मान्यता आंदोलन में घुसते हैं और आगे आकर अपने लाभ की स्थिति बना लेते हैं। राज से फायदा ले आंदोलन को 99 से वापस 1 पर ला देते हैं।
मायड़ भाषा के हेताळु अब इन लोगों से अंजान नहीं है, उनकी सूरत पहचानते हैं। जब पहचान हो गई तो अब तो इन ठगों से अपनी मायड़ को बचाना चाहिए। इन दलालों को दरकिनार करके मायड़ भाषा राजस्थानी के असली हेताळुओ को आगे लाना चाहिए और आंदोलन की कमान उनके हाथ में देनी चाहिए। तभी हमारा मान्यता व दूसरी राजभाषा का सपना पूरा होगा। अन्यथा हमें स्वार्थी ठगते रहेंगे और हम बारबार लुढ़क के 99 से 1 पर आ जायेंगे।
मान्यता आंदोलन खूब परवान चढ़ा है। कोई मंत्रियों से सम्पर्क बनाने के काम में उपयोग कर गया तो कोई दूसरा लाभ पाने में कर गया। कोई पद पाने में कर गया तो कोई पुरस्कार पाने में। कोई अपनी किताबों की बिक्री व खरीद का लाभ ले गया तो कोई मंत्रियों, नेताओं का खास बन भाषा को भूल गया। जिन सच्चे भाषा समर्थकों ने आंदोलन को खड़ा कर 99 तक पहुंचाया, वे केवल खुद को वापस 1 पर गिरते केवल देखते भर रह गये। यही राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन की सच्चाई है। कुछ ख़बरजीवी खबरों में बने रहने के लिए ही मान्यता आंदोलन का उपयोग जब छपने का मन करे करते रहते हैं।
मान्यता आंदोलन अगर अब भी जीवित है तो केवल राजस्थानी में साहित्य रचने वालों के दम पर, उन युवाओं के बूते पर जो सच में अपनी मायड़ भाषा से मोहब्बत करते हैं, उन युवाओं के दम पर जिंदा है जिन्होंने इस भाषा की शिक्षा ग्रहण करने में अपना समय, श्रम व धन लगाया है।
अब कमान इन सच्चे राजस्थानी के सिपाहियों के हाथ में देने का वक़्त है। ये सच्चे सैनिक सिट्टा सेकने वालों को भगा भी देंगे। अपनी भाषा की लड़ाई भी लड़ लेंगे। मान्यता का सपना भी पूरा कर लेंगे। ये राजनीतिज्ञों के झांसे में भी नहीं आयेंगे। उनकी आरती उतारने के बजाय उनसे तीखे सवाल भी कर लेंगे। राजस्थानी मान्यता आंदोलन की अगुवाई अब मायड़ के सच्चे हेताळुओ के हाथ में देने की जरूरत है। राज के सामने खूब याचना कर ली। नेताओं के खूब आश्वासन सुन लिए। अब वक्त भाषा को अपनी अस्मिता से जोड़ने की है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘