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शिक्षक संघ राष्ट्रीय : न्यायालय प्रकरणों में समान प्रकृति के आदेशों में एकरूपता स्थापित करने की मांग

RNE, BIKANER .

राजस्थान शिक्षक संघ, राष्ट्रीय ने राजस्थान के शिक्षा मंत्री को ज्ञापन भेज कर आग्रह किया है कि माननीय न्यायालय द्वारा जारी आदेश पर एक समान प्रकृति के प्रकरणों में एक समान सामान्य आदेश जारी कर अनावश्यक शिक्षकों को समान प्रकृति के प्रकरणों में न्यायालय में जाने से रोकने का आग्रह किया है।


संगठन के प्रदेश अतिरिक्त महामंत्री रवि आचार्य ने बताया की शुक्रवार को शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश महामंत्री महेंद्र कुमार लखारा की ओर से शिक्षामंत्री को भेजे ज्ञापन में अवगत करवाया है कि माननीय उच्च न्यायालय जोधपुर एवं जयपुर द्वारा विभिन्न शिक्षकों की याचिकाओं पर निर्णय करते हुए 1 जनवरी या इसके बाद नियुक्त होने पर ग्रीष्म अवकाश का वेतन देने व प्रथम नियुक्ति दिनांक से ही समस्त वित्तीय लाभ देने व वरिष्ठता निर्धारण भी प्रथम नियुक्ति दिनांक से ही किए जाने हेतु आदेश पारित किए गए हैं।


संगठन ने पूर्व में भी इस प्रकार के आदेश पारित होने के बाद समान आदेश विभाग द्वारा जारी करने हेतु उच्च अधिकारियों से मांग की थी लेकिन निर्णय आज दिनाक तक लंबित है।
माननीय उच्च न्यायालय के इन आदेशों की पालना में शिक्षा विभाग द्वारा भी आदेश जारी करते हुए इस निर्णय के विरुद्ध नो अपील का निर्णय किया जा चुका है,तो हम मांग करते है कि जब विभाग द्वारा ‘नो अपील’ का निर्णय किया जा चुका है तो इस प्रकार के अन्य समस्त प्रकरणों का निर्धारण भी विभाग के लेखा अधिकारी द्वारा करते हुए इन्हें निर्धारित करने के समान आदेश जारी करावें।


संघठन के प्रदेश अध्यक्ष रमेश चंद पुष्करणा ,अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के प्रांत संघठन मंत्री घनश्याम जी ने बताया कि इस प्रकार के समान आदेश जारी नही होने के कारण समान प्रकृति के प्रकरण माननीय न्यायालय में दायर किए जा रहे हैं जिससे अनावश्यक रूप से शिक्षकों को आर्थिक हानि हो रही है तथा विभाग व प्रशासन का भी अर्थ व समय के साथ श्रम का भी अप व्यय हो रहा है जिसे रोका जाना चाहिए।


शिक्षक संघ राष्ट्रीय महामंत्री महेन्द्र लखारा की और से जारी पत्र में संगठन ने सरकार से मांग की है कि एक सामान्य आदेश समान प्रकृति के प्रकरणों के लिए लेखा अधिकारी के माध्यम से निर्धारित करने हेतु जारी किया जाए, इससे शिक्षकों व विभाग दोनों को समय श्रम व अर्थ की बचत होने के साथ समान प्रकृति के प्रकरणों में एकरूपता स्थापित होने से सभी के साथ न्याय भी होगा।