सूप्रीम कोर्ट : एसबीआई 6 मार्च तक चुनावी बॉण्ड की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे
आरएनई,नेशनल ब्यूरो।
लोकसभा चुनाव से पहले उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड को लेकर सर्वसम्मति से एक बड़ा फैसला सुनाया है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच द्वारा दिए गए इस फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे।
उच्चतम न्यायालय (SC) ने साफ कहा है कि बड़ा चंदा गोपनीय रखना असंवैधानिक है। कंपनी एक्ट में बदलाव भी असंवैधानिक है। हर चंदा हित साधने के लिए नहीं है। फंडिंग की जानकारी हर आमजन को होनी चाहिए। यह मतदाताओं को हक है। इसके साथ ही चुनावी बॉण्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है।
एसबीआई (SBI) को निर्देश दिया 6 मार्च तक चुनावी बॉण्ड (Electoral Bond) की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे। इसके साथ ही कहा कि 13 मार्च तक इसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग (Election Commission) अपनी वेबसाइट पर डाले। अब तक जा बॉण्ड कैश नहीं कराए गए हैं वह भी वापस किए जाएं। चुनावी बॉण्ड (Electoral Bond) सिस्टम में पारदर्शिता नहीं है। चुनावी बॉण्ड सूचना के अधिकार कानून (RTI) का भी उल्लंघन है।
ये थी चुनावी बॉन्ड योजना
केंद्र सरकार ने 2017 के बजट में चुनावी बॉन्ड की घोषणा की। इसे फिर 2018 में लागू किया गया। अब हर तिमाही एसबीआई 10 दिन के लिए चुनावी बॉन्ड जारी करता है। ऐसा बताया जाता है बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, संस्था हो और फिर कंपनी हो। इसके माध्यम से अपनी पसंदीदा पार्टी को चंदा दिया जा सकता है। चुनावी बॉन्ड को वही राजनीतिक दल ले सकते हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं। इसके साथ ही चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम एक फीसदी वोट हासिल किए हों।
चुनावी बॉण्ड पर 7 बिंदुओं में समझिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
1. एसबीआई चुनावी बॉण्ड से चंदा लेने वाले सभी राजनीतिक दलों की सूची जारी करे
2. एसबीआई सभी चुनावी बॉण्ड का ब्यौरा दे जिसे राजनीतिक दलों ने नकद कराया है
3. एसबीआई सभी जानकारी 6 मार्च 2024 तक चुनाव आयोग को संपूर्ण जानकारी दे
4. एसबीआई से मिली जानकारी को चुनाव आयोग 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर डाले
5. चुनावी चंदे को छुपाना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है
6. चुनावी बॉण्ड के लिए कंपनी एक्ट में संसोधन असंवैधानिक है
7 .निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक जुड़ाव गोपनीय रखना शामिल है।