वर्षों से मान्यता के लिए जूझती राजस्थानी भाषा को कब मिलेगी संवैधानिक मान्यता
आरएनई,स्टेट ब्यूरो।
लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी है। नवम्बर में विधानसभा चुनाव हुए तब भी 200 माननीय विधायक वोट मांगने आये थे। राजस्थानी में वोट देने की अपील की थी। राजस्थानी गीतों से अपना चुनाव प्रचार किया। हम अड़े नहीं, उनसे नहीं पूछा कि आपने हमारी और आपकी राजस्थानी भाषा को दूसरी राजभाषा क्यों नहीं बनाया। वे विधायक बन गये। केवल दो विधायक अंशुमान सिंह भाटी व रवींद्र सिंह भाटी ही शपथ राजस्थानी में लेने पर अड़े। बोल भी गये मगर अध्यक्ष के दबाव में हिंदी में ही शपथ लेनी पड़ी। पर राजस्थानी का झंडा बुलंद हुआ। बाकी 198 तो कह भी नहीं सके।
संस्कृत में भी कईयों ने शपथ ली। उनका सम्मान भी हुआ। संस्कृत हमारा गौरव है, देव भाषा है, उसका बहुत सम्मान है। मगर मां बोली तो मां है, उसकी जगह तो कोई नहीं ले सकता। उसकी पैरोकारी सिर्फ एक फीसदी विधायक करे, ये चिंतनीय है। मगर अब फिर हम राजस्थानी के बेटों के पास एक अवसर है। लोकसभा चुनाव है और 25 को देश की सबसे बड़ी पंचायत में जाना है। वोट मांगने आयेंगे। वही राम राम करेंगे। राजस्थानी गीत काम लेंगे। हमें इस बार अपनी मां बोली के लिए उनसे सवाल जरूर करें।उनसे पूछें कि जब राजस्थान की विधानसभा ने राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता देने का सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को 2013 में भेज दिया तो आपने अभी तक उसे स्वीकार मुहर क्यों नहीं लगाई। 12 करोड़ लोगों की भाषा की उपेक्षा क्यों, जबकि आप वोट इसी भाषा में मांगते हो। आपकी बात इसी भाषा मे आपके वोटर तक पहुंचती है। ये सवाल करने की हिम्मत तो हर राजस्थानी के बेटे को करनी ही पड़ेगी। नहीं तो हमारी मां भाषा इसी तरह बेकद्री कराती रहेगी इन माननीयों से।
इन आने वाले माननीयों को कहें कि क्या आप ये चाहते हैं कि हम कोंकणी की तरह उग्र हों। हम गुर्जरों की तरह मार्शल बनें। अन्य भाषाओं की तरह गर्म आंदोलन करें। इनसे ये सब बातें जरूर करें। तभी हम अपनी मां का कर्ज चुका पायेंगे। हर राजस्थानी का कर्त्तव्य है कि वो अपनी मायड़ भाषा के लिए माननीयों से सवाल करें और उनके जवाब पर विचार कर निर्णय करे।