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बाबा ने वादा निभाया, इस्तीफा दे उलट दिये समीकरण, भाजपा फिर पशोपेश में

RNE, BIKANER.

बाबा के उप नाम से विख्यात भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्य के कृषि मंत्री ने अपने राजनीतिक वादे को पूरा करते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लोकसभा चुनाव के समय दौसा सीट पर चुनाव प्रचार करते वक़्त उन्होंने कहा था कि यदि 7 सीटों में से 1 भी हारा तो मंत्री नहीं रहूंगा। हार हुई तो अब बाबा ने वादा निभाते हुए मंत्री पद से इस्तीफा देकर आलाकमान को भी सूचित कर दिया।वैसे सरकारी सुविधाएं लेना तो उन्होंने पहले से ही बंद कर दिया था।

मगर बाबा के इस इस्तीफे से भाजपा पशोपेश में पड़ गयी है। पूर्वी राजस्थान की राजनीति में इससे बड़ा उलटफेर होगा, ये तय है। इस इलाके में भाजपा की अभी लोकसभा चुनाव में करारी हार भी हुई है। दौसा, टोंक, भरतपुर, धौलपुर, बांसवाड़ा की लोकसभा सीटें भाजपा ने हारी है। इस इलाके में आदिवासी समाज का बाहुल्य है। गुर्जर व मीणा जातियां डोमिनेट करती है।

सचिन के प्रभाव का भी है ये इलाका। विधानसभा चुनाव में गहलोत व पायलट की टकराहट के कारण इस इलाके में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा था मगर लोकसभा में कमान सचिन के पास आते ही स्थितियां उलट गई। बाबा के वर्चस्व का भी यही इलाका है, सब जानते हैं।


मगर क्या बाबा के इस्तीफे की वजह केवल वादा पूरा करना है, लगता तो ऐसा नहीं है। बाबा अपने भतीजे को दौसा सीट पर टिकट दिलवाना चाहते थे लोकसभा का। मगर मिला उनके विरोधी गुट की जसकौर मीणा की पसंद को। ये भी एक वजह है। दूसरा, सरकार जब गठित हुई तो बाबा को गृहमन्त्री या इसी तरह का बड़ा विभाग मिलने की चाह थी, वो भी नहीं मिला। जबकि गहलोत सरकार के समय पेपर लीक, भ्र्ष्टाचार जैसे मुद्धों को सड़क पर लड़ने वाले बाबा ही थे। उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता छोड़कर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। ये भी कुछ पर्दे के पीछे के कारण बताए जा रहे हैं।


दूसरी तरफ पूर्व सीएम वसुंधरा राजे जो लोकसभा चुनाव तक चुप थी अब थोड़ी सक्रिय दिख रही है। राजे ने उदयपुर में ये बयान देकर सबको चकित कर दिया कि जिनको अंगुली पकड़कर चलना सिखाया वे ही अंगुली काट आगे जाने में लगे हैं। विधानसभा के दूसरे सत्र के पहले दिन बाबा का इस्तीफा सामने आया और उस दिन राजे भी सदन में थी। ये क्या केवल संयोग है? या अभी कुछ और भीतरी झटके सामने आने बाकी है, इसी को लेकर राजनीति गर्म है।
बाबा के इलाके पूर्वी राजस्थान में तीन विधानसभा सीटों के उप चुनाव है, वर्तमान परिस्थिति में ये चुनाव भाजपा के लिए अब बड़ी चुनोती बन गए हैं। देवली उणियारा, दौसा व बांसवाड़ा की सीट वैसे भी भाजपा के पास नहीं है, ऊपर से बाबा का मंत्री पद से इस्तीफा, संकट बड़ा हो गया। यहां ये भी देखने कि बात है कि सांसद बने हरीश मीणा व मुरारीलाल मीणा ने कभी भी सार्वजनिक रूप से बाबा की आलोचना नहीं की है। पूर्वी राजस्थान में कुछ नई राजनीति तो नहीं पनप रही, इसका खुलासा तो आने वाले दिनों में होगा। फिलहाल बाबा के इस्तीफे ने भाजपा को भीतर तक हिला दिया है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी