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OPS v/s UPS : राजस्थान के कर्मचारी ओपीएस से कम में राजी नहीं, विरोध के सुर

RNE Special : ओपीएस बनाम यूपीएस

  • चुनाव में मुद्दा था ओल्ड पेंशन स्कीम 
  • अशोक गहलोत पुरानी पेंशन लागू कर चुके
  •  राज्य कर्मचारी ओपीएस से कम में राजी नहीं, विरोध के सुर

पेंशन मुद्दे की चुनावी पृष्ठभूमि :

कांग्रेस ने कई राज्यों में विधानसभा चुनाव के समय व बाद में लोकसभा चुनाव के समय ‘ ओल्ड पेंशन स्कीम ( ओपीएस ) ‘ को चुनावी मुद्दा बनाया था। केंद्र व राज्यों के कर्मचारियों ने भी इस मांग को अपनी प्रमुख मांग बना आंदोलन आरम्भ कर दिया। माना तो ये भी जाता है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को राज में आने के लिए इसी मुद्दे का सबसे बड़ा फायदा मिला।

पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने के साथ की थी ये घोषणा

राज्य की अशोक गहलोत सरकार ने ओपीएस लागू कर दी और चुनावी वादा किया कि राज में आने पर इसका कानून बना दिया जायेगा। राज तो आया नहीं मगर कर्मचारी इस मुद्दे पर अब पीछे हटने को तैयार नहीं।

भजनलाल सरकार के गले की फांस : 

भजनलाल सरकार भी इस मामले में कुछ भी बोलने से कतरा रही है। विधानसभा में सत्ता व विपक्ष के कुल 8 विधायकों ने ओपीएस पर सरकार का रुख पूछा, उनको अब भी माकूल जवाब नहीं मिल सका है। कर्मचारी अब इसे अपना हक मान रहे हैं। पीछे हटने को तैयार ही नहीं। राज्य सरकार ने केंद्र की राय मांगी और वहां से अब यूपीएस का नया सिस्टम केबिनेट ने पास किया है।

महाराष्ट्र सरकार ने तुरंत ही यूपीएस को लागू करने की घोषणा भी कर दी मगर राजस्थान अभी तक भी हिचक रहा है। यहां की सरकार को कर्मचारियों की मंशा पता है इसलिए कुछ भी नहीं कहा। जबकि सभी कर्मचारी संगठन यूपीएस के विरोध में बोल रहे हैं। उनका कहना है कि ये तो आधा अधूरा लाभ है। कर्मचारी के परिवार की सुरक्षा तो ओपीएस से ही सम्भव है। उनकी मांग है कि राज्य सरकार को राज्य की ओपीएस को बदल यूपीएस लागू करने की जरूरत ही नहीं है। यूपीएस से तो कर्मचारी को बड़ा घाटा है। ओपीएस ही हमारी पसंद है। कमोबेश हर कर्मचारी संगठन ने यूपीएस को देखते ही ऐलान कर दिया है कि यदि राज्य में इसे लागू किया गया तो कर्मचारी आंदोलन करेंगे। ओपीएस की मांग पर हर कर्मचारी साथ है।

राज्य सरकार अब दुविधा में है क्योंकि 6 विधानसभा सीटों पर निकट भविष्य में उप चुनाव भी होने हैं। लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन अपेक्षित नहीं रहा था। अब भाजपा उप चुनाव के लिए रिस्क उठा नहीं सकती। दूसरी तरफ कांग्रेस यूपीएस के विरोध में मोर्चा खोलकर खड़ी हो गई है। इसका सरकार पर अलग दबाव है।

कर्मचारी महासंघों ने इस मसले पर बैठकें भी आरम्भ कर दी है और सभी संगठनों को एक जाजम पर लाने के प्रयास हो रहे हैं। यदि राज्य सरकार ने यूपीएस लागू किया तो उसे बड़े कर्मचारी आंदोलन का सामना करना पड़ेगा। कर्मचारी नेता कहते हैं, हम यूपीएस की तरफ झांककर भी नहीं देखते। इसमें 25 साल व 10 साल की सर्विस के लिए किए गए अलग अलग प्रावधान कर्मचारी वर्ग के हित में नहीं है। ओपीएस ही हित में है जो कर्मचारी का सेवा के अनुसार विभेद नहीं करती। आम कर्मचारी से पूछने पर वो भी पूरी तरह से यूपीएस को खारिज कर ओपीएस की वकालत करता नजर आ रहा है। इस हालत में ये कहना ठीक है कि राज्य सरकार के लिए राज्य में यूपीएस लागू करना टेढ़ी खीर है।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।