जनरंजन : कांग्रेस की पावर पॉलिटिक्स, सचिन के जन्मदिन पर आयोजन, बदल रही कांग्रेस
RNE, BIKANER
विधानसभा चुनाव भले ही कांग्रेस हार गई मगर कांग्रेस के भीतर अब भी पावर पॉलिटिक्स चल रही है। कांग्रेस में दो गुट साफ साफ चुनाव के पहले से बने हुए हैं और उनके व्यंग्य बाण भी लगातार एक दूसरे पर चलते रहते हैं।
आलाकमान ने युद्ध विराम कराया। जिसका फायदा धैर्य रख पार्टी में बने रहे सचिन पायलट को मिला। उनको सीडब्ल्यूसी का सदस्य व महासचिव बनाया गया। लोकसभा चुनाव का स्टार कम्पेनर बना छत्तीसगढ़ का प्रभार भी दिया।
विधानसभा चुनाव में पार्टी हार गई। उसके बाद गहलोत की पार्टी पर पकड़ थोड़ी कमजोर हो गई। आलाकमान पर भी उनका उतना प्रभाव नहीं रहा। उसकी भी अपनी राजनीतिक वजह थी। विधायक दल की बैठक नहीं हो सकी और उस समय पर्यवेक्षक बनकर भी स्वयं अब के पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आये थे। एक तरफ जहां गहलोत राजनीतिक कारणों से, हार के कारण कुछ कमजोर हुए तो दूसरी तरफ पायलट मजबूत होते गये।
लोकसभा चुनाव भी कांग्रेस की पावर पॉलिटिक्स का टर्निंग पाइंट था। सचिन ने जिन लोगों के टिकट की पैरवी की, उनमें से अधिकतर जीत गये। जबकि गहलोत के पुत्र वैभव भी जालौर से चुनाव हार गये। उन्होंने जोधपुर की सीट छोड़ी और जालौर आये थे। सचिन का कद राज्य में लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद काफी बढ़ गया। कांग्रेस की राजनीति का उसूल है, जहां पावर होती है सब उसी तरफ जाते हैं। ये नजारा प्रत्यक्ष देखने को भी मिला। जब सचिन के पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर दौसा में आयोजन हुआ तो राज्य से जीते हुए सभी 9 सांसद व कई विधायक वहां उपस्थित थे। दूसरी तरफ इतने समय में पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा भी अपनी अलग छवि बना चुके थे। अब उन पर किसी नेता की छाया वाली बात की जानी भी बहुत कम हो गई थी। सचिन से भी उनके रिश्ते अब सामान्य है। दूसरी तरफ गहलोत स्वास्थ्य की समस्या से भी झुझ रहे थे। अब वे स्वस्थ हैं।
कांग्रेस की पावर पॉलिटिक्स का बड़ा टर्निंग पाइंट अभी 7 ज़ितम्बर को फिर सामने आया। पायलट के जन्मदिन पर सचिन के समर्थकों ने पूरे राज्य में जमकर शक्ति प्रदर्शन किया। सेवा कार्यों से हर जिले व राजधानी जयपुर में उनका जन्मदिन मनाया गया। पहली बार इतने वृहद स्तर पर पायलट के जन्मदिन पर कार्यक्रम हुए थे। गायों को चारा, पशुओं के लिए पानी वितरित हुआ तो अनेक जिलों में रक्तदान भी किया गया। पूरे प्रदेश में आयोजन हुए और वो भी नियोजित तरीके से। राजनीतिक हलके में इसे भी पावर पॉलिटिक्स का ही हिस्सा माना गया है। इन आयोजनों से सांसद, विधायक भी जुड़े।
पावर पॉलिटिक्स के इस गेम से ये तो साफ हो गया कि राज्य कांग्रेस का चेहरा अब बदल रहा है। संगठन के स्तर पर ये बदलाव का समय है और उस वक़्त इस तरह का शक्ति प्रदर्शन यही संकेत करता है कि कांग्रेस में बड़े पैमाने पर चेहरे बदलेंगे। जिसकी स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है। आलाकमान कभी भी इस पर निर्णय ले सकता है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।