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रूस के कजान शहर में चल रहा सम्मेलन, साहित्य अकादेमी ने भी की भागीदारी

RNE Network.

रूस के कज़ान में बुधवार से आरंभ हुए ब्रिक्स साहित्य सम्मेलन 2024 में गुरुवार, 12 सितंबर 2024 और शुक्रवार, 13 सितंबर 2024 को भी साहित्यिक गतिविधियां जारी रहीं। आज (13 सितंबर 2024) को, दो कार्यक्रम थे जिनमें भारत के प्रतिभागी भी शामिल थे। दिन के पहले कार्यक्रम “ब्रिक्स साहित्य का भविष्य” में साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य की एकीकृत प्रकृति के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत किया और बताया कि कैसे ब्रिक्स देशों के साहित्यिक सम्मेलनों को दुनिया भर में सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करने के लिए आवश्यक बनाया जा रहा है।

श्रीनिवासराव ने उम्मीद जताई कि ऐसे सम्मेलनों से ब्रिक्स देशों की भाषाओं के परस्पर अनुवादों में वृद्धि होगी और इसके प्रति जागरूकता बढ़ेगी जिससे सार्थक संवाद और उद्देश्यपूर्ण सांस्कृतिक आदान-प्रदान सुनिश्चित होगा। दिन के अंतिम कार्यक्रम “इंटरनेट युग में पुस्तक मेलों पर चर्चा” में बोलते हुए के. श्रीनिवासराव ने कहा कि डिजिटल युग में पुस्तक मेलों के आयोजन से पाठकों, लेखकों, प्रकाशकों को कई लाभ होते हैं।

उन्होंने भारत के महत्त्वपूर्ण पुस्तक मेलों के साथ ही कुछ अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेलों जैसे फ्रैंकफर्ट अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला, शारजाह अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला और ग्वाडलजारा अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला के बारे में भी बताते हुए कई उदाहरण प्रस्तुत किए।

चर्चा में भाग ले रहे अन्य प्रतिभागियों ने व्यक्त प्रतिक्रियाओं की सराहना करते हुए कहा कि विचारों के ऐसे खुले आदान-प्रदान से ही सभी देशों का साहित्यिक समुदाय उपयुक्त सुधार की ओर अग्रसर हो सकते हैं। समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों ने ब्रिक्स देशों के बीच और अधिक सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आशा व्यक्त की।

दूसरे दिन गुरुवार, 12 सितंबर 2024 के कार्यक्रमों में, भारतीय प्रतिभागियों के रूप में , साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक और साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने भाग लिया। कार्यक्रम में माधव कौशिक की एक हिंदी कविता पुस्तक की प्रस्तुति की गई, जिसका रूसी अनुवाद सोनू सैनी ने प्रस्तुत किया, जो भारत से ऑनलाइन कार्यक्रम में शामिल हुए थे।

कार्यक्रम का संचालन के. श्रीनिवासराव और अनास्तासिया स्ट्रोकिना ने किया। दूसरे कार्यक्रम, “अनुवाद के लिए कौन जिम्मेदार है?” पर गोलमेज में, कई प्रतिष्ठित विद्वानों ने अपने विचार साझा किए।