उप चुनाव में मुद्दे स्थानीय, नेताओं के कद और जातीय समीकरण बने, बाकी सब गौण
RNE Special
राज्य की 7 विधानसभा सीटों पर चुनावी माहौल काफी गर्माया हुआ है। दलों और उम्मीदवारों ने अपनी पूरी शक्ति झोंक दी है। पोस्टर, सोशल मीडिया, जनसंपर्क व सभाओं का सिलसिला चल रहा है। कांग्रेस व भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी कर दी मगर मैदान में कम ही नेता नजर आ रहे हैं जो सूची में शामिल है। स्थानीय नेताओं के सहारे ही उम्मीदवार चुनाव की वैतरणी पार करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। भाजपा की कमान जहां सीएम भजनलाल शर्मा व पार्टी अध्यक्ष मदन राठौड़ के पास है तो कांग्रेस की कमान पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा व नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जुली ने संभाल रखी है। रालोपा की कमान हनुमान बेनीवाल व भारतीय आदिवासी पार्टी की कमान राजकुमार रोत के हाथों में है।
चुनावी प्रचार में भाजपा की तरफ से अभी तक वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, भूपेंद्र यादव, राजेन्द्र राठौड़ दिखाई नहीं दे रहे तो कांग्रेस में भी पूर्व सीएम अशोक गहलोत नामांकन दाखिल करते समय की सभाओं में तो थे मगर बाद में नहीं दिखे। सचिन पायलट भी 4 तारीख को जरूर दौसा में थे मगर बाद में नहीं दिखे। गहलोत को महाराष्ट्र में लगाया हुआ है तो सचिन भी झारखंड, महाराष्ट्र व अपने प्रभार के राज्य छत्तीसगढ़ में है। भाजपा में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के पास महाराष्ट्र का प्रभार है तो राजे कहीं दिखाई नहीं दी। हालांकि दोनों ही दल अपने बड़े नेताओं की सभाओं का कार्यक्रम तय कर रहे हैं।
उप चुनाव है इसलिए मुद्दे भी स्थानीय बनते जा रहे हैं। राष्ट्रीय व राज्य के मुद्धों को केवल विपक्ष उठा रहा है। इन उप चुनाव की अधिकतर सीटों पर स्थानीय मुद्दे ही अब तक के चुनाव में हावी है। रामगढ़ और सलूम्बर में कांग्रेस व भाजपा सहानुभूति को बड़ा मुद्दा बनाये हुए हैं तो खींवसर में रालोपा पूरी तरह से केवल इसी विधानसभा के विकास को मुद्दा बनाये हुए हैं। आदिवासी पार्टी ने चौरासी व सलूम्बर में समाज की उपेक्षा का मुद्दा खड़ा किया हुआ है। वहीं देवली उणियारा, दौसा, झुंझनु में जातिगत मुद्दे व नेताओं के वजूद मुद्दे बने हुए हैं। इस तरह सभी सीटों पर स्थानीय बातें ही हावी है। नेता अपने वर्चस्व को लेकर ही चुनावी जंग को लेकर उतरे हुए हैं।
दौसा चुनाव गुर्जर व मीणा जातियों के वोट पाने के लिए चलता दिख रहा है तो ये सीट भाजपा के दिग्गज किरोड़ीलाल मीणा के कद से गर्मा रहा है। यहां कांग्रेस दिग्गज सचिन पायलट व मुरारीलाल मीणा के कद पर केंद्रित होता ही दिख रहा है। जातियों के वोट हासिल करने के लिए पार्टियों ने अपने नेताओं को यहां इसी आधार पर प्रदेश भर से लगाया है। देवली उणियारा सीट भी मीणा व गुर्जर बाहुल्य की है। यहां भी जातिगत आधार पर ही मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास हो रहा है। कांग्रेस के बागी नरेश मीणा भी तो जातिगत आधार पर यहां मैदान में उतरे हुए हैं। यहां किरोड़ी बाबा, सचिन व हरीश मीणा के कद से भी मतदाता को प्रभावित किया जा रहा है।
सलूम्बर व रामगढ़ तो पूरी तरह से सहानुभूति पर वोट लेने पर केंद्रित है। साथ मे जाति का तड़का भी है। झुंझनु सीट पर भी जातिगत समीकरण से ही चुनाव जीतने की जुगत हो रही है। ये सीट तय करेगी कि ओला परिवार का ये गढ़ कायम रहेगा या उसमें दरार आयेगी। गैर जाट मतों का विभाजन यहां बड़ा असर डालेगा। मगर जाति यहां भी बड़ा चुनावी मुद्दा है। ब्रजेन्द्र ओला के कद को आधार बनाकर ही इस चुनाव में कशमकश हो रही है।
कुल मिलाकर सातों सीटों पर जातियां, नेताओं के कद व स्थानीय समस्याएं ही प्रमुखता पा रही है। राज्य स्तर के मुद्दे भाजपा व कांग्रेस उठा तो रहे हैं मगर वे उतने प्रभावी होते नहीं दिख रहे। उसकी भी अपनी वजह है। इन सीटों के चुनाव परिणामों से सरकार पर किसी भी तरह का प्रभाव तो पड़ना नहीं है, इस कारण स्थानीयता, जाति और नेताओं के वजूद को मुद्दा बनाया जा रहा है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।