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बीएपी का दायरा बढ़ा, भाजपा – कांग्रेस के लिए राह मुश्किल हुई

पिछले दो लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव के बाद हाल ही में हुए विधानसभा उप चुनाव में भारतीय आदिवासी पार्टी ( बीएपी ) एक बड़ी शक्ति के रूप में राजनीतिक रूप से उभरी है। पहले यह बांसवाड़ा, डूंगरपुर तक ही सीमित थी मगर उप चुनाव में उसने उदयपुर में भी मजबूत दस्तक सलूम्बर विधानसभा उप चुनाव में दी है। बीएपी ने देवली उणियारा में निर्दलीय नरेश मीणा का समर्थन किया जो दूसरे नम्बर पर रहे। ये उप चुनाव भाजपा व कांग्रेस के लिए बड़ा अलर्ट है। हालांकि चौरासी सीट पर भाजपा ने अपने हार के अंतर को कम किया मगर फिर भी हार तो मिली ही।

पूर्वी राजस्थान में आदिवासियों का बड़ा वोट बैंक है और राजनीतिक रूप से अब वे सक्रिय हो गए हैं। बांसवाड़ा लोकसभा पर भी इस बार बीएपी ने ही भाजपा को हराकर बड़ी जीत दर्ज की थी। कांग्रेस लगातार उनसे समझौते के लिए प्रयास करती रही और उसने अपने कई नेताओं को नजरअंदाज कर बीएपी को समर्थन दिया। यहां से राजकुमार रोत विजयी हुए। बीएपी के सहयोग के बिना अब आदिवासी इलाके में किसी भी राष्ट्रीय दल का जीतना आसान नहीं। ये बात दो चुनावों से बिल्कुल साफ हो गई।

बांसवाड़ा आदिवासी इलाका है और अपार प्राकृतिक संपदा के बाद भी यहां विकास अपेक्षाकृत कम हुआ है। आजादी के 75 साल बाद भी ये जिला रेल सुविधा से नहीं जुड़ पाया है। विकास के अन्य कई मामलों में भी इस जिले में पिछड़ापन साफ देखा जा सकता है।

इस कारण ही आदिवासियों ने अपनी राजनीतिक शक्ति बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल का गठन किया। आदिवासी हित की वकालत व बात तो सभी दल और नेता करते हैं मगर धरातल पर रिजल्ट नहीं मिलता। इस वजह से ही आदिवासी पार्टी बनी। इस पार्टी में मूल चुनाव होने से पहले भी एक चुनाव होता है। वो होता है उम्मीदवार का चुनाव। लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, वे उम्मीदवार का चयन भी अपने तरीके से बहुमत के आधार पर करते हैं। उम्मीदवार को थोंपते नहीं। लोकतांत्रिक तरीके से उम्मीदवार चयन होने के कारण भीतरी असंतोष का सामना, भितरघात आदि समस्याओ का सामना उम्मीदवार को नहीं करना पड़ता और सफलता की उम्मीद अधिक हो जाती है।

मूलतः आदिवासी पूरे पूर्वी राजस्थान में रहते हैं। तभी तो देवली उणियारा सीट पर भी उन्होंने भाजपा व कांग्रेस के बजाय निर्दलीय नरेश मीणा को समर्थन किया और वे बड़ी शक्ति बनकर भी उभरे। बीएपी ने सबसे ज्यादा चकित किया सलूम्बर सीट के उप चुनाव में। यहां मजबूती से पार्टी ने उम्मीदवार उतारा और वो टक्कर में आया। कांग्रेस तो इस उम्मीदवार के कारण पूरी तरह पिछड़ ही गई, भाजपा भी हारते हारते बची। कड़ें मुकाबले से बीएपी ने भविष्य के लिए दोनों राष्ट्रीय दलों को चेतावनी दे दी है।

बीएपी के विस्तार से अब न केवल बांसवाड़ा, डूंगरपुर अपितु उदयपुर, दौसा, टोंक, भरतपुर भी खासे प्रभावित होंगे। पार्टी ने समझौता न करने का निर्णय कर अकेले चलने की बात पहले ही कह दी है। वो अपनी शक्ति का आंकलन करना चाहते हैं और अपने वोट बैंक को राष्ट्रीय दलों से समझौता करके खोना नहीं चाहते। आदिवासी वोटर की इस राजनीतिक चेतना को पहचानना चाहिए। विकास के लिए ये एकजुट हुए हैं, ये सरकारों के लिए अलार्म है।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।