डाॅ.राजपुरोहित को एक लाख रुपए का चेक, प्रशस्ति-पत्र, ताम्र फलक एवं श्रीफल प्रदान कर पुरस्कृत किया
RNE, NATIONAL BUREAU .
राजस्थानी भाषा के प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित को उनकी राजस्थानी काव्यकृति ‘ पळकती प्रीत ‘ के लिए साहित्य अकादेमी द्वारा मंगलवार को कमानी सभागार में आयोजित राष्ट्रीय पुरस्कार अर्पण समारोह में साहित्य अकादेमी सर्वोच्च राजस्थानी पुरस्कार 2023 से पुरस्कृत किया गया ।
अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने बताया कि साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक की अध्यक्षता एवं ख्यातनाम उड़िया लेखिका प्रतिभा राय के मुख्य आतिथ्य में आयोजित साहित्य अकादेमी के राष्ट्रीय पुरस्कार अर्पण समारोह में डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित को यह पुरस्कार अर्पित कर पुरस्कृत किया गया। इस पुरस्कार के अंतर्गत डाॅ.राजपुरोहित को एक लाख रुपए का चेक, प्रशस्ति-पत्र, ताम्र फलक एवं श्रीफल प्रदान कर पुरस्कृत किया गया। समारोह के प्रारम्भ में अकादेमी सचिव के. श्रीनिवासराव ने स्वागत उद्बोधन एवं अकादेमी उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर साहित्य अकादेमी के साहित्योत्सव एवं राष्ट्रीय पुरस्कार अर्पण समारोह में देश विदेश की 175 भाषाओं के 1100 से ज्यादा रचनाकारों ने भाग लिया। राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण, नंद भारद्वाज, मधु आचार्य ‘ आशावादी’, प्रोफेसर (डाॅ.) माधव हाडा, डाॅ.ब्रजरतन जोशी,दिनेश चारण ने प्रसन्नता व्यक्त कर डाॅ.राजपुरोहित को बधाई दी।
ज्ञातव्य है कि साहित्य अकादेमी पिछले महिने 24 भारतीय भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का चयन किया गया जिसमें वर्ष 2023 के लिए राजस्थानी भाषा – साहित्य की काव्यकृति ‘ पळकती प्रीत ‘ का चयन किया गया था। काव्यकृति ‘ पळकती प्रीत ‘ : कोराना काल के दरम्यान डाॅ. गजेसिंह राजपुरोहित द्वारा लिखी गई राजस्थानी काव्यकृति मध्यकालीन प्रेमाख्यान पर आधारित है । जिसमें मूमल – महेन्दरो, ढोला-मारु, जेठवा-ऊजळी, बाघो-भारमली, नरबद- सुपियारदे, सैणी-बीझाणंद, आभल- खींवजी, नागजी-नागवती, जलाल- बूबना, सोरठ – बींझौ, केहर- कंवळ जैसे सुप्रसिद्ध इग्यारह प्रेमाख्यानों को पहली बार नव बोध , मानवीय संवेदना तथा आधुनिक दृष्टी से प्रबंध काव्य में रचा गया है ।
राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा के दौरान अनेक विद्वानों ने इस काव्यकृति की सराहना करते हुए इसे आधुनिक राजस्थानी काव्य की कालजयी कृति बताया था । भाव, भाषा, शिल्प एवं काव्यगुणों की दृष्टि से इस काव्य कृति की राजस्थानी साहित्य जगत में बहुत सराहना हुई ।