भाजपा: संगठन में 7-8 साल काम, चुनाव में पार्टी अनुशासन मानने वाला नेता ही होगा अध्यक्ष!
बीकानेर का शहर भाजपा अध्यक्ष कौन! वैश्य समाज का दावा मजबूत !! चर्चा में तीन नाम !!!
- क्या रिपीट हो सकते हैं विजय आचार्य ?
RNE, Bikaner.
बीकानेर में शहर भाजपा अध्यक्ष कौन होगा? भाजपा खेमे में अभी सबसे ज्यादा चर्चा इसी सवाल पर है। कयासों के साथ ही दावे बाहर आ रहे हैं। जातिगत समीकरणों और नेताओं से नजदीकियों के आधार पर अलग-अलग नेता को नए अध्यक्ष के तौर पर देखा जा रहा है। इसके साथ ही दावेदारों के प्लस-माइनस प्वाइंट भी गिनाए जा रहे हैं। ये सिर्फ जुबानी जमा-खर्च नहीं हो रहा वरन कई लोग बाकायदा बड़े नेताओं तक ‘कारसेवा’ के रूप में ये तर्क पहुंचा रहे हैं। मोटे तौर पर माना जा रहा है कि केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल की पसंद का नेता ही भाजपा का जिलाध्यक्ष होगा। इससे इतर कई लोगों का दावा है कि शहर के विधायकों की राय भी अहम रहेगी। कहा तो यहां तक जा रहा है कि विधायकों और केन्द्रीय मंत्री की पसंद के नाम अलग-अलग है। प्रदेश संगठन तक दोनों पक्षों की अलग-अलग पसंद पहुंची भी है।
पहले बात भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष विजय कुमार आचार्य की:
भाजपा के वर्तमान शहर अध्यक्ष विजय कुमार आचार्य को लेकर संगठन और अधिकांश नेताओं को लेकर कोई परेशानी नहीं है। परफॉर्मेंस के लिहाज से भी देखा जाए तो आचार्य के कार्यकाल में बीकानेर पूर्व, पश्चिम दोनों विधानसभा सीटों पर जीत मिली। सबसे बड़ी जीत बीकानेर सांसद की रही है। सबसे बड़ी इसलिए कि सांसद अर्जुनराम मेघवाल बीकानेर की आठ में से पांच सीटों पर पीछे रहे। एक सीट पर बराबर के लेवल पर नाममात्र की बढ़त। ऐसे में जीत का पूरा श्रेय बीकानेर शहर की दो विधानसभा सीटों पर हुए बंपर मतदान को जाता है।
तब क्या अध्यक्ष बदलना जरूरी?
हालांकि अध्यक्ष बदलना जरूरी नहीं है, लेकिन मोटे तौर पर माना जा रहा है कि दो कार्यकाल के बाद पार्टी ने किसी और को अवसर देने का मानदंड बनाया है। हालांकि यह मानदंड लगातार दो कार्यकाल के बाद का है। ऐसे में दो बार अध्यक्ष रह चुके आचार्य भले ही इस पैमाने पर हट नहीं सकते, लेकिन उन्हें रिपीट करना थोड़ा मुश्किल होगा। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि खुद आचार्य ने दोबारा अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया है और संगठन से कहा है कि किसी दूसरे कार्यकर्ता को नेतृत्व की कमान थमाए। इसके अलावा जातिगत समीकरण को देखते हुए भी आचार्य को रिपीट करना आसान नहीं है।
अध्यक्ष के लिए ये जातिगत समीकरण:
भले ही राजनीति में जाति की बात स्पष्ट तौर पर नहीं की जाए, लेकिन सभी फैसले जातिगत समीकरणों के आधार पर ही होते हैं। अध्यक्ष चयन भी इससे अछूता नहीं रह सकता। अब बीकानेर के राजनीतिक समीकरण देखे जाएं तो जिले में मोटे तौर पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, ओबीसी जाट-बिश्नोई, मूल ओबीसी, वैश्य, एससी के बीच पद-संतुलन बनाना होता है।
वर्तमान में राजपूत समाज के दो विधायक अंशुमान सिंह भाटी और सिद्धि कुमारी है। देहात अध्यक्ष जालम सिंह भाटी भी राजपूत समाज से हैं। ब्राह्मण समाज से दो विधायक जेठानंद व्यास और ताराचंद सारस्वत है। महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित को भी ब्राह्मण प्रतिनिधि के तौर पर देखा जा सकता है। इसी तरह एससी से देखा जाएं तो एक विधायक डा.विश्वनाथ मेघवाल और एक सांसद-केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल है। ओबीसी जाट वर्ग से सुमित गोदारा कैबिनेट मंत्री है। मूल ओबीसी वर्ग से रामगोपाल सुथार को मंत्री का दर्जा दिया गया है, वहीं चंपालाल गेदर को संगठन में ओबीसी मोर्चा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है। इस लिहाज से जातिगत आधार पर कोई वंचित वर्ग रहता है तो वह है वैश्य।
वैश्य वर्ग से भाजपा अध्यक्ष के तीन बड़े दावेदार:
इस लिहाज से देखा जाए तो बीकानेर शहर में वैश्य वर्ग से भाजपा अध्यक्ष पद के तीन दावेदार प्रमुख रूप से सामने आ रहे हैं। इनमें पहले सालों से भाजपा में महामंत्री पद सहित विभिन्न सांगठनिक जिम्मेदारियां निभाने वाले मोहन सुराणा, यूआईटी के पूर्व चेयरमैन महावीर रांका और पूर्व महापौर नारायण चौपड़ा के नाम प्रमुख तौर पर सामने आ रहे हैं।
भाजपा ने तय किये ये मानदंड:
दरअसल नये साल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर कई प्रदेश अध्यक्ष और जिलों में नये जिलाध्यक्ष बनने हैं। पार्टी के सांगठनिक निर्देशों के मुताबिक 15 जनवरी तक यह प्रक्रिया पूरी हो सकती है। हालांकि भाजपा संगठन ने जिलाध्यक्ष बनाने के लिए कई मानदंड भी तय किए हैं। इन मानदंडों में मोटे तौर पर यह है जिस पदाधिकारी ने संगठन में सात से आठ साल तक विभिन्न पदों पर संतोषजनक काम किया है उसे अध्यक्ष बनाने में प्राथमिकता दी जाएगी। इसके साथ ही लगातार दो बार मंडल और जिलाध्यक्ष रहे पदाधिकारियों को अब फिर से उस पद का जिम्मा नहीं दिया जाएगा। उन लोगों को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी बिलकुल नहीं दी जाएगी जिन्होंने चुनाव के दौरान अनुशासनहीनता की। संगठन या प्रत्याशी के खिलाफ काम किया या भाजपा प्रत्याशी के विरोध में दूसरे प्रत्याशी को लाभ पहुंचाया।
अगर इन मानदंडों से ही अध्यक्ष बना तो किसके सर होगा ताज…?
ये मानदंड जिन्हें पार्टी की आचार संहिता कही जाती है इनके पैमाने पर ही नया अध्यक्ष चुना गया तो बीकानेर में कौन अध्यक्ष हो सकता है इस पर लगातार कयास और चर्चाएं चल रही हैं।
किसके के पक्ष में क्या तर्क:
1. मोहन सुराणा:
- सालों तक पार्टी संगठन में महामंत्री के पद पर काम करने का अनुभव। वर्तमान महामंत्री।
- किसी चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधि या टिकट जैसे मुद्दे पर बगावत या खिलाफत का रिकॉर्ड नहीं।
- उम्र के पैमाने पर सटीक। आपराधिक रिकॉर्ड नहीं।
- वैश्य के साथ मंडी व्यापारी। मंडी समिति में उपाध्यक्ष रहे हैं।
- मोटे तौर पर शहर के दोनों विधायकों और सांसद को चुनाव में उनकी भूमिका को लेकर संदेह नहीं।
2. महावीर रांका:
- खुद की फैन फॉलोइंग के साथ ही पार्टी कार्यक्रमों में भीड़ जुटाने से लेकर प्रबंधन तक की बड़ी जिम्मेदारी।
- यूआईटी के चेयरमैन रहते हुए शहर की सबसे बड़ी समस्या सूरसागर का समाधान करना बड़ी उपलब्धि।
- पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे और देवीसिंह भाटी से नजदीकियां।
- केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल से रिश्तों में पहले रही खटास अब उनसे बढ़ी नजदीकियां।
- पार्टी की ओर से कई जिम्मेदारियां समय-समय पर दी गई।
- संघ के कुछ प्रमुख पदाधिकारियों की ओर से पैरवी के भी कयास।
3. नारायण चौपड़ा:
- पूर्व महापौर और राजनीति में पार्षद चुनाव से ही मोटे तौर पर एंट्री।
- महापौर बनने के बाद संगठन के साथ लगातार काम।
- पिछले सालों में कई संगठनात्मक प्रभार, जिम्मेदारियां।
- स्वच्छ छवि, सरल व्यक्तित्व और राजनीति में किसी गुट विशेष का ठप्पा नहीं।
ये भी दावेदारों में शामिल:
हालांकि जातिगत समीकरणों के आधार पर भले ही वैश्य समाज का दावा अध्यक्ष पद पर ज्यादा माना जा रहा है लेकिन केवल इसी एक आधार पर इस पद का निर्णय नहीं हो सकता। पहले भी इन सभी समीकरणों के रहते हुए दो विधायक या विधानसभा टिकट होने के बावजूद राजपूत और ब्राह्मण को अध्यक्ष बनाया जा चुका है। इनमें अखिलेश प्रतापसिंह, सत्यप्रकाश आचार्य, शशिकांत शर्मा का नाम भी शामिल है। इसके अलावा इस ओबीसी के तौर पर रामगोपाल सुथार, नंदकिशोर सोलंकी, गोपाल गहलोत, किसनाराम नाई, बिहारीलाल बिश्नोई, एससी में डा.विश्वनाथ मेघवाल आदि नाम गिनाये जा सकते हैं। ऐसे में अब भी अब भी गैर वैश्य अध्यक्ष बनाने की संभावना कम नहीं है। ऐसे में अखिलेश प्रतापसिंह, अनिल शुक्ला, जेपी व्यास, बनवारीलाल शर्मा, अरविंद किशोर आचार्य, संपत पारीक, सुरेन्द्रसिंह शेखावत, सुधा आचार्य, अशोक भाटी, गुमानसिंह, एडवोकेट अशोक प्रजापत, भगवानसिंह मेड़तिया, श्यामसिंह हाडला, अरुण जैन आदि नाम भी चर्चाओं में गाहे-बगाहे उछल रहे हैं।
इसलिये अभी बहुत महत्वपूर्ण है अध्यक्ष का चयन:
हालांकि पार्टी में अध्यक्ष हमेशा ही सबसे महत्वपूर्ण होता है लेकिन वर्तमान में जब भाजपा की केन्द्र और राज्य में सरकार है तब अध्यक्ष की बड़ी भूमिका हो जाती है। खासतौर पर कुछ ही महीनों में होने वाले नगर निगम चुनावों में प्रत्याशी चयन से लेकर जीत की रणनीति बनाने और उसे क्रियान्वित करने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।