विधानसभा उप चुनाव में कांग्रेस तैयार, भाजपा खुद को रही संभाल
आरएनई,स्टेट ब्यूरो।
राज्य की पांच विधानसभा सीटों के उप चुनाव के लिए चुनाव आयोग ने अधिसूचना जारी कर दी। लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद उत्साहित कांग्रेस ने भी इन उप चुनावों के लिए कदमताल आरम्भ कर दी। पीसीसी चीफ गोविंद डोटासरा ने हर सीट के लिए चुनाव की समितियां बना दी। उम्मीदवार तलाशने का काम आरम्भ हो गया। जबकि भाजपा अभी तक कोई कदम इन चुनावों को लेकर नहीं उठा सकी है। चुनावी तैयारी शुरू नहीं कर सकी है।
हरीश मीणा, मुरारीलाल मीणा, ब्रजेन्द्र ओला, हनुमान बेनीवाल व राजकुमार रोत के सांसद बनने व विधायक पद से इस्तीफा देने के बाद ये पांच सीटें रिक्त हुई है। बेनीवाल पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि वे उप चुनाव में समझौता नहीं करेंगे, अकेले ही लड़ेंगे। कांग्रेस पर इसका खास असर नहीं पड़ना है। इसी कारण उसने खींवसर सहित पांचों सीटों के लिए उम्मीदवार चयन का काम समितियां बनाकर आरम्भ कर दिया है।
भाजपा चुनावी तैयारी कैसे करे, वो तो लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद अपने भीतर से उपजी अंतर्कलह को ही काबू नहीं कर पा रही है। उसकी मुश्किलें तो अपनों ने ही बढ़ा रखी है। सबसे पहले झुंझनु से हारे शुभकरण चौधरी ने मुंह खोला और अग्निवीर योजना व भितरघात को ही अपनी हार का कारण बताया। उसी झुंझनु सीट पर विधानसभा का उप चुनाव होना है। उनके बोल शांत हुए भी नहीं थे तो पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी ने पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ को हार के लिए जिम्मेवार ठहरा दिया। उनके सुर में सुर स्वामी सुमेधानन्द ने मिलाया। उनका कहना था कि चूरू पर भाजपा सांसद का टिकट कटने से पार्टी 4 सीटें हार गई। उन्होंने तो वसुंधरा राजे का पक्ष लेते हुए ये भी कह दिया कि वे प्रचार करती तो फर्क पड़ता, उनके प्रचार न करने का नुकसान हुआ। सुमेधानन्द तो यहां तक कह गये कि उन्होंने दुष्यंत का प्रचार किया तो वो 3 लाख से अधिक वोटों से जीते।
इन दोनों बयानों के बाद राजेन्द्र राठौड़ का भी पलटवार हुआ। उससे भी भाजपा की राजनीति गर्माई। ये गर्माहट चल ही रही थी कि उसके बीच भरतपुर सीट हारे भाजपा उम्मीदवार कोली ने भी आरोप जड़ दिए। इन सब बयानों से भाजपा की अंतर्कलह तो उभर कर धरातल पर आई मगर ये भी साफ हो गया कि प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी भी इन बयानों पर अंकुश नहीं लगवा पा रहे। वे देख रहे हैं। जिसके कारण कार्यकर्ताओं में जरूर एक निराशा आई है। उसका असर उप चुनावों पर पड़ गया तो भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल होगी।
ये अंतर्कलह की बातें जोर शोर से चल ही रही थी, उसके बीच पूर्व सीएम राजे का एक बयान आ गया जिसने तो भूचाल ला दिया। उदयपुर में सुंदर सिंह भंडारी की स्मृति में हुए आयोजन में राजे ने कहा कि समर्पित कार्यकर्ताओं का सम्मान ही नहीं रह गया। जिनको अंगुली पकड़कर आगे लाये वे ही भूल गये। इस बयान से उन्होंने एक साथ कई नेताओं पर तंज किया है। इस बयान के राजनीतिक अर्थ निकल रहे हैं जो गलत भी नहीं। भाजपा के बड़े नेताओं ने राजे के इस बयान पर तो मौन ही साध लिया है। ये सब स्थितियां भाजपा के अंदर की कलह की बानगी भर है, अभी तो कई नेता फिर बयानों के साथ बाहर आने को तैयार है।
लोकसभा में आशानुकूल परिणाम नहीं आये और बयानों से अंतर्कलह बाहर आ गई। इसके मध्य उप चुनाव आ गये। भाजपा के सामने ये भी बड़ी चुनोती है। एक भी सीट भाजपा ने पहले जीती हुई नहीं है। वो बात भी भारी है। राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद दो उप चुनाव हुवै और दोनों में भाजपा हारी। इस वजह से ये 5 उप चुनाव भाजपा के लिए बड़ी परेशानी है। देखते हैं, अंतर्कलह से घिरी भाजपा इस चुनोती का सामना कैसे करती है।
— मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘