सोनिया चुनाव लड़ने राज्य में आई, तो कई नेता छोड़ रहे कांग्रेस, झटके से कैसे उबरेगी कांग्रेस
आरएनई, बीकानेर।
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने अचानक से लोकसभा छोड़ राज्यसभा चुनाव में उतरने का निर्णय कर सबको चकित किया। उसके बाद चुनाव भी राजस्थान से लड़ने का निर्णय कर सबको सकते में डाल दिया।
राजस्थान के कांग्रेस नेताओं को लगा कि इससे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मजबूत होगी और उन्होंने धड़ाधड़ बयान दे दिये। कांग्रेस नेता जोश में थे और उनको पता ही नहीं चला कि पर्दे के पीछे कुछ दूसरा ही खेल चल रहा है जिससे कांग्रेस को झटका लगेगा। आज आदिवासी नेता जो सांसद, विधायक व मंत्री रहे हैं, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, वे कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये।
राहुल गांधी ने जब मणिपुर से अपनी भारत जोड़ो यात्रा आरम्भ की तो कांग्रेस को मिलिंद देवड़ा ने झटका दिया। राहुल कैम्प के इस नेता ने पार्टी छोड़ दी। न्याय यात्रा का समापन मुंबई, महाराष्ट्र में होना है। उससे पहले पूर्व सीएम अशोक चव्हाण को भाजपा ने तोड़ लिया। इतना ही नहीं, राज्यसभा का टिकट भी दे दिया।
सोनिया गांधी राजस्थान आई थी इसलिए यहां भी कुछ होना तय था। यहां भी कई नेताओं को तोड़ लिया गया। कांग्रेस मजबूत होने के बयान देने वाले नेताओं को अब कुछ कहते नहीं बन रहा। ये सब कब हुआ, किसीको पता ही नहीं चला। आदिवासी व जाट नेताओं को तोड़ने का मतलब है, कांग्रेस के कोर वोट पर हमला। ये दर्शाना कि सोनिया गांधी का सकारात्मक नहीं, नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। ऐसे नेताओं को तोड़ना जिनके कांग्रेस छोड़ने की कभी कोई सोच भी नहीं सकता। मगर भाजपा ने कांग्रेस को जोर का झटका धीरे से दिया है। भाजपा तीसरी बार मिशन 25 पूरा करना चाहती है, ये सब उसकी ही कवायद है। अब तो ये साफ हो गया है। तभी तो चुन चुनकर हर राज्य में नेता तोड़े गये हैं।
कांग्रेस नेता खिलाड़ी लाल बैरवा ने तो अपने बयान से एक नई सनसनी पैदा कर दी और कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ रख दिया। बैरवा ने कहा कि कांग्रेस की बुरी हालत के लिए अशोक गहलोत जिम्मेवार है। उनका कहना था कि कुछ नेताओं ने कांग्रेस को अपनी बपौती बना लिया। गहलोत पर हमला कर बैरवा ने कांग्रेस के भीतर भी एक नई रार को फिर से जिंदा कर दिया है। क्यूंकि वे पहले गहलोत के साथ थे, फिर पायलट के साथ आ गये, उनका विधानसभा का टिकट कट गया। गहलोत व पीसीसी अध्यक्ष गोविंद डोटासरा पर वो जमकर बरसे हैं। उनकी कोशिश कांग्रेस में गहलोत को कमजोर करने की भी है। इसी कारण कांग्रेस की दुखती रग को उन्होंने सहला दिया है।
इस तरह के झटकों से कांग्रेस कैसे उबरेगी, ये बड़ा सवाल है। नहीं उबर सकी तो फिर पूरी ताकत से लोकसभा चुनाव कैसे लड़ेगी, ये भी संशय है। कांग्रेस को लगे झटके ने एकबारगी पार्टी को राज्य में पूरी तरह से बिखेर दिया है। लोकसभा चुनाव पर इसका क्या असर पड़ेगा, ये तो समय बतायेगा।