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कम मतदान ने भाजपा – कांग्रेस की चिंता बढ़ाई, दोनों दूसरे चरण के लिए बना रहे रणनीति

RNE, BIKANER .

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में राज्य की 12 सीटों पर मतदान हुआ। मतदान ने भाजपा और कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। लोग भी परिणाम को लेकर कयास लगाने से कतरा रहे हैं। पहले तो मतदान का प्रतिशत देखते ही विश्लेषक अपनी टिप्पणी दे देते थे, सट्टा बाजार अपने भावों में फेरबदल कर देते थे, राजनीतिक दल अपने दावे कर देते थे। मगर इस बार पहले चरण के बाद हर तरफ असमंजस बना हुआ है। सीना ठोककर कोई भी दावा करने से बच रहा है।
मतदाता ने इस बार अपना मूड भी ज्यादा अभिव्यक्त नहीं किया। जिसने वोट दिया वो भी मुखरित नहीं हो रहा। उसकी चुप्पी ने राजनीतिक दलों व उम्मीदवारों को डरा दिया है। पहले मतदाता मत देने से पहले चुप रहता था मगर मत देने के बाद अपने पसंद के दल व उम्मीदवार की जीत का दावा कर हरेक से उलझ लेता था। जिससे वोटर का मूड पता चल जाता था। मगर इस बार तो मतदाता मत देने के बाद भी चुप है। पूछने पर रहस्यमयी मुस्कान के अलावा कुछ भी जवाब नहीं देता है। जिसके कारण ही नेता चिंतित है।
इस बार मतदान का प्रतिशत विधानसभा चुनाव व पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा ज्यादा कम हुआ है। ये चकित करने वाली बात है। मतदान का कम प्रतिशत व मतदाता की चुप्पी, गजब की है। इसने 4 जून तक तो नेताओं को डरा ही दिया है। हर बार कम या अधिक मतदान से लोग परिणाम का अंदाजा लगा लेते थे, मगर इस बार अंदाजा लगाने से बच रहे हैं। कम मतदान को लेकर पहले धारणा थी कि इससे सत्ता पक्ष को नुकसान होता है, मगर ये बात कभी भी सर्वमान्य साबित नहीं हुई। इसी कारण इस बार लोग दावे नहीं कर रहे।
चिंता में डूबे राजनीतिक दलों ने दूसरे चरण के लिए अपनी रणनीति बनाई है ताकि मतदान का प्रतिशत बढ़ाया जा सके। भाजपा ने कम मतदान के बाद एक गम्भीर बैठक की। जहां मतदान हो गया, वहां के नेताओं और कार्यकर्ताओं को दूसरे चरण के मतदान वाली सीटों पर भेजा जा रहा है। बूथ स्तर पर फिर से बैठकें कर अधिकाधिक मतदान कराने के निर्देश दिए जा रहे हैं। इसके अलावा ये भी देखा जा रहा है कि जिस क्षेत्र में जिस जाति के अधिक लोग रहते हैं, वहां उसी जाति के किसी बड़े नेता की ड्यूटी लगाई गई है।
कांग्रेस भी पहले चरण में मिले रेस्पॉन्स के बाद दूसरे चरण में मतदान बढ़ाने को लेकर खास रणनीति पर काम कर रही है। उसने भी जातियों के समीकरण देखकर राज्य के उसी जाति के नेताओं को बची 13 सीटों पर उतारा है। इसके अलावा विधायकों या विधानसभा चुनाव लड़ चुके नेताओं को निर्देशित किया है कि वे व्यक्तिगत प्रयास करें और मतदान बढ़ाये।
दूसरी तरफ राजनीतिक विश्लेषक कम मतदान को लेकर चिंतित है और इस पर गंभीर मंथन की जरूरत बता रहे हैं। उनका कहना है कि मतदान से ये बेरुखी लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। मतदाता की इस बेरुखी का पता लगाकर राजनीतिक दलों को अपनी नीतियों व व्यवहार में बदलाव करना चाहिए। कुल मिलाकर कम मतदान क्या गुल खिलाता है ये तो 4 जून को पता चलेगा। मगर कम मतदान पर मंथन तो अभी से आरम्भ होना चाहिए, ये लोकतंत्र की जरूरत है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘