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अंशुमानसिंह बोले – झोंपड़े जलते हैं, तन पर कपड़ा, खाने को दाना नहीं बचता, छह महीने बाद 4100 मिलते !

राहुल हर्ष

RNE Kolayat.

कोलायत के विधायक अंशुमानसिंह भाटी ने सोमवार को विधानसभा में उन लोगों की पीड़ा बयान की जिनके आशियाने भीषण गर्मी में झुलस जाते हैं।

कहा, खेतों-ढाणियों में बने कच्चे झोंपड़े जल जाने के बाद अन्न एक दाना नहीं बचता, शरीर पर कपड़ा नहीं रहता।

कई बार पशु तक जल जाते हैं। सरकार छह महीने जांच-पड़ताल के बाद 4100 रूपए देती है। इस व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। पीड़ितों को तत्काल मौके पर सहायता मिलनी चाहिए।

इसलिए लग जाती है आग :

विधायक अंशुमानसिंह ने सोमवार को विधानसभा में प्रक्रिया के नियम 295 में विशेष उल्लेख करते हुए यह बात रखी। भाटी ने कहा, पश्चिमी राजस्थान में कच्चा झोपड़ा निर्माण में स्थानीय झाड़ियां खींप, सनिया का इस्तेमाल किया जाता है और गर्मियों में इनका तापमान बढ़ कर 50 से 53 डिग्री तक हो जाने एवं आपस में खींप का हवा आंधी में रगड़ खाने से आग लग जाती है।

झोपडे-छपरे में तेज हवा एवं पानी के अभाव में आग पर काबु नहीं पाया जा सकता है और उससे ग्रामीण का अनाज, गहने, कपड़े, चारपाई बिस्तर यहां तक की भेड-बकरी, गाय भी कई बार जल जाती है। पीड़ित परिवार के तन पर कपडों के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचता है।

राहत के लंबी आहत करने वाली प्रक्रिया :

प्रदेश में प्राकृतिक आपदा विभाग भी है लेकिन पुलिस व पटवारी की जांच प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है और परिवार खुले आकाश के नीचे भूखा-प्यासा, तेज गर्मी में आंखें पथराये बैठा रहता है। आपदा विभाग की अपनी कार्यशैली से 6 माह से एक वर्ष तक पीड़ित द्वारा चक्कर लगाने पर मात्र 4100/- रूपये अथवा पुरा घर जलने या पशु जलने पर एक लाख या अधिक राशि मिल जाती है। कई पीड़ित तो थक-हार कर बिना किसी राजकीय सहायता के निराश होकर उम्मीद छोड़ देते हैं।