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सांड की मार से महिला की मौत पर मुआवजा, लोक अदालत के आदेश पर हस्तक्षेप से इनकार

  • महिला की मौत पर स्थायी लोक अदालत ने तीन लाख रूपए मुआवजे के दिये थे आदेश
  • निगम ने हाईकोर्ट में फैसले को चुनौती दी, कहा-स्थायी अदालत के अधिकार में नहीं ऐसा आदेश देना
  • हाईकोर्ट ने स्थायी लोक अदालत के निर्णय को उचित बताया, हस्तक्षेप से किया इनकार


आरएनई, बीकानेर।

बीकानेर में आवारा सांडो की मार से घायल होकर दम तोड़ने वाली महिला के मामले में स्थायी लोक अदालत की ओर से दिये गए फैसले पर निगम की आपत्ति को हाईकोर्ट ने झटका दिया है। न्यायाधीश विनीतकुमार माथुर की एकलपीठ ने स्थायी लोक अदालत के फैसले मंे हस्तक्षेप से इनकार करते हुए सफाई, सुरक्षा को निगम की जिम्मेदारी मानते हुए सांडों के कारण महिला की मौत होने पर मुआवजा देने के निर्णय को उचित बताया है। इसके साथ ही कोर्ट ने नगर निगम पर कड़ी टिप्प्पणी भी की है।

मामला यह है : कोठारी हाॅस्पिटल के आगे महिला को गोधों ने कुचला, मौत

बीकानेर में कोठारी हाॅस्पिटल के आगे एक महिला को आवारा सांडों-गायों ने गिराकर कुचल दिया। अगस्त 2019 की इस घटना में महिला संतोष सिकलीगर को पहले कोठारी हाॅस्पिटल और बाद में पीबीएम ले जाया गया। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।

मृतका के परिजनों ने निगम को बताया जिम्मेदार :

आवारा सांडों के खुले आम घूमने से हुई मौत के लिए मृतका के परिजनों ने नगर निगम को जिम्मेदार बताते हुए मुआवजे की मांग की और स्थायी लोक अदालत में वाद दायर किया। मृतका के पति धन्नाराम, बेटे खाजूराम, रामदेव, चैनसुख व बेटी इंदू ने मुआवजे की मांग रखी। स्थायी लोक अदालत में न्यायाधीश महेश शर्मा और प्रियंका पुरोहित ने तीन लाख रूपए मुआवजा और पांच-पांच हजार रूपए संताप, परिवाद व्यय अदा करने का आदेश 02 अगस्त 2023 को दिया था।

निगम ने हाईकोर्ट में दायर की याचिका :

नगर निगम ने स्थायी लोक अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट एकल पीठ में याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान नगर निगम की ओर से दलील दी गई कि इस मामले में मुआवजे का आदेश देना लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। स्थायी लोक अदालत ने विधिक भूल की है।

हाईकोर्ट की निगम के खिलाफ कड़ी टिप्पणी :

निगम की इस दलील को हाईकोर्ट ने नहीं माना। एकल पीठ ने कहा, सार्वजनिक संरक्षण और स्वच्छता बीकानेर नगर निगम का दायित्व है जिसे निभाने में वह विफल रहा। आवारा सांड सड़क पर घूमते रहे जिन्होंने संतोषदेवी को घायल किया और उपचार के दौरान उनका निधन हो गया। निगम कानूनन अनिवार्य अपेक्षित सेवाओं और कर्तव्यों को पूरा करने के प्रति उदासीन रहा। स्थायी लोक अदालत ने अधिनियम की धरा 22 के अनुसरण में उचित विचार कर सही निर्णय दिया।