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भक्त प्रहलाद को चोट पहुंचाने कोड़े फटकारे, डूबते सूरज की साक्षी में हिरण्यकश्यप वध

  • लखोटिया चौक, डागा चौक, लालाणी व्यासों का चौक, नथूसरगेट, जस्सूसरगेट, गोगागेट, दुजारियों की गली, बिस्सों का चौक सहित कई जगह नृसिंह लीला

RNE, BIKANER .

खचाखच भरा चौक। हर नजर मंदिर की ओर। अचानक पीतवस्त्रधारी भक्त प्रहलाद को लोगों के घेरे में आते देख सैकड़ों कंठों से फूटा, ‘भक्त प्रहलाद की जय।’ लोग उस ओर उमड़ने लगे। चाहत एक ही, जैसे-तैसे भक्त प्रहलाद के पांव छू लें लेकिन इतनी भीड़ में सुरक्षा को देखते हुए यह हो नहीं पा रहा था।

रोमांच तब बढ़ा जब पुरजोर आवाज में लय के साथ ‘हिरणा-किसना गोविंदा पैळाद भजे’ उद्घोष लगाते बीसियों युवकों की टोली दौड़ती आई। इसके साथ ही काला लबादा और राक्षस के मुंह जैसा मुखौटा पहने, हाथ में कोड़ा लिये फटकारता, नाचता शख्स पहुंचा।

जांघ पर थाप देते, हुंकार भरते वह भक्त प्रहलाद की ओर बढ़ा। बीसियों लोगों ने उस तक पहुंचने से रोक दिया। लौट गया, जनता के बीच भागता, कोड़ा फटकारता और लगते रहे उद्घोषण-हिरणा किसना…।’ ऐसा एक नहीं कई बार हुआ कि हिरणा किसना ने भक्त प्रहलाद तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन उसे पहुंचने नहीं दिया गया।


रोमांच तब ओर बढ़ गया जब मंदिर में खंभा फटा ओर उसमें से निकले नरसिंहदेव ने जमकर नृत्य किया। हुंकार भरते, भरपूर गुस्से में वे लोगों के बीच पहुंचने को बेताब थे। बड़ी मुश्किल से उन्हें संभालते हुए चौक के पाटे पर लाया गया जहां भक्त प्रहलाद विराजमान थे। भगवान और भक्त का यह मिलन देख पूरा चौक ‘नरसिंह देव की जय’ ‘प्रहलाद भक्त की जय’ उद्घोषों से गूंज उठा। इस बीच एक बार फिर लहर की तरह आय उद्घोष ‘हिरणा रे किसना..’।

इसके साथ ही दौड़ता आया काळिया यानी हिरण्यकश्यप। वह प्रहलादभक्त की ओर लपका। उधर नृसिंहदेव काळिये को मारने उसकी तरफ लपके। जैसे-तैसे वह भाग गया लेकिन एक सींग टूट गया। यूं दो से तीन बार मूवमेंट बने। आखिरकार वह वक्त भी आ गया जब दिन डूबने वाला था।

जितनी भीड़ चौक में थी उससे कहीं ज्यादा दूर-दूर तक छतों पर पहुंच चुकी थी। हर कोई उस क्षण का साक्षी बनना चाहता था जब नृसिंहदेव के हाथों हिरण्यकश्यप का वध हो। आखिर वह घड़ी आ गई। इस बार काळिया दौड़ता, कोड़ा फटकारता आया, भक्त प्रहलाद की ओर लपका।

सामने हाथ लहराते, जांघ पर हाथ की थाप दे पूरे आक्रोश साथ नृसिंहदेव ने काळिये को लपक लिया। देखते-देखते उसे जांघो पर लिटा दिया। रोमांच चरम पर पहुंच गया। पूरा चौक उद्घोषों से गूंजने लगा। नृसिंह देव की जै-जैकार होने लगी। थालियां, शंख बजें। नगाड़ों पर ताल तेज हो गई। हर कदम थिरकने लगा। मुठ्ठी भिंचे हाथ हवा में लहराने लगे और तेज रिद्म जाकर नगाड़ों की ताल बंद हो गई।

घोषणा हो गई-हिरण्यकश्यप का अंत। फूल बरसने लगे। कुछ पटाखे भी चले ओर मंदिर में पहुंचे नृसिंह देव। शुरू हो गई आरती। प्रसाद के रूप में बंटने लगा पंचामृत। लोग घरों की ओर लौटने लगे। कइयों के हाथों में रंगीन कागज का टुकड़ा था। यह उस खंबे का हिस्सा था जिसे नृसिंहदेव के अवतार की लीला में फाड़ा गया था।

बीकनेर शहर के लखोटिया चौक, डागा चौक, लालाणी व्यासों का चौक, नथूसरगेट, जस्सूसरगेट, गोगागेट, दुजारियों की गली, बिस्सों का चौक लगभग हर उस जगह कमोबेश ऐसा ही दृश्य दिखा। नृसिंह जयंती पर भरे मेलों में इस नृसिंह लीला का बीसियों जगह लाइव टेलीकास्ट भी होता रहा।

कहां, किसने, क्या भूमिका निभाई:

  • लखोटिया चौक : मनोज बिस्सा-नृसिंहदेव, अश्विनी व्यास हिरण्यकश्यप, कन्हैया ओझा प्रहलाद भक्त।
  • डागा चौक: अशोक शर्मा-हिरण्यकश्यप, महेंद्र रंगा-नृसिंह देव, गोविंद किराडू-भक्त प्रहलाद।

नीचे दिये गए लिंक पे क्लिक करके देखें! बीकानेर में कैसे मनाते हैं नृसिंह जन्मोत्सव

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